धोलावीरा सिन्धु सभ्यता के सबसे लोकप्रिय स्थल में से एक है । यह गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालिका में मासर एवं मानहर नदियों के संगम पर स्थित है । यह सिंधु सभ्यता का एक प्राचीन और विशाल नगर था । धोलावीरा को सिंधु सभ्यता का सबसे सुंदर नगर भी माना जाता है और यहां जल संग्रहण के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं । इस ऐतिहासिक स्थल का उत्खनन आर.एस बिष्ट के नेतृत्व में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने किया था । स्थानीय लोग इसे ‘कोटा दा टिंबा’ कहते हैं । मोहनजोदड़ो, गनेरीवाला ,हड़प्पा और राखीगढ़ी के बाद धौलावीरा सिंधु घाटी सभ्यता का पांँचवा सबसे बड़ा नगर था । यहाँ से टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, मोती, सोने और तांबे के गहने, मुहरें, मछलीकृत हुक, जानवरों की मूर्तियाँ, उपकरण, कलश एवं कुछ महत्त्वपूर्ण बर्तन प्राप्त हुए हैं । इस स्थल की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता है यहाँ से प्राप्त सिंधु लिपि में निर्मित 10 बड़े पत्थरों के शिलालेख जो की शहर के प्रवेश द्वार पर है । हालाँकि इसे पढ़ा नहीं जा सका है किंतु शायद यह दुनिया का सबसे पुराने साइन बोर्ड है!
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धोलावीरा का इतिहास
धोलावीरा हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर टैग प्राप्त करने वाला भारत का 40वां स्थल बन गया है । हड़प्पा-युग के इस शहर के पुरातात्विक स्थल को 27 जुलाई 2021 को विरासत स्थल सूची में जोड़ा गया । यह यूनेस्को की विश्व विरासत टैग प्राप्त करने के लिए भारत में प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की पहली साइट है । जबकि यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल होने वाला यह गुजरात का चौथा स्थल बन गया है । भारत ने धोलावीरा के लिए नामांकन डोजियर जनवरी 2020 में वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर को सौंप दिया था और यह साइट 2014 से यूनेस्को की अस्थायी सूची में था ।
धोलावीरा साइट के शामिल होने के साथ, भारत अब वर्ल्ड हेरिटेज साइट शिलालेखों के लिए सुपर -40 क्लब में प्रवेश कर गया है जिसमें पहले से ही इटली, स्पेन, जर्मनी, चीन और फ्रांस शामिल हैं ।
धोलावीरा – भौगोलिक स्थिति
धोलावीरा गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालिका में मासर एवं मानहर नदियों के संगम पर स्थित है । यह धोलावीरा गाँव के पास एक पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ से इसे इसका नाम मिला है । यह अब तक खोजे गए 1,000 से अधिक हड़प्पा स्थलों में से पांँचवा सबसे बड़ा है । धोलावीरा ने मानव जाति की प्रारंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन के पूरे पथ को देखा है । यह शहरी नियोजन, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक प्रशासन और विकास, कला और निर्माण, व्यापार और विश्वास प्रणाली के संदर्भ में अपनी बहुमुखी उपलब्धियों को प्रदर्शित करता है । धोलावीरा पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक नोट के अनुसार, साइट पर खुदाई से सिंधु सभ्यता के उत्थान और पतन के सात सांस्कृतिक चरणों का पता चला है ।
धोलावीरा की विशेषताएं
धोलावीरा हड़प्पा सभ्यता से संबंधित एक आद्य- ऐतिहासिक कांस्य युग शहरी बस्ती का एक असाधारण उदाहरण है। बेहद समृद्ध कलाकृतियों के साथ, यह अपनी विशिष्ट विशेषताओं के साथ एक क्षेत्रीय केंद्र की एक विशद तस्वीर को दर्शाता है और समग्र रूप से हड़प्पा- युग के मौजूदा ज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देता है । पूर्वकल्पित नगर योजना, बहुस्तरीय किलेबंदी, परिष्कृत जल भंडारण योजना और जल निकासी व्यवस्था, और भवन निर्माण सामग्री के रूप में पत्थर का व्यापक उपयोग, ये विशेषताएँ हड़प्पा सभ्यता के संपूर्ण क्षेत्र में धोलावीरा की अनूठी स्थिति को दर्शाती हैं ।
अलग -अलग व्यावसायिक गतिविधियों के आधार पर अलग -अलग शहरी आवासीय क्षेत्रों के साथ शहर का विन्यास, और एक स्तरीकृत समाज एक नियोजित शहर का एक उत्कृष्ट उदाहरण है । शहर में दो भाग शामिल हैं, एक चारदीवारी वाला शहर और इसके पश्चिम में एक कब्रिस्तान । चारदीवारी वाले शहर में संलग्न गढ़ वाले बेली और सेरेमोनियल ग्राउंड के साथ एक गढ़ वाले महल और एक गढ़ वाले मिडिलटाउन और एक निचला शहर शामिल है । गढ़ के पूर्व और दक्षिण में जलाशयों की एक श्रृंखला पाई जाती है ।
खदिर द्वीप में धोलावीरा का स्थान विभिन्न खनिज और कच्चे माल के स्रोतों जैसे तांबा, खोल, एगेट-कार्नेलियन, स्टीटाइट, सीसा, बैंडेड चूना पत्थर, के दोहन के लिए रणनीतिक था ।
धोलावीरा में मौसमी धाराओं, अल्प वर्षा और उपलब्ध जमीन से पानी को पत्थर से काटकर बनाए गए बड़े जलाशयों में जमा किया गया था, जो पूर्वी और दक्षिणी किलेबंदी के साथ मौजूद हैं । कुछ रॉक -कट कुएं (सबसे प्रभावशाली कुएं गढ़ में स्थित हैं) शहर के विभिन्न हिस्सों में स्पष्ट हैं जो सबसे पुराने उदाहरणों में से एक हैं । उपलब्ध पानी की हर बूंद का भंडारण करने के लिए डिज़ाइन की गई विशाल जल प्रबंधन प्रणाली तेजी से भू- जलवायु परिवर्तनों के खिलाफ जीवित रहने के लिए लोगों की सरलता को दर्शाती है । यहां से जल संग्रहण के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं । धोलावीरा हड़प्पा शहर का बहु -सांस्कृतिक और स्तरीकृत समाज लगभग 1,500 वर्षों तक फला- फूला ।
गुजरात में अन्य हड़प्पा स्थल
धोलावीरा स्थल की खुदाई से पहले, अहमदाबाद जिले के ढोलका तालुका में साबरमती के तट पर सरगवाला गाँव में लोथल, गुजरात में सिन्धु सभ्यता का सबसे प्रमुख स्थल था । सुरेंद्रनगर जिले में भादर नदी के तट पर स्थित रंगपुर गुजरात का पहला हड़प्पा स्थल था जिसकी खुदाई की गई थी । राजकोट जिले में रोजदी, गिर सोमनाथ जिले में वेरावल के पास प्रभास, जामनगर में लाखावल, और कच्छ के भुज तालुका में देशलपर राज्य के अन्य हड़प्पा स्थलों में से हैं । |
सिन्धु सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 3000- 3300 ईसा पूर्व शुरू हुई थी और लगभग 1700- 1500 ईसा पूर्व के आसपास इसका पतन हो गया । खुदाई किए जाने वाले पहले शहर, हड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान) के कारण इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है । पाकिस्तान के मेहरगढ़ में पूर्व-हड़प्पा सभ्यता पाई गई है जो कपास की खेती का पहला प्रमाण दिखाती है । भौगोलिक रूप से, इस सभ्यता में कुल 12,50,000 की.मी. का क्षेत्र आता है जिसमे पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल थे । यह पश्चिम में सुत्कागेंगोर (बलूचिस्तान में) से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ, पश्चिमी उत्तर प्रदेश) तक फैला हुआ था; और उत्तर में बुर्ज होम (जम्मू) से दक्षिण में दैमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) तक । भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण स्थल इस प्रकार हैं : कालीबंगन (राजस्थान), लोथल, धोलावीरा, रंगपुर, सुरकोटदा (गुजरात), बनावली (हरियाणा), रोपड़ (पंजाब) । जबकि पाकिस्तान में कुछ महत्वपूर्ण स्थल हैं : हड़प्पा (रावी नदी पर), मोहनजोदड़ो (सिंध में सिंधु नदी पर), चन्हुदड़ो (सिंध में) आदि । हड़प्पा के खंडहरों की खोज मार्शल, राय बहादुर दया राम साहनी और माधो सरूप वत्स ने की थी । मोहनजोदड़ो के खंडहरों की खुदाई पहली बार आर.डी. बनर्जी, ई.जे.एच. मैके और मार्शल ने की थी । सिंधु घाटी के शहर अन्य समकालीन सभ्यताओं में नहीं देखे गए परिष्कार और उन्नति का स्तर दिखाते हैं । |
भारत के अन्य ऐतिहासिक स्थल जिन्हें यूनेस्को विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ है
आगरे का किला (उत्तर प्रदेश) : अकबर के शासनकाल में 1565 से 1573 के दौरान निर्मित यह किला ताजमहल से थोड़ी ही दूर पर, यमुना नदी के तट पर स्थित है । इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थरों से किया गया है । यही कारण है कि पहले इसे ‘लाल किला’ भी कहा जाता था । यह किला दिल्ली स्थित लाल किले से भिन्न है जिसका निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था । इस किले में जहाँगीर महल और खास महल मौजूद हैं । 1983 में इसे विश्व विरासत स्थल का दर्जा मिला ।
अजन्ता की गुफाएँ (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र के शम्भाजी नगर (प्राचीन नाम औरंगाबाद जिला) में स्थित ये गुफाएँ भारत की “रॉक-कट गुफाओं” का सर्वोत्तम उदहारण हैं । इस श्रृंखला में कुल 28 गुफाएँ हैं जो कि बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं । अधिकांश गुफाओं का निर्माण वकाटक काल में हुआ है । कुछ गुफाएं सातवाहनों के द्वारा 200 ई.पू. से 650 ईस्वी के मध्य निर्मित हैं । इनमें से 25 गुफाओं को विहार (बौद्ध संतों के आवास) के रूप में, जबकि शेष को चैत्य (पूजा स्थल) के रूप में इस्तेमाल किया जाता था । 1983 में इसे विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया ।
एलोरा की गुफाएँ (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र के शम्भाजी नगर जिले में ही स्थित एलोरा की 34 “रॉक-कट गुफाओं” का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों द्वारा 5वीं से 10वीं सदी के बीच करवाया गया था । ये गुफाएँ सीधी खड़ी चरणाद्रि पर्वत का एक हिस्सा हैं । इनमें हिन्दू ,बौद्ध और जैन गुफा हैं जिनमें 12 बौद्ध गुफाएँ , 17 हिन्दू गुफाएँ और 5 जैन गुफाएँ हैं । 1983 में इसे विश्व विरासत स्थल की सूचि में शामिल किया गया ।
ताज महल (आगरा, उत्तर प्रदेश) : भारत के सभी ऐतिहासिक स्मारकों का सिरमौर माना जाने वाला ताज महल मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया गया था । ताज महल की प्रमुख विशेषता यह है कि अन्य मुगल स्थापत्य की तरह यह लाल बलुआ पत्थर से निर्मित न हो कर सफेद संगमरमर का बना है । इसके वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी थे । यह यमुना नदी के तट पर स्थित है । इसका निर्माण वर्ष 1628 से 1648 तक लगभग 20 वर्ष की अवधि में हुआ था । वर्तमान में यह देश- दुनिया के लिए पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और प्रतिवर्ष 20- 40 लाख पर्यटकों को आकर्षित करता है । यह विश्व के 7 आश्चर्यों (7 wonders of the world) में भी शामिल रहा है । (विश्व के अन्य 7 आश्चर्य हैं :- गीज़ा के पिरामिड, बेबीलोन के झूलते बाग़, अर्टेमिस का मन्दिर, ओलम्पिया में जियस की मू्र्ति, माउसोलस का मकबरा, 630 विशालमूर्ति व ऐलेक्जेन्ड्रिया का रोशनीघर) | 1983 में इसे विश्व विरासत स्थल की सूचि में शामिल किया गया ।
महाबलीपुरम में स्मारक समूह ,तमिलनाडु : तमिलनाडु के इन स्मारक समूहों का निर्माण पल्लव राजाओं द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी के मध्य करवाया गया था । इन मंदिरों का निर्माण प्रस्तर चट्टानों को तराश कर “द्रविड़ शैली” में किया गया है जिनमें ‘अर्जुन की तपस्या’ , ‘गंगा का अवतरण’ ,तट मंदिर ,पञ्च रथ ,एकाश्म मंदिर, सात मंदिरों के अवशेष इत्यादि अत्यंत भव्य हैं । इस शहर को सप्त पैगोडा के रूप में भी जाना जाता है ।
कोणार्क सूर्य मंदिर,उड़ीसा उड़ीसा के पुरी ज़िले में ,बंगाल की खाड़ी के चन्द्र भागा तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के 3 सबसे प्रसिद्द सूर्य मंदिरों में से एक है । इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के शासक नरसिंह देव प्रथम ने कराया था । यह मंदिर एक विशाल रथ की आकृति की अद्वितीय शैली में बना है जिसके 24 पहियों को 7 घोड़ों द्वारा खींचते हुए दर्शाया गया है । मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये 24 पहिये या चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो कि दिन के आठ पहरों के द्योतक हैं । रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कभी इस मंदिर के बारे में कहा था -”यहाँ के पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से बेहतर है ।” काले ग्रेनाइट से निर्मित होने के कारण इसे ब्लैक पैगोडा भी कहते हैं ।
फतेहपुर सीकरी ,उत्तर प्रदेश : इसकी स्थापना सम्राट अकबर द्वारा 1571-72 में गुजरात विजय अभियान के बाद कराई गई थी । 1585 तक यह मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रही । यहाँ भारत के सबसे बड़े मस्जिदों में से एक ,जामा मस्जिद सहित कई अन्य इस्लामिक स्मारक भी हैं ।
हम्पी में स्मारकों का समूह,कर्नाटक यह विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी । विजयनगर के शासकों कृष्ण देव राय ,देव राय द्वितीय व अन्य ,द्वारा हम्पी के मंदिर और महल को 14वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य तुंगभद्रा नदी कर तट पर बनवाया गया था । विरूपाक्ष मंदिर ,विट्ठल मंदिर ,कृष्ण बाज़ार इत्यादि इस स्थल के प्रमुख आकर्षण केंद्र हैं ।
नालंदा भग्नावशेष ,बिहार : बिहार राज्य की राजधानी पटना से लगभग 90 की.मी. दक्षिण-पूर्व में स्थित भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक इस विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त शासक कुमार गुप्त ने 440 से 470 ई. के बीच करवाया था । इनकी खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी ।
सांची का बौद्ध स्मारक,मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में तीसरी सदी ई.पू. के आसपास निर्मित अनेक बौद्ध स्मारक हैं जिनमे से अशोक द्वारा निर्मित स्तूप सर्वाधिक प्रसिद्द है । यह भारत में प्रस्तर -निर्मित सभी संरचनाओं में सबसे पुरानी है । इसमें बुद्ध की अस्थियों को सहेज कर रखा गया है ।
खजुराहो समूह के स्मारक : मध्य प्रदेश के छतरपुर क्षेत्र में खजुराहो स्मारक समूह हिन्दू और जैन धर्म के स्मारकों का एक समूह है । खहुराहो के ज्यादातर मन्दिर चन्देल राजवंश के समय विशेषकर यशोवर्मन एवं धंग देव चन्देल के द्वारा 950 से 1050 ईस्वी के मध्य बनाए गए थे । ये मंदिर समूह स्थापत्य कला और मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और विशेषकर मैथुन मुद्राओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्द है ।
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