परमहंस मंडली (Paramahansa Mandali) की स्थापना दादोबा पांडरुंग, दुर्गा राम मेहता और उनके साथियों ने 1849 में बम्बई में की थी । यह एक अत्यधिक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण हिंदू सामाजिक -धार्मिक सुधार संगठन था । इस संगठन की विचारधारा पर “मानव धर्म सभा” का गहरा प्रभाव था । दादोबा पांडरुंग सहित इसके कई सदस्य प्रारंभ में मानव धर्म सभा से जुड़े हुए थे ।
दादोबा पांडरुंग का जन्म 1814 में पुणे के एक व्यापारी परिवार में हुआ था । जबकि दुर्गा राम मेहता एक गुजराती सुधारक थे । दादोबा ने 1843 में ‘धर्म विवेचन’ नामक एक पुस्तक में अपने सिद्धांतों को प्रस्तुत किया । इस पुस्तक में उन्होंने 7 सिद्धांतों को सूचीबद्ध किया था जो कि परमहंस मंडली द्वारा प्रचारित विचारधारा का आधार बने । शुरुआत में इस संस्था ने एक गुप्त सामाजिक- कट्टरपंथी समाज के रूप में काम किया । इसने जाति व्यवस्था का भी खंडन किया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया । इसके अधिकांश सदस्य, शिक्षित- युवा ब्राह्मण थे । उनमें से कई बंबई में रहते थे और अन्य उन्नत अंग्रेजी शिक्षा की तलाश में वहां आए थे । जल्द ही इस संगठन की शाखाएँ पूना, अहमदनगर और रत्नागिरी जैसे स्थानों पर भी खोली गईं ।
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