सरदार स्वर्ण सिंह समिति मूल कर्तव्यों (fundamental duties) से सम्बंधित है । इस समिति का गठन 1976 में किया गया था । इसे 1975- 77 के आपातकाल के दौरान मूल कर्तव्यों के महत्त्व के संबंध संस्तुति देनी थी । इस समिति ने सिफारिश की कि संविधान में मूल कर्तव्यों का एक अलग पाठ होना चाहिए और नागरिकों को अधिकारों के प्रयोग के साथ साथ अपने कर्तव्यों को निभाना भी आना चाहिए । केंद्र सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 को लागू किया जिसमें संविधान में एक भाग- IV (क) जोड़ा गया । इस नए भाग में केवल एक अनुच्छेद था – अनुच्छेद -51 (क) । हालाँकि स्वर्ण सिंह समिति ने संविधान में 8 मूल कर्तव्यों को जोड़े जाने का सुझाव दिया था, लेकिन अनुच्छेद -51 (क) में 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया । 2002 में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, के द्वारा एक और मूल कर्तव्य जोड़ा गया, इस प्रकार वर्तमान में मूल कर्तव्यों की कुल संख्या 11 है।
भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य
अनुच्छेद -51 (क) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह:-
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का सम्मान करें ।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका सम्मान करें ।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें ।
- देश की रक्षा करें और युद्ध इत्यादि की स्थिति में आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें ।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और भाईचारे की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं ।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें ।
- पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें ।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें ।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छूने में सक्षम हो ।
- 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बीच अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराएं (यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया) ।
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