14 सितंबर 2022 : समाचार विश्लेषण
A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: सामाजिक न्याय:
C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: कृषि:
D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E.सम्पादकीय: अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
भारतीय अर्थव्यवस्था:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G.महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
भारत में प्राकृतिक रबड़ की कीमतों में गिरावट:
कृषि:
विषय: कृषि उपज का विपणन,सम्बंधित बाधाएं एवं मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: भारत में प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन और रबड़ बोर्ड से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: भारत में प्राकृतिक रबड़ की कीमतों में गिरावट के कारण और इसके निहितार्थ।
संदर्भ:
- रबड़ उत्पादकों के ‘रबर प्रोड्यूसर सोसाइटीज’ के क्षेत्रीय संघों ने राष्ट्रीय संघ की अगुआई में केरल के कोट्टायम में रबर बोर्ड मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया।
रबड़ बोर्ड:
- रबड़ बोर्ड भारत सरकार द्वारा रबड़ अधिनियम 1947 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
- यह बोर्ड देश में रबर उद्योग के समग्र विकास के लिए जिम्मेदार है।
- इस बोर्ड का मुख्यालय केरल के कोट्टायम में है।
- रबड़ बोर्ड केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
- इस बोर्ड का अध्यक्ष केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
पृष्ठ्भूमि:
- भारतीय बाजार में प्राकृतिक रबड़ की कीमत गिरकर 16 महीने के निचले स्तर ₹150 प्रति किलोग्राम (RSS ग्रेड 4) पर आ गई है।
- इसके अलावा, दस्ताने निर्माताओं की बढ़ती मांग के कारण COVID महामारी के दौरान लेटेक्स की कीमत अपने चरम पर पहुंचने के बाद, इसकी वर्तमान कीमतें 120 रुपये से नीचे आ गई हैं।
- रबड़ की कीमतों में गिरावट ने स्थानीय अर्थव्यवस्था और प्रदर्शनकारी किसानों की आय को प्रभावित किया है।
भारत में प्राकृतिक रबर का उत्पादन एवं खपत:
- वर्तमान में, भारत दुनिया में प्राकृतिक रबड़ का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- थाईलैंड दुनिया में प्राकृतिक रबड़ का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- हालांकि, भारत दुनिया में प्राकृतिक रबड़ का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश भी है।
- भारत की कुल प्राकृतिक रबड़ खपत का लगभग 40% आयात किया जाता है।
- रबर बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन 8.5 लाख टन है,जबकि इसकी अनुमानित खपत 12.9 लाख टन से अधिक है।
- वर्ष 2020-21 की तुलना में वर्ष 2021-22 के दौरान प्राकृतिक रबड़ के उत्पादन में लगभग 8.4% की वृद्धि हुई।
- उत्पादन में यह वृद्धि उपज में वृद्धि, दोहन योग्य क्षेत्र और दोहन किए गए क्षेत्र के कारण हुई है।
- शीर्ष रबड़ उत्पादक राज्य: देश में केरल सबसे बड़ा रबर उत्पादक राज्य है और अन्य राज्यों में त्रिपुरा, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्य शामिल हैं।
- मांग पक्ष के आधार पर वर्ष 2020-21 की तुलना में वर्ष 2021-22 में देश में रबर खपत में लगभग 12.9% की वृद्धि हुई।
- कुल खपत में से, ऑटो-टायर निर्माण क्षेत्र का हिस्सा लगभग 73.1% था।
- मांग में इस वृद्धि को पूरा करने के लिए प्राकृतिक रबड़ का आयात 4,10,478 टन से बढ़कर 5,46,369 टन हो गया है।
कीमतों में गिरावट की वजह:
- चीन की मांग में कमी- कीमतों में कमी को इसकी प्राथमिक वजह बताया जा रहा है।
- चीन की “शून्य-कोविड रणनीति” जिसका उद्देश्य सख्त लॉकडाउन, सीमाओं को बंद करना और यात्रा प्रतिबंध लगाकर कोविड -19 मामलों की संख्या को कम करना है, ने रबर की कीमतों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है क्योंकि चीन वैश्विक मात्रा का लगभग 42% खपत करता है।
- यूरोपीय ऊर्जा संकट
- उच्च मुद्रास्फीति
- बढ़ा हुआ आयात – विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़े हुए आयात का भी कीमतों पर असर पड़ा है।
- घरेलू टायर उद्योग के पास अपनी सूची में मुख्य रूप से आइवरी कोस्ट से ब्लॉक रबर और सुदूर पूर्व से मिश्रित रबर के रूप में पर्याप्त स्टॉक है।
- रबड़ की कीमतों में आई इस गिरावट ने छोटे और मध्यम स्तर के रबड़ की खेती करने वालों की कमजोरियों को उजागर कर दिया है।
- रबड़ की कीमतों में कमी ने केरल में दहशत पैदा कर दी है, जो कुल उत्पादन का लगभग 75% उत्पादित करता है।
- यदि केरल में इस मुद्दे का जल्द से जल्द हल नहीं निकाला गया तो दीर्घ काल में इस विवाद के राजनीतिक मोड़ लेने की उम्मीद है।
- कीमतों में तेजी से गिरावट के साथ-साथ उत्पादन की बढ़ी हुई लागत ने काश्तकारों को प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन बंद करने के लिए मजबूर कर दिया है।
- उन क्षेत्रों में सुस्ती दर्ज की गई है, जहां स्थानीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक रबड़ के उत्पादन पर निर्भर है।
- विशेषज्ञों को डर है कि यदि यही स्थिति रहती है, तो इससे दीर्घकाल में फसल का उत्पादन बंद हो सकता है या रबड़ के जोतों का विखंडन हो सकता है।
किसानों की मांग:
- किसानों द्वारा केंद्र सरकार से मांग की जा रही हैं कि लेटेक्स उत्पादों और मिश्रित रबड़ पर आयात शुल्क 25% या ₹30 प्रति किलोग्राम (जो भी कम हो) तक बढ़ाया जाए ताकि इसे प्राकृतिक रबड़ के बराबर लाया जा सके।
- किसानों द्वारा राज्य सरकारों से भी पुन: रोपण सब्सिडी बढ़ाने की मांग की जा रही हैं।
- वर्तमान में, केरल में पुनर्रोपण सब्सिडी ₹25,000 प्रति हेक्टेयर है।
- किसान राज्य सरकारों से मूल्य स्थिरीकरण योजना के तहत रबड़ के समर्थन मूल्य को ₹170 से बढ़ाकर ₹200 करने की भी मांग कर रहे हैं।
रबड़ बोर्ड की प्रतिक्रिया:
- बोर्ड को लगता है कि रबड़ की कीमतों में उतार-चढ़ाव एक चक्रीय घटना है,और उसका मानना है कि मौजूदा वृक्षारोपण में पुराने पेड़ों के स्थान पर धीमे पुनर्रोपण के कारण अब से सात साल बाद रबड़ की भारी कमी का अनुमान इसकी कीमतों को संतुलित करेगा।
- कहा जाता है कि बोर्ड रबड़ की कीमतों में गिरावट को दूर करने के लिए विभिन्न उपायों पर काम कर रहा है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
सामाजिक न्याय:
मनरेगा के सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) में देरी:
विषय: आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं और इन योजनाओं का प्रदर्शन
प्रारंभिक परीक्षा: मनरेगा से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: मनरेगा का सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) और इससे जुड़े मुद्दे।
संदर्भ:
- भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) ने राज्यों को कहा हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme (MGNREGS)) का सोशल ऑडिट करने में विफलता के अप्रत्यक्ष परिणाम होंगे, जिसमें धन की रोक शामिल होगी।
- मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी “सोशल ऑडिट कैलेंडर बनाम ऑडिट पूर्ण” (Social audit calendar vs audits completed) नाम की रिपोर्ट के अनुसार,चालू वित्त वर्ष में केवल 14.29% नियोजित लेखापरीक्षा की गई है।
मनरेगा का सोशल ऑडिट/सामाजिक अंकेक्षण:
- मूल मनरेगा अधिनियम में सामाजिक अंकेक्षण के प्रावधान थे और अंकेक्षण के ये मानक दिसंबर 2016 में जारी किए गए थे।
- सोशल ऑडिट जन-केंद्रित उपकरण हैं, जहां पंचायत के नागरिक नरेगा के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सोशल ऑडिट के तहत विकसित बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता की जांच, मजदूरी में वित्तीय हेराफेरी और किसी भी प्रक्रियात्मक विचलन का सत्यापन शामिल है।
- इस तरह के सोशल ऑडिट ने कुशलता से काम किया है,जिससे स्थानीय लोगों को निवेश निर्णयों में भाग लेने और अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने में मदद मिलती हैं।
- गौरतलब है कि केंद्र सरकार इस सामाजिक लेखा परीक्षा/अंकेक्षण इकाइयों की प्रशासनिक लागत का वहन करती है और यह निधि चार चरणों में वितरित की जाती है।
- मूल मनरेगा अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक सामाजिक लेखा परिक्षण इकाई को पिछले वर्ष में राज्य द्वारा किए गए मनरेगा व्यय के 0.5% के बराबर धनराशि प्रदान की जानी चाहिए।
राज्यों की चिंता:
- विभिन्न राज्यों के अनुसार, सामाजिक लेखा परिक्षण /अंकेक्षण इकाइयों को केंद्र से प्रशासनिक धन प्राप्त नहीं हुआ है,इसलिए धन के वितरण में भी देरी हो रही है।
- नतीजतन, विभिन्न राज्यों में लेखा परीक्षकों के वेतन के भुगतान में तीन महीने से एक वर्ष तक की देरी हुई है।
- राज्यों का यह भी आरोप है कि राज्यों से बकाया राशि की तुलना में राज्य को बहुत कम राशि केंद्र द्वारा दी गई है।
- उदाहरण: हिमाचल प्रदेश को चालू वर्ष में देय ₹4 करोड़ और पिछले वर्ष में अतिरिक्त ₹4.5 करोड़ की तुलना में इस वित्तीय वर्ष की पहली किस्त के रूप में ₹1.3 करोड़ दिए गए हैं।
- छत्तीसगढ़ और केरल जैसे राज्यों के मामले में भी ऐसा ही देखा गया है।
- धन के भुगतान में देरी से नीतिगत पक्षाघात होता है, क्योंकि इससे राज्यों के लिए लेखा परीक्षकों को वेतन देना मुश्किल हो जाता है।
- गैर-लाभकारी पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी की रिपोर्ट के अनुसार,वर्ष 2020-21 में 8 राज्यों को सामाजिक लेखा परिक्षण इकाइयों और वर्ष 2021-22 में 9 राज्यों को 50% से कम धनराशि दी गयी, और बिहार सामाजिक लेखा परीक्षा इकाई को अप्रैल 2020 से सम्बंधित वित्त का आवंटन नहीं किया गया हैं,जिसके वे हकदार थे।
- वैसे महाराष्ट्र, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को सामाजिक ऑडिट करने के लिए 2021-22 में शून्य धन प्राप्त हुआ है,हालांकि उनका सामूहिक व्यय वित्त वर्ष 2020-21 में मनरेगा में 6000 करोड़ रुपये से अधिक है।
- विभिन्न राज्यों में सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयों को अपने संचालन को बनाए रखने के लिए अपनी संबंधित राज्य सरकारों से ऋण लेने के लिए मजबूर किया जाता है।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
सम्पादकीय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:
भारत के लिए,अब मूलमंत्र है ‘ऑल-एलाइनमेंट’
विषय:द्विपक्षीय,क्षेत्रीय,वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते।
प्रारंभिक परीक्षा:शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन।
मुख्य परीक्षा:बहु-संरेखण की भारत की नई विदेश नीति।
संदर्भ: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री का उज्बेकिस्तान का आगामी दौरा ।
विवरण:
- पंद्रह देशों के नेता उज्बेकिस्तान के समरकंद में SCO शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। भाग लेने वाले देश हैं:
- सदस्य राष्ट्र: चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान।
- प्रेक्षक राष्ट्र: ईरान, बेलारूस और मंगोलिया। ईरान नौवें सदस्य के रूप में समूह में शामिल होगा।
- अतिथि देश: अजरबैजान, आर्मेनिया, तुर्कमेनिस्तान और तुर्की।
SCO के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: https://byjus.com/free-ias-prep/shanghai-cooperation-organisation-sco-upsc-notes/
भारत द्वारा दुनिया को दिए गए संदेश:
- SCO में भारत की भागीदारी उस विदेश नीति के प्रति प्रतिबद्धता को पुष्ट करती है जो SCO, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका), क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, यू.एस.), I2U2 (भारत-इजरायल-यू.एस.-यूएई) और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF)जैसे विभिन्न ब्लॉकों के बीच संतुलन स्थापित करती है।
- एक और संदेश दिया गया है कि भारत हितों से अधिक मूल्यों को तरजीह देता है। दूसरे शब्दों में, “लोकतंत्रों के गठबंधन” के पश्चिमी दृष्टिकोण को “सामान्य लक्ष्यों के गठबंधन” की यूरेशियन नीति के विपरीत माना जाता है।
- भारत के रुख में बदलाव आया है क्योंकि भारतीय प्रधान मंत्री ने अपने सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के विपरीत अपने पूरे कार्यकाल में एक भी गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया है। इसके अतिरिक्त, भारत इस वर्ष SCO शिखर सम्मेलन में भाग लेने के अलावा चीन और पाकिस्तान सहित सभी सदस्यों को आमंत्रित करके अगले वर्ष इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।
- व्यक्तिगत जुड़ाव के स्तर पर, भारत ने न केवल तेल आयात पर पश्चिमी प्रतिबंधों को खारिज कर दिया है, बल्कि इन्हें कई गुना बढ़ा दिया है। उदाहरण के लिए, रूसी तेल आयात पहली तिमाही में लगभग 0.66 मिलियन टन से बढ़कर वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में लगभग 8.42 मिलियन टन हो गया।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: https://byjus.com/free-ias-prep/non-aligned-movement-nam/
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत सहभगिताएं की और उनसे अपेक्षाएं
- भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध:
- दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध जिनमे 2020 के लद्दाख गतिरोध के बाद एक गतिरोध पैदा हो गया हैं, उन पर करीब से नजर रखी जाएगी। दोनों देशों के नेता आमने-सामने होंगे और दोनों के बीच होने वाली हर तरह की चर्चा महत्वपूर्ण होगी।
- भारत-ईरान जुड़ाव:
- SCO शिखर सम्मेलन में, नई दिल्ली से मध्य एशिया और रूस के व्यापार मार्ग पर बने चाबहार बंदरगाह टर्मिनल (जिसे भारत शाहिद बेहेश्ती के रूप में विकसित कर रहा है) के महत्व पर जोर देने की उम्मीद है।
- इसके अलावा ईरान ने अफगानिस्तान सीमा से तुर्कमेनिस्तान तक रेल लाइन का विस्तार करने के लिए उपलारणों सहित भारत के समर्थन की मांग की है, जिसे मध्य एशिया से भारत की कनेक्टिविटी के लिए सबसे छोटा संभव मार्ग माना जाता है। इससे भारत को ग्वादर से चीन-पाकिस्तान-आर्थिक गलियारे का मुकाबला करने के लिए एक संपर्क ढांचा विकसित करने में मदद मिलेगी।
- कनेक्टिविटी के अलावा, ईरान अपने यहां से होने वाले कच्चे तेल के निर्यात के संबंध में भी भारत के साथ संबंधों को बहाल करने पर भी ध्यान देगा। यह याद रखना चाहिए कि 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों के इतर एक बड़ा हिस्सा (भारत के आयात का लगभग 12%) रद्द कर दिया गया था।
- भारत-पाकिस्तान संबंध:
- भारत और पाकिस्तान के खराब सम्बन्धो के बावजूद बातचीत के कयास लगाए जा रहे हैं। दोनों देशों के बीच 2016 से बातचीत बंद हैं।
- हालाँकि, नियंत्रण रेखा(लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल) पर युद्धविराम का पालन,नियमित कमांडर-स्तरीय वार्ता और मार्च 2022 में भारत द्वारा की गई मिसफायरिंग की दुर्घटना के बाद पाकिस्तान के शांत रहने जैसीघटनाएं शक्तिशाली बैकचैनल सहयोग को प्रदर्शित करती हैं।
- अन्य सहभगिताएं:
- भारत SCO-RATS (शंघाई सहयोग संगठन- क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना) की मेजबानी करने की योजना बना रहा है।
- इसके अलावा, भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास युद्ध अभ्यास (संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ) करने की योजना बना रही है।
सारांश:
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सम्बंधित लिंक्स: https://byjus.com/free-ias-prep/emerging-global-scenario-and-india/
https://byjus.com/free-ias-prep/indian-foreign-policy-an-overview/
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:
भारतीय अर्थव्यवस्था:
पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए बिंदुओं को जोड़ना
विषय:बौद्धिक संपदा अधिकार।
मुख्य परीक्षा: भारत के पेटेंट प्रवृत्तियों का विश्लेषण।
संदर्भ: भारत के पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र पर रिपोर्ट।
विवरण:
- ‘व्हाई इंडिया नीड्स टू अर्जेंटली इन्वेस्ट इन इट्स पेटेंट इकोसिस्टम?’ शीर्षक वाली हालिया रिपोर्ट प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ((EAC-PM) द्वारा प्रकाशित की गयी है।
- रिपोर्ट में ज्ञान अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए एक मजबूत पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व पर चर्चा की गई है। यह तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देने में भी मदद करेगी।
- इसमें भारत में दायर किए गए पेटेंट के कुल आवेदनों में निवासियों की बढ़ती हिस्सेदारी को भी नोट किया गया है जिसमें पिछले दशक की तुलना में दोगुने से भी अधिककी वृद्धि हुई है।
- इसके अलावा, यह पहली बार है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 की अंतिम तिमाही के दौरान भारतीय निवासियों द्वारा किए गये पेटेंट आवेदनों की संख्या विदेशी आवेदनों की संख्या को पार कर गई है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ने भी इसी तरह के रुझान दिखाए।
- 2010-11 और 2020-21 की अवधि के दौरान भारतीय पेटेंट कार्यालय में पेटेंट आवेदनों की हिस्सेदारी में लगभग 48% की वृद्धि हुई।
- भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र अनुसंधान और विकास (R&D) में प्रमुखता से बढ़ रहा है। यह विकास दर (GERD) से स्पष्ट है, जो कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार, 2013 में 5% से बढ़कर 2018 में 7% हो गई है।
- यह भी बताया गया हैं कि भारत के शीर्ष दस शैक्षणिक संस्थानों द्वारा दायर पेटेंट आवेदनों की मात्रा केवल चार वर्षों में दो गुना से अधिक बढ़ गई है (2015-16 में लगभग 838 से 2019-20 में 2,533 तक)। उसी क्षेत्र में, निवासियों की हिस्सेदारी भी समान अवधि के दौरान लगभग 6.4 प्रतिशत से बढ़कर 12.2% हो गई।
रिपोर्ट में जताई गई चिंताए :
- रिपोर्ट में उठाया गया एक प्रमुख मुद्दा भारत में पेटेंट आवेदनों को संसाधित करने में लगने वाला समय है।
- यह भी सामने आया कि इस दशक के दौरान रद्द किए गए पेटेंट आवेदनों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। रद्द किए गए पेटेंट 2010-11 में 13.6% से बढ़कर 2019-20 में लगभग 48% हो गए हैं।
- पेटेंट, डिजाइन, ट्रेडमार्क और भौगोलिक संकेतक महानियंत्रक (CGPDTM) 2019-20 के कार्यालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, धारा 9(1) और पेटेंट अधिनियम की धारा 21(1 की शर्तों को पूरा नहीं करने के कारण अस्वीकृतियों की संख्या में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- पेटेंट अधिनियम की धारा 9(1): अस्थायी निर्देशों वाले आवेदनों को एक वर्ष की अवधि के भीतर पूर्ण विनिर्देश प्रदान किया जाना चाहिए।
- पेटेंट अधिनियम की धारा 21(1): पेटेंट परीक्षक के अनुसार विनिर्देशों को पूरा नहीं करने पर दस्तावेजों को फिर से दाखिल किया जा सकता हैं।
- एक अन्य कारण जो रिपोर्ट में उद्धृत किया गया है कि पेटेंट आवेदको में अविश्वास हैं की उनके आवेदनों की ठीक प्रकार से जाँच नही होती है जिससे आवेदन प्रक्रिया बाधित हो रही है।
- इसके अलावा, छोटे जीवन काल वाले नवाचारों में, लंबे समय तक लंबित रहने से आवेदक हतोत्साहित हो सकते हैं।
- पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख मुद्दा जिसमें नवाचार की गुणवत्ता की परवाह किए बिना राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति 2016 में पेटेंट आवेदन दाखिल करने पर जोर दिया गया है।
- ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (GII) में ‘इंडस्ट्री-एकेडमिया’ पैरामीटर में भारत का स्कोर 2015 में 47.8 से घटकर 2021 में 42.7 हो गया है, जिससे इसी आयाम में रैंकिंग 48 से घटकर 65 हो गई है।
- इसी तरह, राष्ट्रीय ऑटो नीति प्रारूप 2018 के मसौदे को भी दोहराया गया है कि उद्योग शिक्षा क्षेत्र उन विशिष्ट अनुसंधान क्षेत्रों तक ही सीमित है जिनका वाणिज्यिक महत्व कम है।
भारतीय पेटेंट अधिनियम के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: https://byjus.com/free-ias-prep/indian-patents-act/
भावी कदम:
- देश में पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए पेटेंट आवेदनों के प्रसंस्करण की दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि की जानी चाहिए।
- इसके अलावा, उचित दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र की पर्याप्त जांच की जानी चाहिए। मामले का जिक्र करते समय राष्ट्रीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- भारत के समग्र पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए आवेदन दाखिल करने की प्रक्रिया को सरल किया जाना चाहिए।
सारांश: किसी देश में पेटेंट प्रणाली राष्ट्रीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण धुरी का कार्य करती है। इसलिए पेटेंट आवेदनों की गुणवत्ता को मजबूत करने के साथ-साथ अकादमिक और उद्योग के बीच एक मजबूत सहयोग विकसित करना बहुत महत्वपूर्ण है। |
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सम्बंधित लिंक्स: https://byjus.com/free-ias-prep/trade-related-aspects-of-intellectual-property-rights-trips/
https://byjus.com/free-ias-prep/upsc-exam-comprehensive-news-analysis-jun10-2022/
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:
भारतीय अर्थव्यवस्था:
एक बेहतर विधेयक, लेकिन फिर भी विवादास्पद:
विषय: बुनियादी ढाँचा – बंदरगाह।
मुख्य परीक्षा: भारतीय बंदरगाह विधेयक,2022 का प्रारूप।
संदर्भ: भारतीय बंदरगाह विधेयक मसौदे के मुद्दे।
विवरण:
- 1908 का सदी पुराना भारतीय बंदरगाह अधिनियम अब कई मायनों में अप्रचलित हो गया है और भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2022 के मसौदे के माध्यम से इसमें बदलाव किया जा रहा है। 2022 का मसौदा 2021 के मसौदे से बेहतर है।
- केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने इस संबंध में चार दौर की बातचीत की है।
2021 के मसौदे बिल से जुड़ी समस्याएं:
- विधेयक के अध्याय II और III के प्रावधान विवादास्पद थे क्योंकि इनके तहत समुद्री राज्य विकास परिषद (MSDC) को वैधानिक दर्जा दिया था। अपने स्वयं के कार्यालय, कर्मचारियों और खातों वाले स्थायी निकाय के साथ MSDC को व्यापक अधिकार दिए गए थे। इसने समुद्री राज्यों के बीच विवाद खड़ा कर दिया।
- मसौदे के विभिन्न प्रावधानों ने केंद्रीय योजना और इंस्पेक्टर राज की समाजवादी-युग की गैरबराबरी को प्रतिबिंबित किया।
- मसौदे ने केंद्र को एक बंदरगाह को गैर-परिचालन घोषित करने की बेलगाम शक्ति भी दी जो राष्ट्रीय योजना के खिलाफ था।
- MSDC के निर्देशों का पालन न करने की स्थिति में बंदरगाह अधिकारियों/कर्मचारियों पर कठोर दंड (कारावास सहित) लगाया जा सकता था।
समुद्री राज्य विकास परिषद:
- इसे 1997 में कार्यकारी आदेश द्वारा गठित किया गया था। केंद्रीय जहाजरानी मंत्री को सदस्य के रूप में अध्यक्ष और समुद्री राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) के बंदरगाहों के प्रभारी मंत्रियों के रूप में नियुक्त किया गया था।
- इसने भारत के सभी प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों के समन्वित विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक शीर्ष सलाहकार निकाय के रूप में कार्य किया।
- UTs 25 वर्षों की अवधि में अठारह बार मिले। केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय ने UTs की बैठकों में सचिवीय सेवाएं प्रदान कीं।
- मुख्य भाग को दी गई शक्तियों में शामिल हैं:
- बंदरगाहों के विकास के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार करना।
- गैर-प्रमुख बंदरगाहों की निगरानी और प्रमुख बंदरगाहों के साथ उनका एकीकृत विकास सुनिश्चित करना जो राज्य सूची के दायरे में थे।
- किसी भी बंदरगाह द्वारा उल्लंघन के मामले में निकाय को जांच की शक्ति भी दी गई थी।
2022 के ड्राफ्ट बिल में बदलाव:
- 2022 के मसौदे ने 2021 के मसौदे के कुछ प्रावधानों में ढील दी है लेकिन MSDC को बरकरार रखा है।
- इसने धारा 10 (सी) जैसे प्रावधानों को भी बरकरार रखा है।
- यह एक ओपन एंडेड प्रावधान है जो केंद्र सरकार को MSDC को किसी भी वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों को सौंपने के लिए अधिकृत करता है।
- हालाँकि, हितधारकों द्वारा इसकी एक बुरी मिसाल के रूप में आलोचना की गई है जो एक अधिकारी के वोट को एक मंत्री के बराबर मानती है।
- केंद्र के साथ-साथ राज्यों (समुद्री राज्यों) के मंत्रियों के वोटों को पचास-पचास प्रतिशत वेटेज देने के लिए एक निष्पक्ष व्यवस्था की मांग की जाती है।
- इसके अलावा, दुनिया भर में सर्वोत्तम प्रथाओं से सबक सीखा जा सकता है, जैसे कि अमेरिका, जर्मनी और यहां तक कि चीन में जहां बंदरगाहों का प्रबंधन नगरपालिका, क्षेत्रीय या निजी निकायों द्वारा किया जाता है।
गैर-प्रमुख बंदरगाहों का प्रदर्शन:
- सर्वेक्षणों में यह परिलक्षित होता है कि गैर-प्रमुख बंदरगाहों ने प्रमुख बंदरगाहों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है।
- गैर-प्रमुख बंदरगाहों के कुल कार्गो का हिस्सा 1993 में लगभग 8% से बढ़कर 2021 में 45% हो गया। इसके अलावा, गैर-प्रमुख बंदरगाहों में कार्गो यातायात का CAGR 14% था, जबकि प्रमुख बंदरगाहों में यह केवल 4.8% था।
- तटीय राज्यों ने बड़ी सफलता अर्जित करते हुए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के आधार पर गैर-प्रमुख बंदरगाहों का विकास किया। गुजरात का पहला निजी बंदरगाह, पिपावाव एक बड़ी सफलता थी। इसने प्रमुख बंदरगाहों को 1996 में PPP मॉडल अपनाने के लिए भी मजबूर किया।
- 2011 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि गैर-प्रमुख बंदरगाह अधिक व्यवसाय-उन्मुख, हितधारक अनुकूल और कुशल हैं।
सारांश :
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सम्बंधित लिंक्स:
https://byjus.com/free-ias-prep/major-ports-in-india/
https://byjus.com/free-ias-prep/major-port-authorities-act-2021/
प्रीलिम्स तथ्य:
1.विंडफॉल टैक्स (Windfall Tax):
अर्थव्यवस्था:
विषय: संसाधनों का संग्रहण।
प्रारंभिक परीक्षा: विंडफॉल टैक्स से सम्बंधित तथ्य।
संदर्भ:
- वित्त मंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा घरेलू कच्चे तेल उत्पादकों पर लगाए गए विंडफॉल टैक्स (Windfall Tax) का बचाव किया हैं।
- केंद्र सरकार ने 1 जुलाई को घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन पर ₹23,250 प्रति टन का विंडफॉल टैक्स लगाया था,जिसे चार बार संशोधित किया जा चुका है।
विंडफॉल टैक्स:
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- यू.एस. के कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (Congressional Research Service (CRS)) के अनुसार, विंडफॉल टैक्स “बिना किसी अतिरिक्त प्रयास या व्यय के आय में अनर्जित, अप्रत्याशित लाभ” है।
- विंडफॉल करों को बाहरी या अभूतपूर्व घटनाओं जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा के मूल्य में वृद्धि से कंपनी के मुनाफे पर कर लगाने के लिए डिज़ाइन किया/बनाया गया है।
- इन लाभों को किसी ऐसी चीज़ के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है जो फर्म सक्रिय रूप से निवेश रणनीति या व्यवसाय के विस्तार में शामिल है।
- आमतौर पर, सरकारें कर की सामान्य दरों के ऊपर और पिछली तारीख से एकमुश्त कर के रूप में विंडफॉल कर लगाती हैं।
विंडफॉल कर लगाने का दुनिया भर की सरकारों का निम्न लक्ष्य है:
- अप्रत्याशित लाभ के पुनर्वितरण से, जब उपभोक्ताओं की कीमत पर उत्पादकों को लाभ होता है।
- सामाजिक कल्याण योजनाओं को निधि प्रदान करने हेतु।
- सरकार के लिए वैकल्पिक राजस्व सुनिश्चित करने के लिए।
- हालांकि, विशेषज्ञों का यह मानना है कि निवेशक कर व्यवस्था की निश्चितता और स्थिरता के आधार पर किसी क्षेत्र में निवेश करते हैं।
- चूंकि विंडफॉल कर पूर्वव्यापी रूप से लगाए जाते हैं,और अप्रत्याशित घटनाओं से प्रभावित होते हैं, क्योंकि वे इससे बाजार में अनिश्चितता और अस्थिरता ला सकते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1.ईरान भारत से तेल का आयात फिर से शुरू करने का आग्रह कर सकता है:
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- समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation (SCO)) शिखर सम्मेलन से पहले भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र और ईरानी राष्ट्रपति के बीच होने वाली बैठक के दौरान ईरान को उम्मीद है कि भारत फिर ईरान से रियायती दरों पर कच्चे तेल का आयात करने पर सहमत हो जाएगा।
- इस बैठक में ईरान से भारत के तेल आयात जिसे 2018-19 से बंद कर दिया गया है,के अतिरिक्त अन्य मुद्दों जैसे चाबहार बंदरगाह (Chabahar port)के विकास के अगले चरण, क्षेत्रीय संपर्क और अफगानिस्तान के मुद्दे एजेंडे में उठाने की उम्मीद है।
- भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों की धमकी के कारण ईरानी कच्चे तेल के आयात को निलंबित कर दिया था।
- हालांकि, तेल की बढ़ती कीमतों और रूस के खिलाफ प्रतिबंधों पर अमेरिका के मौजूदा फोकस ने भारत को पुनर्विचार करने का मौका दिया है।
- दोनों देशों के नेताओं के बीच भारत द्वारा संचालित चाबहार बंदरगाह के शहीद बेहेश्ती टर्मिनल के विकास और इसे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (International North South Transport Corridor (INSTC)) से जोड़ने की संभावना के बारे में चर्चा होने की भी उम्मीद है।
- भारत-ईरान संबंधों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:India-Iran Relations
2. भारत 2023 में जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा:
- भारत के G-20-समूह की अध्यक्षता के दौरान देश भर में 200 से अधिक जी -20 से संबंधित बैठकों की मेजबानी करने की उम्मीद है जो 1 दिसंबर, 2022 से शुरू होगी और 30 नवंबर, 2023 तक जारी रहेगी।
- विदेश मंत्रालय के अनुसार जी-20 नेताओं का शिखर सम्मेलन (G-20 Leaders’ Summit) सितंबर 2023 में नई दिल्ली में होगा।
- जिसमे बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई जैसे देश “अतिथि देश” (guest countries) के तौर पर शामिल होंगे।
- भारत की अध्यक्षता के दौरान, भारत, इंडोनेशिया और ब्राजील जी20 ट्रोइका (Troika-तिकड़ी)का गठन करेंगे और यह पहली बार होगा जब ट्रोइका में तीन विकासशील देश और उभरती अर्थव्यवस्थाएं शामिल होंगी, जो उन्हें एक बड़ी आवाज प्रदान करेंगी।
- G-20 बैठकों में बहुपक्षीय सुधारों जैसे महिला सशक्तिकरण, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, संस्कृति, पर्यटन, जलवायु वित्त पोषण, परिपत्र अर्थव्यवस्था, वैश्विक खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, हरित हाइड्रोजन, आपदा जोखिम में कमी और लचीलापन, आर्थिक अपराध के खिलाफ लड़ाई जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है।
3. आवश्यक दवाओं की सूची में 384 दवाएं:
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा जारी आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (National List of Essential Medicines (NLEM)), 2022 से 26 दवाएं जिनमें रैनिटिडीन और सुक्रालफेट जैसी सामान्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल दवाएं शामिल हैं को बाहर रखा गया है।
- एनएलईएम (NLEM) में अब 384 दवाएं शामिल हैं।
- पहला एनएलईएम वर्ष 1996 में संकलित किया गया था और इसे पहले वर्ष 2003, 2011 और 2015 में तीन बार संशोधित किया जा चूका हैं।
- COVID-19 के उपचार के लिए विशेष रूप से उपयोग की जाने वाली कोई भी दवा सूची का हिस्सा नहीं है,जैसा कि प्रभारी समिति को लगता है कि दवाओं की प्रभावकारिता की जांच करने के लिए नैदानिक परीक्षण अभी तक निर्णायक स्थिति में नहीं पहुंचे हैं।
- एनएलईएम का मुख्य उद्देश्य तीन प्रमुख पहलुओं अर्थात् लागत, सुरक्षा और प्रभावकारिता पर विचार करते हुए दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देना है।
एनएलईएम निम्न कार्यों में मदद करता है:
- स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों और बजट का इष्टतम उपयोग।
- दवा खरीद नीतियां।
- स्वास्थ्य बीमा।
- चिकित्सा शिक्षा और फार्मास्युटिकल नीतियों का मसौदा तैयार करना।
- आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:National List of Essential Medicines (NLEM)
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. अभ्यास काकाडू के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। (स्तर-मध्यम)
- यह भारत और ऑस्ट्रेलियाई नौ सेनाओं के बीच एक द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास है।
- आगामी 2022 का संस्करण इस अभ्यास के तहत पहला ऐसा पुनरावृत्ति (iteration) अभ्यास होगा।
- यह ऑस्ट्रेलियाई समुद्री जल क्षेत्र में आयोजित किया जा रहा है।
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 सही नहीं है: अभ्यास काकाडू रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना द्वारा आयोजित एक बहुराष्ट्रीय नौसैनिक अभ्यास है।
- कथन 2 सही नहीं है: यह अभ्यास काकाडू 1993 से आयोजित किया जा रहा है।
- इस अभ्यास का काकाडू नाम ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र में स्थित काकाडू राष्ट्रीय उद्यान के नाम पर पड़ा है।
- कथन 3 सही है: यह अभ्यास द्विवार्षिक रूप से डार्विन और उत्तरी ऑस्ट्रेलियाई अभ्यास क्षेत्रों (Northern Australian Exercise Areas (NAXA)) में आयोजित किया जाता है।
प्रश्न 2. राष्ट्रीय आवश्यक चिकित्सा सूची (NLEM) 2022 के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। (स्तर-कठिन)
- यह भारत में जारी होने वाली इस तरह की पहली सूची है।
- यह सूची केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गठित स्वतंत्र राष्ट्रीय औषधि समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार की गई है।
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल टीके एनएलईएम, 2022 के तहत सूचीबद्ध हैं।
उपर्युक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 सही नहीं है: प्रथम एनएलईएम वर्ष को 1996 में संकलित किया गया था और इसे एनएलईएम 2022 से पहले वर्ष 2003, 2011 और 2015 में तीन बार संशोधित किया जा चूका हैं।
- कथन 2 सही है: यह सूची केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गठित स्वतंत्र राष्ट्रीय औषधि समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार की गई है।
- कथन 3 सही नहीं है: सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम में टीकों का शामिल होना एनएलईएम में दवाओं को शामिल करने के मानदंडों में से एक है।
प्रश्न 3. ‘सृजन पोर्टल’ (SRIJAN Portal) निम्नलिखित में से किससे संबंधित है? (स्तर-मध्यम)
(a) महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण।
(b) गैर सरकारी संगठनों के लिए पंजीकरण पोर्टल।
(c) रक्षा स्वदेशीकरण।
(d) शिक्षा/शैक्षणिक ऋण एवं छात्रवृत्ति।
उत्तर: c
व्याख्या:
- सृजन रक्षा मंत्रालय का पोर्टल है जो “वन-स्टॉप-शॉप” ऑनलाइन पोर्टल के रूप में कार्य करता है,यह विक्रेताओं को उन वस्तुओं की जानकारी या उन तक पहुँच प्रदान करता है जो स्वदेशी हैं या जिनका स्वदेशीकरण किया जा सकता है।
- रक्षा उत्पादन विभाग ने सृजन पोर्टल विकसित किया है।
प्रश्न 4. पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं। (स्तर-मध्यम)
- आरयूपीपी (RUPPs)के रजिस्टर का रख रखाव चुनाव आयोग द्वारा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 29A के तहत किया जाता है।
- पार्टी को अपने पंजीकरण के पांच साल के भीतर चुनाव आयोग द्वारा आयोजित चुनाव लड़ना चाहिए और उसके बाद उसे चुनाव लड़ना जारी रखना चाहिए, ऐसा न करने पर पंजीकृत पार्टियों की सूची से उसे बाहर किया जा सकता है।
विकल्प:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 सही नहीं है: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत चुनाव आयोग द्वारा आरयूपीपी के रजिस्टर का रख रखाव किया जाता है।
- कथन 2 सही है: चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार,एक पार्टी को अपने पंजीकरण के पांच साल के भीतर चुनाव आयोग द्वारा आयोजित चुनाव लड़ना चाहिए और यदि ऐसा नहीं हुआ तो उस पार्टी को पंजीकृत पार्टियों की सूची से हटा दिया जाएगा।
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में ‘पायरोलिसिस और प्लाज्मा गैसीकरण’ (pyrolysis and plasma gasification) शब्दों का उल्लेख किया गया है? (स्तर-मध्यम)
(a) दुर्लभ भू-तत्वों का निष्कर्षण।
(b) प्राकृतिक गैस निष्कर्षण प्रौद्योगिकी।
(c) हाइड्रोजन ईंधन-आधारित ऑटोमोबाइल।
(d) अपशिष्ट से ऊर्जा प्रौद्योगिकी
उत्तर: d
व्याख्या:
- पायरोलिसिस ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक यौगिकों का रासायनिक अपघटन है।
- प्लाज्मा गैसीकरण एक उच्च तापमान वाली तापीय प्रक्रिया है,जिसमें प्लाज्मा का उपयोग कार्बनिक पदार्थों को सिनगैस (synthesis gas-संश्लेषण गैस) में बदलने के लिए किया जाता है,जो बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड से बना होता है।
- पायरोलिसिसपायरोलिसिस कार्बनिक पदार्थों को राख और कार्बन सहित ठोस अवशेषों के आलावा उसे मामूली मात्रा में तरल और गैस में बदल देता है।
- प्लाज्मा गैसीकरण का व्यावसायिक तौर पर उपयोग अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रणाली के रूप में,नगरपालिका ठोस कचरा, टायर, खतरनाक अपशिष्ट और सीवेज कीचड़ को संश्लेषण गैस (सिनगैस) में परिवर्तित करने में उपयोग किया जाता है, जिसमें हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड होता है और इसका उपयोग बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य के संदर्भ में, ‘पूर्ण -संरेखण’ (All-Alignment) भारत के लिए महत्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए। 250 शब्द [जीएस-2, अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध]
प्रश्न 2. सोशल ऑडिट क्या हैं? ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा हाल ही व्यक्त की गई चिंताओं के संदर्भ में, क्या आप मानते हैं कि हमें इस ढांचे को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है? 250 शब्द [जीएस-2, सामाजिक न्याय]