संविधान की प्रस्तावना में उस मौलिक दर्शन और मौलिक मूल्यों का उल्लेख है जो हमारे संविधान के आधार हैं । यह उन मुख्य उद्देश्यों को निर्धारित करता है जिन्हें संविधान प्राप्त करना चाहता है । यह संविधान को दिशा और उद्देश्य देता है । यह उन उद्देश्यों और सामाजिक -आर्थिक लक्ष्यों को भी स्थापित करता है जिन्हें संवैधानिक प्रक्रियाओं के माध्यम से प्राप्त किया जाना है ।
हम जानते हैं कि संविधान की प्रस्तावना में स्वाधीनता, समानता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता जैसे तत्व भी शामिल हैं । इस प्रकार यह राजनैतिक लोकतंत्र के साथ साथ सामाजिक – आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना को भी एक आयाम देता है ।
इसके अलावा इसमें संविधान निर्माताओं की सोच उल्लिखित है । इस प्रकार यह संविधान निर्माताओं के आदर्शों और उनकी महत्वाकांक्षाओं का उल्लेख करती है । संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संविधान सभा के अध्यक्ष सर अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर के शब्दों में, “संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है ।”
संविधान सभा की प्रारूप समिति के सदस्य के. एम. मुंशी ने प्रस्तावना को ‘हमारी संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य का भविष्यफल’ बताया । इसी प्रकार संविधान सभा के एक अन्य सदस्य पंडित ठाकुर दास भार्गव ने संविधान की प्रस्तावना को “संविधान की आत्मा” कहा ।
प्रस्तावना एक ऐसा स्थान है जहां से कोई सम्पूर्ण संविधान का मूल्यांकन कर सकता है ।
यूपीएससी परीक्षा की दृष्टि से प्रस्तावना के बारे में निम्नलिखित 2 तथ्य विद्यार्थियों को अवश्य पता होने चाहियें:-
- संविधान में इतना महत्वपूर्ण स्थान रखने के बावजूद प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है ना ही उसपर प्रतिबंध लगा सकता है,
- यह गैर -न्यायिक है और इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती । हालाँकि अपने बहुत सारे निर्णयों में उच्चतम न्यायलय ने प्रस्तावना को आधार बनाया है और इसके महत्त्व व प्रासंगिकता पर बल दिया है ।
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