क्रिकेट या फुटबॉल या किसी भी अन्य खेल में कुछ निश्चित नियम होते हैं । नियमों के बिना इन्हें खेलना या हार-जीत का निश्चय करना बहुत मुश्किल होगा । साथ ही, यह खेल नियमानुसार खेला जा रहा है या नहीं यह देखने के लिए, या फिर खेल के दौरान उपजे किसी विवाद के निपटारे के लिए हमें अम्पायर या रेफरी की भी जरूरत होती है । ठीक यही भूमिका किसी लोकतंत्र में एक संविधान की भी होती है । संविधान उन बुनियादी नियमों का एक समूह (set of rules) उपलब्ध कराता है जिनके आधार पर हम ‘व्यवस्था’ (system) को चलाते हैं या व्यवस्था के चलने की उम्मीद कर सकते हैं । इसे हम एक संहिता या ‘कोड’ के रूप में समझ सकते हैं । जबकि न्यायपालिका की तुलना यहाँ अम्पायर या रेफरी से की जा सकती है । न्यायपालिका ही संविधान की व्याख्या करती है और यह सुनिश्चित करती है की देश संविधान-सम्मत नियमों के आधार पर चल रहा है या नहीं ।
लोकतंत्र में संविधान की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत रखा जा सकता है:-
- संविधान नागरिकों में विश्वास जगाता है । लोग यह विश्वास कर पाते हैं कि उनके अधिकारों की प्राप्ति के प्रावधान संविधान में दिए गये हैं ।
- संविधान ही हमें यह बताता है कि समूची व्यवस्था (system) कैसे काम करेगी । इसके अंतर्गत चुनाव प्रणाली, सरकार का गठन (व उसका निलंबन भी), शक्तियों का बंटवारा (division of powers), अधिकारों की रक्षा इत्यादि जैसे गंभीर एवं जटिल मुद्दे आते हैं ।
- संविधान का महत्त्व इसलिए भी है कि यह सरकारों को भी दिशा दिखाने का कार्य करता है ।
- संविधान का एक अहम कर्तव्य यह भी है कि यह स्वयं की कमियों या बदलते समय के साथ महसूस होने वाले संशोधनों के लिए भी एक युक्ति (mechanism) हमें प्रदान करे। भारतीय संविधान में उपरोक्त सभी गुणों का अच्छा समावेश देखने को मिलता है।
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