भारत का उच्चतम न्यायालय (अनुच्छेद 32 के तहत ) एवं राज्यों के उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226 के तहत ) 5 प्रकार के “रिट” जारी कर सकते हैं । ये हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा । ये रिट, ब्रिटिश कानून से लिए गए हैं । इन्हें राजा द्वारा जारी किया जाता था । ये रिट लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता को कायम रखने के लिए एक युक्ति थीं । हालाँकि भारत में उच्चतम न्यायालय का रिट संबंधी न्यायिक क्षेत्र उच्च न्यायालय से तीन प्रकार से भिन्न हैं: पहला, उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों के क्रियान्वयन को लेकर रिट जारी कर सकता है, जबकि उच्च न्यायालय इनके अलावा किसी और उद्देश्य को लेकर भी इसे जारी कर सकते हैं । दूसरा, उच्च न्यायलय भारत सरकार को रिट जारी नहीं कर सकते । उच्चतम न्यायलय अपने रिट संबंधी अधिकारों को नकार नहीं सकता जबकि उच्च न्यायलय इन्हें नकार सकते हैं क्योंकि ये उनका विवेकाधिकार है ।
अधिकार पृच्छा: इसका शाब्दिक अर्थ है “किस अधिकार से? (by what authority?)”। इसे न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक कार्यालय में दायर अपने दावे की जांच के लिए जारी किया जाता है । अतः यह किसी व्यक्ति द्वारा लोक कार्यालय के अवैध अनाधिकार ग्रहण करने को रोकता है । रिट को पूरक सार्वजनिक कार्यालयों के मामले में तब जारी किया जा सकता है जब उसका निर्माण संवैधानिक हो । इसे मंत्रित्व कार्यालय या निजी कार्यालय के लिए जारी नहीं किया जा सकता । अन्य चार रिटों से भिन्न, इसे किसी भी इच्छुक व्यक्ति द्वारा जारी किया जा सकता है न कि केवल प्रभावित व्यक्ति द्वारा ।
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