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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 13 December, 2022 UPSC CNA in Hindi

13 दिसंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

सामाजिक मुद्दे:

  1. सरकार में महिला नेतृत्व की प्रभावकारिता का मूल्यांकन:

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

  1. सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव क्यों है?

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

सामाजिक न्याय:

  1. सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद पर अंकुश लगाना:

भारतीय अर्थव्यवस्था:

  1. बिग टेक और भारत में पूर्वानुमान पर आधारित-विनियमन की आवश्यकता:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. उत्पादन के कारक (Factors of production):

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास भारतीय और चीनी सैनिकों में झड़प:
  1. राज्यसभा ने कार्बन उत्सर्जन को अधिक विनियमित करने के लिए ‘भविष्यवादी’ ऊर्जा संरक्षण विधेयक पारित किया:
  2. 2022 में पहली बार खुदरा मुद्रास्फीति 6% से नीचे आई:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव क्यों है?

राजव्यवस्था:

विषय: कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्यप्रणाली।

प्रारंभिक परीक्षा: कॉलेजियम प्रणाली और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) से सम्बंधित तथ्य।

मुख्य परीक्षा: न्यायिक नियुक्तियों के संबंध में सरकार और न्यायपालिका के बीच संघर्ष की स्थिति।

संदर्भ:

  • अदालतों में न्यायिक नियुक्तियों की मौजूदा प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच एक बड़ा टकराव देखने को मिलता रहा है।

सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच खींचतान:

  • केंद्रीय कानून मंत्री ने यह कहकर सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम की आलोचना की थी कि अदालत अपने मुख्य कार्य ‘न्याय प्रदान करने’ पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय न्यायिक नियुक्तियों में “व्यस्त” रहती हैं।
  • मंत्री ने कॉलेजियम प्रणाली की जवाबदेहीता की कमी पर भी चिंता जताई और वर्ष 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को रद्द करने के सर्वोच्च न्यायालय के कदम की आलोचना की, जिसने सरकार को न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका के समान अधिकार प्रदान किया था।
  • इसके अलावा, भारत के उपराष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय के 2015 के फैसले का भी संदर्भ दिया और सवाल किया कि कैसे न्यायपालिका ने सर्वसम्मति से पारित संवैधानिक प्रावधान को रद्द कर दिया जो लोगों की इच्छा को दर्शाता है।
  • इस पर न्यायालय ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू की और सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने न्यायिक नियुक्तियों में देरी पर चिंता जताई क्योंकि सरकार अज्ञात कारणों से वर्षों से कॉलेजियम की सिफारिशों में देरी कर रही है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने भी कहा कि अदालत सरकार को न्यायिक नियुक्तियों पर एक नया कानून लाने/अधिनियमित करने से नहीं रोक रही है और कॉलेजियम प्रणाली तथा इसकी प्रक्रिया ज्ञापन (Memorandum of Procedure (MoP)) एक नया कानून लागू होने तक अंतिम होगा।
  • न्यायालय ने यह भी कहा है कि भविष्य में अधिनियमित होने वाले नए कानून की भी न्यायालय द्वारा विधिवत जांच की जाएगी।
  • इस बीच, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा है कि सरकार और कॉलेजियम को एक-दूसरे के दोषों को उजागर करने के बजाय “संवैधानिक राज्य-मर्मज्ञता” (constitutional statesmanship) की भावना के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

कॉलेजियम प्रणाली, इसकी प्रक्रिया ज्ञापन (Memorandum of Procedure (MoP) ) और वर्तमान प्रक्रिया:

  • कोलेजियम की सिफारिशों के संबंध में उच्चतम न्यायालय (SC) और उच्च न्यायालयों (HC) में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया का उल्लेख प्रक्रिया ज्ञापन/मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MoP) में किया गया है, जिसे वर्ष 1998 में तैयार किया गया था।
  • MoP के अनुसार, SC के न्यायाधीशों की नियुक्ति के प्रस्तावों की शुरुआत CJI में निहित है और HC के न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधित HC के मुख्य न्यायाधीश के पास होती है।
  • MoP में HC के मुख्य न्यायाधीशों के लिए संभावित रिक्तियों से छह महीने पूर्व ही प्रस्तावों को शुरू करने हेतु अधिदिष्ट किया गया है।
  • वर्ष 2014 में संसद ने 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना की, जिसे SC और HC में न्यायाधीशों की नियुक्ति का कार्य सौंपा गया था।
  • हालाँकि अक्टूबर 2015 में, SC ने NJAC अधिनियम तथा 99वें संविधान संशोधन अधिनियम को रद्द कर दिया, जो अदालत के अनुसार राजनेताओं और नागरिक समाज को न्यायिक नियुक्तियों में अंतिम अधिकार प्रदान करता है।
  • अपने फैसले के दौरान, न्यायालय ने यह भी कहा कि कॉलेजियम प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है और सरकार से CJI तथा कॉलेजियम के परामर्श से एक संशोधित MoP लाने की मांग की है।
  • हालाँकि, MoP को अभी भी अंतिम रूप नहीं दिया गया है क्योंकि SC और सरकार के बीच इस मुद्दे पर असहमति बनी हुई है।
  • कॉलेजियम प्रणाली और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Collegium System and National Judicial Appointments Commission (NJAC)

सरकार की चिंता:

  • केंद्र सरकार का मानना है कि SC और HC दोनों स्तरों पर न्यायिक नियुक्तियों में देरी के लिए कॉलेजियम जिम्मेदार है और NJAC एक अच्छा कानून था जिसे अदालत ने निरस्त कर दिया था।
  • सरकार के अनुसार, HC रिक्तियों से छह महीने पहले, जैसा कि MoP में उल्लेख किया गया है, सिफारिशें नहीं कर रहे हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में रिक्तियां हैं।
  • नवंबर 2022 तक 1,108 न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या में से विभिन्न उच्च न्यायालयों में 332 से अधिक न्यायिक पद खाली थे और उच्च न्यायालयों द्वारा 186 से अधिक रिक्तियों (56%) के लिए सिफारिशें करनी शेष हैं।
  • इसके अलावा कई उच्च न्यायालय पिछले एक से पांच वर्षों में रिक्तियों के लिए बार और सेवा कोटे के तहत सिफारिशें करने में विफल रहे हैं।
  • सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय पर उच्च न्यायालयों द्वारा प्रस्तावित न्यायाधीशों में से लगभग 25% नामों को खारिज करने का भी आरोप लगाया है।
  • वर्ष 2022 के दौरान की गई कुल 165 नियुक्तियों में से, HC द्वारा किए गए प्रस्तावों में से लगभग 221 को स्वीकार कर लिया गया और शेष 56 सिफारिशों को SC कॉलेजियम ने खारिज कर दिया।
  • सरकार ने कहा है कि नियुक्ति प्रक्रिया में देरी ने उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को समय पर भरने के कार्य को प्रभावित किया है।

सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया:

  • SC ने माना है कि MoP के साथ कॉलेजियम प्रणाली मौजूदा कानून/व्यवस्था है और यह तब तक मौजूद रहेगा जब तक कि सरकार द्वारा एक नया कानून नहीं बनाया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार पर कॉलेजियम की सिफारिशों को बिना किसी वैध कारण के लंबित रखने का आरोप लगाया है और बार-बार कॉलेजियम को प्रस्तावित नामों को वापस भेजने के सरकार के कदम की भी आलोचना की है।
  • SC ने आगे सरकार पर ऐसे न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करने का आरोप लगाया है जो सरकार की नीतियों और विचारधाराओं के खिलाफ बोलते हैं।
  • इस मुद्दे से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए 8 दिसंबर 2022 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण देखें।

सारांश:

  • कॉलेजियम के नेतृत्व वाली न्यायपालिका और सरकार को आपस में आरोप-प्रत्यारोप के खेल में शामिल होने के बजाय न्यायिक रिक्तियों के बारहमासी मुद्दे का समाधान करने के लिए लीक से हटकर और अभिनव समाधानों के साथ सहयोग करना चाहिए।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

सरकार में महिला नेतृत्व की प्रभावकारिता का मूल्यांकन:

सामाजिक मुद्दे:

विषय: महिलाओं और महिला संगठनों की भूमिका।

मुख्य परीक्षा: शासन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता, इसकी चुनौतियां और भावी कदम।

संदर्भ:

  • सरकार द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार:
    • भारत में संसद और अधिकांश राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15% से भी कम है।
    • इसके अलावा, लगभग 19 राज्यों की विधानसभाओं में 10% से कम महिला विधायक हैं।
  • उपरोक्त संदर्भ में, यह लेख नीति निर्माण में महिलाओं के बढ़ते प्रतिनिधित्व के महत्व पर प्रकाश डालता है।
  • इस लेख को 24 सितंबर 2020 के यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण में शामिल किया गया है।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद पर अंकुश लगाना:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

विषय: स्वास्थ्य सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे

मुख्य परीक्षा: सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद

विवरण:

  • जनसंख्या के दृष्टिकोण से सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर विचार करने और उनकी व्याख्या करने में सदैव विफलता का सामना करना पड़ा है। इसका परिणाम अप्रभावी और अस्थिर समाधानों के रूप में परिणित हुआ है।
  • उदाहरण के लिए, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), पूरक पोषण कार्यक्रम और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने जैसे अधिक टिकाऊ दृष्टिकोण के बजाय सूक्ष्म पोषक तत्व पूरकता और खाद्य पोषण जैसे व्यक्तिवादी समाधानों को कुपोषण के मुद्दे के समाधान के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
  • इसी तरह, चिरकालिक रोग नियंत्रण के लिए, सामुदायिक कार्रवाई के माध्यम से स्वास्थ्य व्यवहारों में परिवर्तन करने के बजाय प्रारंभिक निदान और उपचार पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
  • सामाजिक-उन्मुख जनसंख्या-आधारित दृष्टिकोणों पर व्यक्तिगत-उन्मुख हस्तक्षेपों को प्राथमिकता देने की इस प्रबल प्रवृत्ति को सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद कहा जाता है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के हालिया उदाहरण:

  1. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY):
  • यह सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है जो किसी परिवार के अस्पताल में भर्ती होने के खर्च को कवर करती है।
  • योजना का उद्देश्य सभी अस्पतालों में भर्ती सेवाओं के लिए मुफ्त उपचारात्मक देखभाल सेवाएं सुनिश्चित करना और लाभार्थी के वित्तीय बोझ को कम करना है।
  • यह अस्पताल में भर्ती होने के खर्च के लिए एक व्यक्तिवादी प्रतिक्रिया है। ऐसा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के आंकड़ों के 75वें दौर से स्पष्ट होता है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि भारत में कुल आबादी का केवल 3% ही एक वर्ष में अस्पताल में भर्ती होता है।
    • यह आंकड़ा असम में 1%, गोवा में 4% से लेकर केरल में 10% तक है।
    • अधिकांश भारतीय राज्यों में अनुपात आमतौर पर 3% से 5% के बीच है।
  • इसका तात्पर्य यह है कि सरकार को केवल 3%-5% आबादी को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को पूरा करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित बीमा योजनाओं के मूल्यांकन में, यह पाया गया कि आबादी का एक छोटा हिस्सा ही सालाना तौर पर योजना से लाभान्वित होता है।
  • हालांकि सरकार ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को आश्वासन देती है जिन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता हो सकती है (व्यक्तिवादी दृष्टिकोण), लेकिन जनसंख्या के दृष्टिकोण से, अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता वाले लोगों का अधिकतम अनुपात कुल जनसंख्या के 5% की सीमा में ही होगा।

PMJAY के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana | Ayushman Bharat PMJAY

  1. कोविड-19 टीकाकरण:
  • अन्य टीकाकरण के विपरीत, यह स्पष्ट था कि कोविड-19 टीका लोगों को बीमार होने से नहीं रोक सकता था, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने और मौतों को कम कर सकता था।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कुल कोविड-19 सकारात्मक मामलों में से केवल 20% को चिकित्सा देखरेख की आवश्यकता होती है, लगभग 5% को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है और लगभग 1% -2% को वेंटीलेटर पर रखने या गहन देखभाल (ICU) की आवश्यकता होती है।
  • एक बार पुनः यह अस्पताल में भर्ती होने के खिलाफ प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक वादा और आश्वासन था। लेकिन जनसंख्या-आधारित दृष्टिकोण के मामले में प्रत्येक व्यक्ति के बजाय प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सुविधाओं पर केंद्रित किया जाता।

व्यक्तिवाद के निर्धारक:

सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद के प्रभुत्व के तीन प्रमुख कारण हैं जो प्रायः संयोजन में काम करते हैं। वे हैं:

  • इस गलत धारणा के साथ जैव चिकित्सीय ज्ञान और दर्शन का प्रभुत्व कि जो कार्य व्यक्तिगत स्तर पर किया जाता है, वही जब जनसंख्या के बड़े स्तर पर किया जाता है तो वह सार्वजनिक स्वास्थ्य बन जाता है।
  • एक अन्य संबद्ध पहलू आम जनता के बीच स्वास्थ्य के प्रभावों की ‘दृश्यता’ है। यह याद रखा जाना चाहिए कि व्यक्तिगत स्तर पर स्वास्थ्य प्रभाव अधिक परिलक्षित होते हैं और आश्वस्त करने वाले होते हैं, जबकि जनसंख्या स्तर पर सुधार के लिए जनसंख्या-स्तर के विश्लेषण की आवश्यकता होती है।
    • जनसंख्या-स्तर का विश्लेषण एक महत्वपूर्ण कौशल है जिसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सकों के बीच समाज के बारे में विशेषज्ञता और नीति की आवश्यकता होती है।
    • जनता, और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ जो व्यक्तिगत अनुभवों का उपयोग करते हैं, वे व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर जनसंख्या की विशेषताओं की गलत व्याख्या करेंगे। इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य में परमाणु भ्रम (atomistic fallacy) के रूप में जाना जाता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रैक्टिस में बाजार की भूमिका और उपभोक्तावाद का प्रभाव। बाजार की ताकतें एक व्यापक जाल बिछाएंगी और किसी कार्यक्रम के लिए 100% लाभार्थियों को कवर करेंगी। जबकि वास्तव में वास्तविक लाभार्थी 5 से 10% ही होंगे।

भावी कदम:

  • व्यक्तिगत स्तर पर उपचारात्मक देखभाल के प्रावधान की योजना नहीं बनाई जानी चाहिए क्योंकि महामारी विज्ञान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को हर बार उपचारात्मक देखभाल की आवश्यकता नहीं होगी।
  • जनसंख्या-स्तरीय नियोजन के लिए, जनसंख्या को एक इकाई के रूप में मानने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य में सभी प्रकार के व्यक्तिवादी दृष्टिकोणों का विरोध किया जाना चाहिए ताकि प्रैक्टिस के अपने मूल सिद्धांतों, जनसंख्या, रोकथाम और सामाजिक न्याय की रक्षा की जा सके।

संबंधित लिंक:

Health Care Sector in India – An Overview on Latest Developments

सारांश:

  • देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में व्यक्तिवाद का दबदबा बढ़ रहा है। मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए मजबूत जनसंख्या-स्तरीय विश्लेषण और योजना की आवश्यकता है।

बिग टेक और भारत में पूर्वानुमान पर आधारित-विनियमन की आवश्यकता:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:

भारतीय अर्थव्यवस्था:

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना और विकास से संबंधित मुद्दे।

मुख्य परीक्षा: बिग टेक कंपनियां और प्रतिस्पर्धा कानून।

संदर्भ:

  • भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा गूगल पर जुर्माना लगाने का निर्णय।

विवरण:

  • भारत के स्पर्धारोधी निकाय, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI), ने अक्टूबर 2022 में एंड्राइड मोबाइल डिवाइस इकोसिस्टम में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के लिए गूगल पर लगभग 1,337.76 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।
  • भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की स्थापना भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 के तहत बाजारों में प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करने और बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्धा में बाधा डालने वाली प्रथाओं पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से की गई थी। हालाँकि, यह अधिनियम बिग टेक कंपनियों के नेटवर्क प्रभाव के लिए सीमित है।
  • यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने इन कंपनियों की बाजार-विकृत क्षमताओं को महसूस करते हुए अपने प्रतिस्पर्धा कानून को प्रतिस्थापित कर दिया है। उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ का डिजिटल मार्केट अधिनियम।
  • भारत में, प्रतिस्पर्धा (संशोधन) विधेयक और इसके प्रस्तावित संशोधन इन मुद्दों का आंशिक रूप से समाधान करेंगे। हालाँकि, भारत को इसे अपने कानून में बदलाव के अवसर के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए था।

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें: Competition Commission of India (CCI) – Statutory Body | UPSC | BYJU’S

बाजार प्रभुत्व का मुद्दा:

  • प्रतिस्पर्धा को रोकना: गूगल का मामला इस मुद्दे पर प्रकाश डालता है।
    • भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के अनुसार, गूगल का उद्देश्य उपयोगकर्ताओं के लिए अपनी राजस्व-अर्जित करने वाली सेवा के उपयोग को अनिवार्य करना है। इस प्रकार इसने यथास्थिति पूर्वाग्रह के साथ-साथ प्रतिस्पर्धियों के लिए गंभीर प्रारंभिक अवरोध पैदा किए।
    • हालांकि मौजूद प्रतिस्पर्धा कानून इस चिंता का समाधान करते हैं, लेकिन जटिल तकनीकी क्षेत्रों में इनकी प्रतिक्रिया काफी धीमी है। इससे प्रमुख दिग्गज गूगल को काफी लाभ होता है।
    • इस प्रकार बाजार की विफलताओं को रोकने और संभावित प्रतिस्पर्धा-रोधी आचरण को समाप्त करने के लिए पूर्वानुमान पर आधारित-कानून (ex-ante legislation) की आवश्यकता है।
  • आक्रामक मूल्य निर्धारण (Predatory Pricing): यह कीमतों को उस हद तक कम करने को संदर्भित करता है जिसका अन्य फर्में मुकाबला नहीं कर पाती हैं और बाजार से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जाती हैं।
    • अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर भारी छूट देने और स्थानीय विक्रेताओं को चुनौती देने वाले इन-हाउस ब्रांड बनाने का आरोप लगाया गया था।
    • भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने उनके कार्यालयों पर छापा मारकर इसका जबाव दिया था। आयोग ने अमेज़ॅन को क्लाउडटेल के साथ अपने संबंधों को खत्म करने के लिए मजबूर किया।
    • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बाजार में किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म की स्थिति को परिभाषित करने में मूल्य निर्धारण की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए, एक पूर्वानुमान रूपरेखा (ex-ante framework) तैयार करना महत्वपूर्ण है जो स्थानीय विक्रेताओं के लिए समान अवसर की गारंटी देती हो।
    • सरकार का ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) प्लेटफॉर्म सही दिशा में एक कदम है, खासकर छोटे व्यापारियों के लिए।
  • उपभोक्ताओं की सहमति के बिना सेवाओं की बिक्री और प्रतिस्पर्धा का उन्मूलन: सेल्फ-प्रेफरेन्सिंग (self-preferencing) का एक महत्वपूर्ण पहलू सर्च एल्गोरिदम से परे सेवाओं की बिक्री है, विशेष रूप से प्री-इन्सटाल्ड ऐप्स के साथ, जहां निर्माता उपभोक्ता की सहमति के बिना प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर देते हैं।
    • उदाहरण के लिए, रूस द्वारा एप्पल को इंस्टालेशन के दौरान तृतीय-पक्ष एप्लिकेशन प्रदान करने के लिए मजबूर करने के बाद अमेरिका और यूरोप में प्री-इंस्टॉल किए गए ऐप्स के लिए एप्पल की जांच की जा रही है।
    • भारतीय कानून में भी इस पहलू पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

उपभोक्ता संरक्षण का मुद्दा:

  • इन प्लेटफार्मों पर संग्रहीत वित्तीय रिकॉर्ड, चिकित्सा इतिहास आदि जैसे संवेदनशील डेटा का नियमन अभी भी एक प्रमुख मुद्दा है। बिग टेक कंपनियाँ इस डेटा को बिना किसी प्रतिबंध के उपयोग या स्थानांतरित करने के अधिकार के स्वामित्व का दावा करती रही हैं।
  • महिलाओं और बच्चों के डेटा का भंडारण, जिससे डिजिटल वातावरण में अधिक सावधानी से निपटने की आवश्यकता है, अभी भी एक मुख्य मुद्दा बना हुआ है।
  • इसके अलावा, बाजार विकृति के परिणामस्वरूप खराब सेवा गुणवत्ता, डेटा एकाधिकार और नवाचार में भी बाधा आ सकती है।

भावी कदम:

  • प्रतिस्पर्धा कानून और नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2020 और ई-कॉमर्स नियमों के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाए।
  • इसके अलावा, नए कानून के तहत उन उपभोक्ताओं के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए जो बिग टेक की प्रतिस्पर्धा-रोधी प्रथाओं से प्रभावित हैं।
  • कंपनियों पर जुर्माना और प्रतिबंध लगाने से हुए उपभोक्ता नुकसान के लिए आनुपातिक मुआवजे पर भी विचार किया जाना चाहिए।
  • एक समान अवसर प्रदान करना और स्टार्ट-अप तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए एक उचित अवसर सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • डिजिटल मार्केटप्लेस के अनुसार कानून को प्रासंगिक बनाने और पर्याप्त पूर्वानुमान पर आधारित कानून के साथ नए प्रावधानों को तैयार करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2000 काफी हद तक भौतिक बाजार पर केंद्रित है।

संबंधित लिंक:

UPSC Exam Comprehensive News Analysis. Oct 21st, 2022 CNA. Download PDF

सारांश:

  • गूगल के मामले ने एक बार फिर बिग टेक कंपनियों की बाजार शक्ति पर फिर से विचार करने की जरूरत को सामने ला दिया है। डिजिटल परिवर्तन के इस युग में,भारत को एक नए पूर्वानुमान आधारित ढांचे की आवश्यकता है जो सभी हितधारकों के लिए एक-समान स्थिति सुनिश्चित करके प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता हो।

प्रीलिम्स तथ्य:

1.उत्पादन के कारक (Factors of production):

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

विषय: महत्वपूर्ण शब्दावली।

प्रारंभिक परीक्षा: उत्पादन के कारक।

उत्पादन के कारक:

चित्र स्रोत: stlouisfed.org

  • उत्पादन के कारक उन संसाधनों को संदर्भित करते हैं जिन्हें किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन का बुनियादी निर्माण खंड माना जाता है।
  • जिन संसाधनों को उत्पादन का कारक माना जाता है, ये वे संसाधन होते हैं जो किसी भी वस्तु या सेवा के उत्पादन के लिए नितांत आवश्यक होते हैं।
  • भूमि, श्रम, पूंजी और उद्यमशीलता को व्यापक रूप से उत्पादन का प्रमुख कारक माना जाता है।
  • आधुनिक अर्थव्यवस्था में किसी भी वस्तु की उत्पादन प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में भूमि, श्रम और पूंजी का मिश्रण देखा जाता है।
  • उत्पादन के इन कारकों को नियंत्रित करने वाले व्यक्ति आमतौर पर समाज में सबसे बड़ी संपत्ति के मालिक (अमीर) होते हैं।
  • उत्पादन के इन कारकों का स्वामित्व विभिन्न आर्थिक विचारकों के बीच बहस का विषय रहा है।
  • मार्क्सवादी अर्थशास्त्रियों का मानना है कि उत्पादन के इन कारकों पर सामूहिक रूप से राज्य का स्वामित्व होना चाहिए क्योंकि इन कारकों के निजी स्वामित्व से संसाधनों का शोषण और कुप्रबंधन हो सकता है।
  • मुक्त बाजार अर्थशास्त्री उत्पादन के कारकों पर निजी स्वामित्व के पक्ष में तर्क देते हैं क्योंकि यह संसाधन मालिकों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास भारतीय और चीनी सैनिकों में झड़प:

  • भारतीय सेना के अनुसार 9 दिसंबर, 2022 को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारतीय और चीनी सैनिकों में आमने-सामने की लड़ाई में दोनों देशों के सैनिकों को मामूली चोटें आईं हैं।
  • इस घटना के बाद दोनों पक्षों के कमांडरों ने इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए संरचित तंत्र के अनुसार इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक फ्लैग मीटिंग आयोजित की।
  • सेना के बयान के मुताबिक तवांग सेक्टर में LAC के साथ अलग-अलग प्रकार के क्षेत्र हैं जहां दोनों पक्ष अपने दावे की सीमा तक क्षेत्र में गश्त करते हैं।
  • जून 2020 में दोनों देशों के बीच लद्दाख की गलवान घाटी (violent clashes in Ladakh’s Galwan Valley) में हुई हिंसक झड़प के बाद यह इस तरह की पहली घटना है।
  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पश्चिमी (लद्दाख), मध्य (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड), सिक्किम और पूर्वी (अरुणाचल प्रदेश) क्षेत्रों में विभाजित है।
  • हाल के कुछ वर्षों में चीनी सेना द्वारा अधिकांश अतिक्रमण पश्चिमी क्षेत्र में हुए हैं, जबकि पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में अतिक्रमणों की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  • भारतीय सेना ने तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ अपनी मारक क्षमता और बुनियादी ढांचे को उन्नत किया है और शेष अरुणाचल प्रदेश (RALP) में प्रयास चल रहे हैं।
  • इसमें सड़कों, सुरंगों, पुलों, विमानन सुविधाओं का निर्माण और संचार लिंक तथा निगरानी तंत्र का उन्नयन शामिल है।

2. राज्यसभा ने कार्बन उत्सर्जन को अधिक विनियमित करने के लिए ‘भविष्यवादी’ ऊर्जा संरक्षण विधेयक पारित किया:

  • वर्तमान शीतकालीन सत्र में राज्यसभा ने ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक पारित किया है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा और फीडस्टॉक (मशीन या औद्योगिक प्रक्रिया की आपूर्ति या ईंधन के लिए कच्चा माल) के लिए हरित हाइड्रोजन, हरित अमोनिया, बायोमास और इथेनॉल सहित गैर-जीवाश्म स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य करना और भारत में कार्बन बाजार स्थापित करना है।
  • लोकसभा ने अगस्त 2022 में विधेयक पारित किया था।
  • यह विधेयक ऊर्जा संरक्षण भवन कोड का दायरा बढ़ाने, मौजूदा जुर्माना प्रावधानों में बदलाव करने, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की गवर्निंग काउंसिल में सदस्यों को बढ़ाने और राज्य विद्युत नियामक आयोगों को अपने कार्यों के सुचारू निर्वहन हेतु नियम बनाने का अधिकार प्रदान करता है।
  • केंद्रीय बिजली और नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने विधेयक को “भविष्यवादी” माना है और कहा है कि यह विधेयक ऊर्जा के हरित स्रोतों में संक्रमण में भारत के प्रयासों को गति प्रदान करेगा।
  • मंत्री ने आगे कहा कि विधेयक का लक्ष्य बड़े आवासीय भवनों को ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के दायरे में लाना है, जिसमें न्यूनतम 100 किलोवाट का कनेक्टेड लोड या 120 KVA की अनुबंध मांग है।

3. 2022 में पहली बार खुदरा मुद्रास्फीति 6% से नीचे आई:

चित्र स्रोत: The Hindu

  • वनस्पति और खाद्य तेल की कीमतों में नरमी से नवंबर 2022 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 5.88% हो गई है, जबकि अक्टूबर में यह 6.77% थी।
  • जनवरी 2022 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 6% की सहिष्णुता सीमा से नीचे रही है।
  • उपभोक्ताओं द्वारा सामना की जाने वाली खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति अक्टूबर में 7% से कम होकर 4.67% हो गई है।
  • हालांकि, खाद्य पदार्थों में 5.2% मूल्य वृद्धि के साथ ग्रामीण उपभोक्ताओं को अधिक बोझ का सामना करना पड़ रहा है, जबकि शहरी उपभोक्ताओं के लिए यह 3.7% है।
  • नवंबर 2021 के स्तर की तुलना में सब्जियों और खाद्य तेलों में क्रमशः 8.1% और 0.6% अपस्फीति दर्ज की गई है, लेकिन अनाज, दूध और मसालों के संबंध में मुद्रास्फीति में तेजी जारी हैं।
  • इसके अलावा, परिवहन और संचार, आवास, घरेलू सामान और सेवाओं जैसे मुख्य मुद्रास्फीति के प्रमुख घटकों में मुद्रास्फीति में भी वृद्धि देखी गई है या स्थिर रही है जो इनपुट कीमतों के निरंतर पासथ्रू (निकासी) और मांग में सुधार का संकेत देती है।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. सरकार की निम्नलिखित पहलों/योजनाओं में से कितनी देश में जनजातीय विकास पर जोर देती हैं? (स्तर – मध्यम)

  1. प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना
  2. एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय
  3. संकल्प योजना
  4. प्रधानमंत्री वन धन योजना

विकल्प:

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) केवल तीन

(d) सभी चारों

उत्तर: c

व्याख्या:

  • प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY) का उद्देश्य केंद्रीय अनुसूचित जनजाति घटक में विभिन्न योजनाओं के तहत उपलब्ध धन के साथ अभिसरण में महत्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले गांवों में अंतराल को कम करना और बुनियादी ढांचा प्रदान करना है।
  • दूरस्थ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (ST) के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (Eklavya Model Residential Schools (EMRS)) वर्ष 1997-98 में शुरू किए गए थे ताकि उन्हें उच्च और व्यावसायिक शैक्षिक पाठ्यक्रमों में अवसरों का लाभ उठाने और विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • प्रधानमंत्री वन धन योजना वन धन यानी वन धन का दोहन करके आदिवासियों के लिए आजीविका सृजन को लक्षित करने वाली एक पहल है। आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (Skill Acquisition and Knowledge Awareness for Livelihood Promotion (SANKALP)) विश्व बैंक से ऋण सहायता के साथ कौशल विकास मंत्रालय का एक कार्यक्रम है।
  • इसका उद्देश्य संस्थानों को मजबूत करके, बाजार से बेहतर जुड़ाव और समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को शामिल करके गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से अल्पकालिक कौशल प्रशिक्षण में सुधार करना है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)

  1. शून्यकाल संसदीय प्रक्रियाओं में एक भारतीय नवाचार है।
  2. शून्यकाल प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है और दिन के एजेंडे तक चलता है।
  3. जिस दिन वित्त मंत्री बजट पेश करते हैं उस दिन प्रश्नकाल निर्धारित नहीं होता है।

दिए गए कथनों में से कितना/कितने गलत हैं/हैं?

(a) केवल एक कथन

(b) केवल दो कथन

(c) केवल तीन कथन

(d) इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: शून्य काल वह समय है जब संसद सदस्य (सांसद) अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मुद्दे उठा सकते हैं। शून्यकाल संसदीय प्रक्रियाओं के क्षेत्र में एक भारतीय नवाचार है और 1962 से अस्तित्व में है।
  • कथन 2 सही है: शून्यकाल प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है और दिन के एजेंडे के पूरा होने तक चलता है।
  • कथन 3 सही है: सत्र के सभी दिनों में दोनों सदनों में प्रश्नकाल आयोजित किया जाता है। लेकिन दो दिन ऐसे होते हैं जो अपवाद हैं जब प्रश्नकाल आयोजित नहीं किया जाता हैं: जिसमें शामिल है:
    • सेंट्रल हॉल में जिस दिन राष्ट्रपति दोनों सदनों के सांसदों को संबोधित करते हैं, उस दिन प्रश्नकाल नहीं होता है।
    • जिस दिन वित्त मंत्री बजट पेश करते हैं, उस दिन प्रश्नकाल निर्धारित नहीं होता है।

प्रश्न 3. नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मुश्किल)

  1. इसका उद्देश्य 18 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के गैर-साक्षरों के बीच साक्षरता को बढ़ावा देने में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सहायता करना है।
  2. यह एक केंद्रीय क्षेत्र योजना है।
  3. योजना के क्रियान्वयन की इकाई विद्यालय होंगे।

दिए गए कथनों में से कितना/कितने गलत हैं/हैं?

(a) केवल एक कथन

(b) केवल दो कथन

(c) केवल तीन कथन

(d) इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (New India Literacy Programme (NILP)) का उद्देश्य 2022-23 से 2026-27 की तक कार्यान्वयन अवधि के दौरान देश भर में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के गैर-साक्षरों के बीच साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सहायता करना है।
  • कथन 2 गलत है: नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (NILP) एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • इस योजना को 1037.90 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया है जिसमें 700 करोड़ रुपये का केंद्रीय हिस्सा और 337.90 करोड़ रुपये का राज्य हिस्सा शामिल है।
  • कथन 3 सही है: नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के तहत, विद्यालय योजना के क्रियान्वयन की इकाई होंगे।

प्रश्न 4. ‘विकास कार्य समूह’ प्रायः किस संदर्भ में चर्चा में रहता है? (स्तर – मध्यम)

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC)

(b) G20

(c) विश्व आर्थिक मंच

(d) दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान)

उत्तर: b

व्याख्या:

  • G20 विकास कार्य समूह (DWG) की स्थापना 2010 में की गई थी।
  • G20 विकास कार्य समूह विकासशील देशों, विशेष रूप से निम्न-आय वाले देशों को सीधे प्रभावित करने वाले व्यापक मुद्दों पर चर्चा करने और कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए एक आवश्यक मंच बन गया है।
  • वर्ष 2016 में, G20 ने विकास कार्य समूह को सभी G20 देशों में सतत विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र 2030 एजेंडा से संबंधित नीतिगत कार्यों के समन्वय और निगरानी का काम सौंपा था।

प्रश्न 5. जैव ऑक्सीजन मांग (BOD) किसके लिए एक मानक मानदंड है? (PYQ-2017) (स्तर – मध्यम)

  1. रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापने के लिए।
  2. वन पारिस्थितिक तंत्रों में ऑक्सीजन के स्तरों के अभिकलन के लिए।
  3. जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में प्रदूषण के आमापन के लिए परख।
  4. उच्च तुंगता क्षेत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के आकलन के लिए।

उत्तर: c

व्याख्या:

  • किसी दिए गए पानी के नमूने में ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा जैविक पदार्थों के विघटन के लिए जैविक जीवों जैसे बैक्टीरिया द्वारा आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को जैव ऑक्सीजन मांग (BOD) कहा जाता है।
  • BOD का उपयोग अक्सर अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों में किया जाता है और इसका उपयोग पानी में जैविक प्रदूषण की डिग्री के सूचकांक के रूप में किया जाता है।
  • इसलिए, BOD जलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रदूषण के आमापन के लिए एक मानक मानदंड है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. सार्वजनिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा से किस प्रकार भिन्न है? भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में क्या कमियां हैं? (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस II – स्वास्थ्य)

प्रश्न 2. वर्तमान समय में बिग टेक द्वारा पेश की गई नए युग की चुनौतियाँ क्या हैं? क्या भारतीय कानून ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार किया गया है? (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस III – विज्ञान एवं तकनीक)