कपास (cotton) भारत में सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों (cash crops) में से एक है और यह कृषि अर्थव्यवस्था के साथ – साथ औद्योगिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण । भारत में कपास 60 लाख किसानों को प्रत्यक्ष आजीविका प्रदान करता है और अप्रत्यक्ष रूप से इसकी संबद्ध प्रक्रियाओं जैसे व्यापार और प्रसंस्करण में लगभग 4- 5 करोड़ लोगों को रोजगार देता है । भारत के सबसे बड़े उद्योग सूती वस्त्र उद्योग (textile industry) के लिए यह कच्चे माल के रूप में कार्य करता है । भारत के ऐसे राज्य जहाँ काली मिट्टी पाई जाती है – जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु – वहां इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है । इस लेख में हम कपास की खेती से जुड़ी जानकारियों पर चर्चा करेंगे ।
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कपास की फसल कहाँ उगाई जाती है?
भारत में, कपास 9 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में उगाया जाता है । उत्तरी क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान, मध्य क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु । इसके अलावा, उड़ीसा में भी कपास उगाया जाता है । कपास के 4 प्रकार होते हैं:
गॉसिपियम हिर्सुटम – यह मध्य अमेरिका, मैक्सिको, कैरिबियन मूल की प्रजाति है ।
गॉसिपियम बार्बडेंस – यह लंबे रेशे वाले कपास के रूप में जाना जाता है, जो उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका मूल की प्रजाति है ।
गॉसिपियम अर्बोरियम – यह कपास, भारत और पाकिस्तान मूल की प्रजाति है ।
गॉसिपियम हर्बेसियम – यह दक्षिणी अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप मूल की प्रजाति है ।
कपास एक रेशेदार फसल है । इसमें नरम, व स्थिर रेशे (फाइबर) होते हैं जिनका कपड़ा उद्योग में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है । फाइबर लगभग शुद्ध सेल्यूलोज से बना होता है और इसमें वैक्स, वसा और पानी के कुछ अंश होते हैं । कपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय प्रदेशों में उगाया जाता है । खेत की परिस्थितियों में बेहतर अंकुरण के लिए न्यूनतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है । वनस्पति वृद्धि के लिए इष्टतम तापमान 21-27 डिग्री सेल्सियस है और यह 43 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को सहन कर सकता है । लेकिन 21 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान फसल के लिए हानिकारक है । फल लगने की अवधि के दौरान ठंडी रातों के साथ गर्म दिन अच्छे बीजकोष और फाइबर के विकास के लिए अनुकूल होते हैं ।
कपास विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती है, जिसमें उत्तर भारत की अच्छी तरह से जल निकासी वाली गहरी जलोढ़ मिट्टी से लेकर मध्य क्षेत्र में अलग -अलग गहराई की काली चिकनी मिट्टी और दक्षिण क्षेत्र में काली और मिश्रित काली और लाल मिट्टी शामिल है । कपास लवणता के प्रति अर्ध -सहिष्णु है और जल जमाव के प्रति संवेदनशील है और इस प्रकार अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी इसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
कपास की फसल कब उगाई जाती है?
कपास की बुवाई का मौसम अलग-अलग क्षेत्रों में और फसल की नस्ल के आधार पर काफी भिन्न होता है और आम तौर पर उत्तर भारत में यह (अप्रैल-मई) होता है जबकि दक्षिण की ओर इसकी बुआई में देरी होती है । कपास देश के प्रमुख भागों में खरीफ की फसल है -जैसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्से । इन क्षेत्रों में, सिंचित फसल मार्च से मई में बोई जाती है और मानसून की शुरुआत के साथ जून- जुलाई में वर्षा आधारित फसल होती है । तमिलनाडु में, सिंचित और वर्षा आधारित फसल का प्रमुख भाग सितंबर -अक्टूबर में लगाया जाता है, जबकि दक्षिणी जिलों में फसल की बुवाई नवंबर तक बढ़ा दी जाती है । कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में, देसी कपास आमतौर पर अगस्त-सितंबर में बोई जाती है । इसके अलावा, तमिलनाडु में गर्मियों की बुवाई फरवरी-मार्च के दौरान भी की जाती है । आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की धान की परती भूमि में कपास की बुवाई दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से जनवरी के मध्य तक होती है ।
कपास की खेती के लिए 4 साल में एक बार बारहमासी खरपतवारों को नष्ट करने के लिए गहरी जुताई की सलाह दी जाती है । मानसून- पूर्व बारिश शुरू होने से पहले खेत को तैयार किया जाता है । नमी संरक्षण और खरपतवार प्रबंधन के लिए सूखी भूमि में मेड़ों और खांचों पर बुवाई की जाती है । कपास की आमतौर पर बाढ़- सिंचाई (flood irrigation) होती है । हालांकि ड्रिप-इरिगेसन विधि द्वारा सिंचाई अधिक प्रभावी और पानी की बचत होती है । ड्रिप सिंचाई विशेष रूप से मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों के संकरों में लोकप्रिय हो रही है । उपलब्ध मिट्टी की नमी के 50-70% की कमी पर कपास की सिंचाई की जानी चाहिए । उत्तरी क्षेत्र की बलुई दोमट भूमि में सामान्यतः 3-5 सिंचाइयां दी जाती हैं । तमिलनाडु की कम जल धारण क्षमता वाली लाल रेतीली दोमट मिट्टी पर 10-12 हल्की सिंचाई की जा सकती है ।
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