‘लोक अदालत’ -जैसा कि नाम से स्पष्ट है, आपसी सुलह या बातचीत की एक प्रणाली है । यह एक ऐसा मंच है जहां अदालत में लंबित मामलों (या विवाद) या जो मुकदमेबाजी से पहले के चरण में हैं, उन 2 पक्षों में समझौता किया जाता है या सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटाया जाता है ।
लोक अदालतों का गठन भारतीय संविधान की प्रस्तावना द्वारा दिए गए वादे को पूरा करने के लिए किया जाता है, जिसके अनुसार- भारत के प्रत्येक नागरिक के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुरक्षित करना कहा गया है । संविधान का अनुच्छेद 39A समाज के वंचित और कमजोर वर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की वकालत करता है और समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है । संविधान के अनुच्छेद 14 और 22(1) भी राज्य के लिए कानून के समक्ष समानता की गारंटी देना अनिवार्य बनाते हैं ।
उपरोक्त आलोक में ही, 1987 में, “विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम” संसद द्वारा पारित किया गया, जो 9 नवंबर 1995 को लागू हुआ । पहला लोक अदालत शिविर 1982 में गुजरात में एक स्वैच्छिक और सुलह एजेंसी के रूप में आयोजित किया गया था।
लोक अदालत के उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
- लोक अदालत भारतीय न्याय प्रणाली की उस पुरानी व्यवस्था को स्थापित करता है जो प्राचीन भारत में प्रचलित थी । इसकी वैधता आधुनिक दिनों में भी प्रासंगिक है ।
- भारतीय अदालतें लंबी, महंगी और थकाने वाली क़ानूनी प्रक्रियाओं से जुड़े मामलों के बोझ से दबी हुई हैं । छोटे -छोटे मामलों को निपटाने में भी कोर्ट को कई साल लग जाते हैं । इसलिए, लोक अदालत त्वरित और सस्ते न्याय के लिए वैकल्पिक समाधान या युक्ति प्रदान करती है ।
- मुख्य धारा कानूनी प्रणाली के लिए एक पूरक प्रदान करने के लिए ।
- औपचारिक व्यवस्था से हट कर अपने मामलों को निपटाने के लिए जनता को प्रोत्साहित करने के लिए ।
- न्याय वितरण प्रणाली में भाग लेने के लिए जनता को सशक्त बनाने के लिए ।
लोक अदालतों के लाभ
- लोक अदालत त्वरित और सस्ते न्याय के लिए वैकल्पिक समाधान या युक्ति प्रदान करती है । इनमें नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 जैसे प्रक्रियात्मक कानूनों का कोई सख्त अनुप्रयोग नहीं है। इसलिए लचीलेपन के कारण लोक अदालतें तीव्र हैं ।
- संयुक्त समझौता याचिका दायर करने के बाद लोक अदालत द्वारा जारी किए गए फैसले को दीवानी अदालत के डिक्री का दर्जा प्राप्त होता है । यह फैसले बाध्यकारी होते हैं और इनके खिलाफ अपील नही की जा सकती ।
- इनमें कोई न्यायालय शुल्क नहीं है और यदि न्यायालय शुल्क का भुगतान पहले ही कर दिया गया है, तो लोक अदालत में विवाद का निपटारा होने पर राशि वापस कर दी जाती है ।
- यह गांधीवाद के सिद्धांत पर आधारित है ।
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