भारतीय संविधान के अनुसार भारत की संसद के तीन अंग हैं- 1.राष्ट्रपति, 2.लोकसभा व 3.राज्यसभा । हालांकि राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है और न ही वह संसद में बैठता है लेकिन राष्ट्रपति, संसद का अभिन्न अंग है । ऐसा इसलिए है क्योंकि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक तब तक अधिनियम नहीं बन सकता, जब तक राष्ट्रपति उसे अपनी स्वीकृति नहीं दे देता । राष्ट्रपति, संसद के कुछ अन्य कार्य भी करता है । उदाहरण स्वरूप -राष्ट्रपति दोनों सदनों का सत्र आहूत करता है या सत्रावसान करता है, लोकसभा को विघटित कर सकता है, जब संसद का सत्र न चल रहा हो, वह अध्यादेश जारी कर सकता है, या दोनों सदनों के संयुक्त बैठक की व्यवस्था कर सकता है ।
1954 में “राज्य परिषद” एवं “जनता का सदन” के स्थान पर क्रमशः राज्यसभा एवं लोकसभा शब्द को अपनाया गया । राज्यसभा, संसद का उच्च सदन कहलाता है जबकि लोकसभा निचला सदन कहलाता है । राज्यसभा में राज्य व संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं, जबकि लोकसभा संपूर्ण रूप में भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है । लोकसभा के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं जबकि राज्यसभा के लिए अप्रत्यक्ष ।
हमारा भारतीय संविधान, ब्रिटेन की पद्धति पर आधारित है । ब्रिटेन की संसद भी ‘क्राउन’ (राजा या रानी), हाउस ऑफ लॉर्ड (ऊपरी सदन) व हाउस ऑफ कॉमन्स (निचला सदन) से मिलकर बनती है । इसके विपरीत, अमेरिकी राष्ट्रपति कांग्रेस का महत्वपूर्ण अंग नहीं है । अमेरिका में विधानमंडल को ‘कांग्रेस’ के नाम से जाना जाता है । कांग्रेस के अंतर्गत ‘सीनेट’ (ऊपरी सदन) तथा हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटिव (निचला सदन) होते हैं । सरकार की संसदीय पद्धति में विधायी व कार्यकारी अंगों में परस्पर निर्भरता पर बल दिया जाता है । अतः भारत में संसद में राष्ट्रपति, ब्रिटेन की संसद में क्राउन की तरह है । वहीं दूसरी तरफ, राष्ट्रपति पद्धति वाली सरकार (जैसे अमेरिका में) विधायी और कार्यकारी अंगों के पृथक्करण पर बल दिया जाता है । इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति, कांग्रेस का घटक नहीं माना जाता है ।
संविधान के पांचवें भाग के अंतर्गत अनुच्छेद 79 से 122 में संसद के गठन, संरचना, अवधि, अधिकारियों, प्रक्रिया, विशेषाधिकार व शक्ति आदि के बारे में वर्णन किया गया है।
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