आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 (Essential Commodities Act) जनता को कुछ बुनियादी एवं अत्यंत महत्वपूर्ण वस्तुओं के उत्पादन ,वितरण , आपूर्ति एवं व्यापार- वाणिज्य के नियंत्रण का अधिकार देने के उद्देश्य से बनाया गया था । यह अधिनियम 1 अप्रैल 1955 को संसद में पेश किया गया था । इस अधिनियम का उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति , वितरण एवं व्यापार- वाणिज्य को प्रबंधित और विनियमित करने के लिए नियम बनाना था , जिससे उन्हें उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराया जा सके । आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों के माध्यम से, सरकार उर्वरक, दाल, खाद्य तेल, अनाज, तिलहन, पेट्रोलियम और संबद्ध उत्पादों, और फल और सब्जी के बीज जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने का प्रयास करती है । ये वस्तुएं हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण हैं और बाधित होने पर इन वस्तुओं की आपूर्ति लोगों के सामान्य जीवन को प्रभावित कर सकती है । हाल ही में, सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत ‘मास्क’ और ‘हैंड सैनिटाइज़र’ को भी शामिल किया है । हम जानते हैं कि हाल ही में कोरोना वैश्विक महामारी (COVID- 19) ने देश में कई जगहों पर मास्क और हैंड सैनिटाइज़र की आपूर्ति की समस्या उत्पन्न कर दी थी । अतः सरकार का यह आदेश इन जिंसों की कमी और स्टॉक निर्माताओं की कथित जमाखोरी के कारण इनकी कीमतों में अचानक और तेज उछाल की खबरों के कारण आया है । इस लेख में हमारा उद्देश्य आवश्यक वस्तु अधिनियम के बारे में विस्तार से चर्चा करना है । अर्थव्यवस्था से जुड़े हमारे कुछ अन्य हिंदी लेख देखें :
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आवश्यक वस्तु अधिनियम क्या है?
आवश्यक वस्तु अधिनियम ऐसा अधिनियम है जो सरकार को उपभोक्ता लाभ के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है । इस अधिनियम के अनुसार, आवश्यक वस्तुओं को अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी वस्तु के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । इसके अंतर्गत निम्नलिखित वस्तुएं आती हैं- चीनी ,सब्जियों और फलों के लिए बीज, पेट्रोलियम, तिलहन, अनाज, खाद्य तेल, उर्वरक, दाल । ये सभी वस्तुएं कुल 8 श्रेणियों में रखे गये हैं : जैसा कि उपरोक्त है यह अधिनियम जनता को कुछ बुनियादी एवं अत्यंत महत्वपूर्ण वस्तुओं के उत्पादन ,वितरण , आपूर्ति एवं व्यापार- वाणिज्य के नियंत्रण का अधिकार देने के उद्देश्य से बनाया गया था । यह अधिनियम उस समय बनाया गया था जब देश खाद्य संकट से जूझ रहा था । अतः जीवनयापन के लिए आवश्यक इन वस्तुओं की जमाखोरी न हो और इनकी निरंतर आपूर्ति बनी रहे यह सुनिश्चित करने के लिए इस नियम को पारित किया गया । यह अधिनियम सरकार को इन वस्तुओं के मूल्य नियंत्रित करने की शक्ति भी प्रदान करता है । उपभोक्ता मंत्रालय खाद्य एवं आपूर्ति विभाग इसे लागू करता है । हालाँकि हालिया संशोधन में इस अधिनियम में कई परिवर्तन भी किये गये हैं जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे। किंतु किसानों के विरोध के कारण सरकार को यह संशोधन अधिनियम वापस लेना पड़ा ।
आवश्यक वस्तु अधिनियम की विशेषताएं : इस अधिनियम के अंतर्गत एक बार जब सीमा तय हो जाती है और प्रकाशित हो जाती है, तो राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई कर सकते हैं कि कोई भी थोक व्यापारी, खुदरा विक्रेता, आयातक या निर्यातक निर्दिष्ट सीमा से अधिक वस्तुओं को जमा न कर सके । राज्य थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, दुकानदारों और ऐसे ही अन्य व्यापारियों, जो सीमा का पालन नहीं करते हैं और वस्तुओं की जमाखोरी करते हैं, को दंडित करके इस अधिनियम के तहत कार्रवाई कर सकता है । राज्य सरकार छापेमारी करने और अधिशेष माल की नीलामी के लिए पुलिस व प्रशासन की मदद ले सकती है । भारत के उत्पादन, आपूर्ति और आवश्यक वस्तुओं के वितरण को नियंत्रित करने हेतु संसद द्वारा अधिनियमित आवश्यक वस्तु अधिनियम की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं । अधिनियम के तहत वस्तुओं में उर्वरक, दवाएं, खाद्य तेल और दालें, पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं । इन सभी वस्तुओं को कुल 8 श्रेणियों में रखा गया है । वर्तमान में इस अधिनियम में (1) ड्रग्स, (2) उर्वरक, (3) खाद्य तिलहन एवं तेल समेत खाने की चीजें, (4) कपास से बना धागा, (5) पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, (6) कच्चा जूट और जूट वस्त्र, (7) खाद्य-फसलों के बीज और फल तथा सब्जियां, पशुओं के चारे के बीज, कपास के बीज तथा जूट के बीज और (8) फेस मास्क तथा हैंड सैनिटाइजर शामिल हैं । हालाँकि संसद ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम विधेयक, 2020 को मंजूरी दे दी है , जिसके जरिये अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है । इसका अर्थ यह है कि अब निजी खरीदारों द्वारा इन वस्तुओं के भंडारण या जमा करने पर सरकार का नियंत्रण नहीं होगा । इस संशोधन का देश में कई लोगों ने विरोध भी किया । हालांकि संशोधन के तहत यह भी व्यवस्था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है । केंद्र सरकार जरूरत पड़ने पर नई वस्तुओं को इस सूचि में शामिल कर सकती है और स्थिति में सुधार होने पर उन्हें सूची से बाहर भी कर सकती है । अधिनियम के तहत, सरकार “आवश्यक वस्तु” घोषित किसी भी डिब्बाबंद (पैकेज्ड) उत्पाद का अधिकतम खुदरा मूल्य (M.R.P) भी तय कर सकती है ।
आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत, 1972 से 1978 तक के आदेशों के माध्यम से केंद्र सरकार की शक्तियां पहले ही राज्यों को प्रत्यायोजित की जा चुकी हैं । राज्य/संघ राज्य क्षेत्र अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं ।
आवश्यक वस्तु अधिनियम : ख़बरों में क्यों ?
मई 2020 में, भारत की वित्त मंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि सरकार केवल अकाल या युद्ध जैसी असाधारण परिस्थितियों के दौरान लागू होने वाले आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन करेगी । वित्त मंत्री ने दंडात्मक उपायों को रोकने के अलावा आपूर्ति श्रृंखला मालिकों, प्रोसेसर और निर्यातकों के लिए स्टॉक सीमा को हटाने का प्रस्ताव रखा । इसके अलावा, दलहन, आलू, अनाज, प्याज, तिलहन और खाद्य तेलों जैसी जिंसों को नियंत्रण मुक्त करने की कार्ययोजना है ताकि किसान बेहतर कीमतों की तलाश कर सकें ।
सरकार ने 5 जून 2020 को एक अध्यादेश के रूप में आवश्यक वस्तु (संशोधन) को प्रख्यापित किया । लोक सभा ने अंततः 15 सितंबर 2020 को आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम और राज्य सभा ने 22 सितंबर 2020 को भारतीय कृषि अधिनियमों (कृषि विधेयकों) के हिस्से के रूप में इसे मंजूरी दे दी । भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 27 सितंबर 2020 को इस अधिनियम को मंजूरी दे दी ।
आवश्यक वस्तु अधिनियम की आवश्यकता एवं महत्त्व
आवश्यक वस्तु अधिनियम के महत्त्व की चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं । इस अधिनियम की अनुपस्थिति में, उपभोक्ता अवसरवादी व्यापारियों, दुकानदारों और जमाखोरों के लालच का शिकार हो जाते हैं । ‘आवश्यक वस्तु’ के रूप में चिन्हित वस्तुएं अनुचित मुनाफाखोरी के अधीन नहीं हैं । यह अधिनियम सरकार को ऐसी वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने के साथ -साथ उनके उत्पादन ,वितरण , आपूर्ति एवं व्यापार- वाणिज्य को भी नियंत्रित करने का अधिकार देता है, और इस प्रकार उपभोक्ताओं के अधिकारों (consumer rights) को सुनिश्चित करता है । कई बार, वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, सरकार द्वारा इस अधिनियम से प्राप्त शक्ति का प्रयोग किया गया है । अधिनियम कालाबाजारी करने वालों और जमाखोरों के खिलाफ एक हथियार है जो बाजार के सुचारू कामकाज में बाधा डालते हैं । इस अधिनियम के कारण, राज्य एजेंसियों के पास अपराधियों को पकड़ने और उन्हें दण्डित करने के लिए छापेमारी करने की शक्ति है । यह अधिनियम एजेंसियों को दुकानों के माध्यम से छापेमारी में जब्त सामान को उचित मूल्य पर बेचने का अधिकार भी देता है; या कुछ परिस्थितियों में, अतिरिक्त स्टॉक की नीलामी भी की जा सकती है ।
समस्याएँ : देश में आवश्यक वस्तु अधिनियम को ले कर कुछ समस्याएँ भी हैं । भारत में फसलें अधिकांशतः मौसमी होती हैं । अतः वस्तुओं की सर्वकालिक आपूर्ति को बनाए रखने के लिए, पर्याप्त भण्डार रखना आवश्यक है । लेकिन इसमें समस्या यह है कि इससे जमाखोरी और वास्तविक भंडारण के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है ! कई बार खराब मौसम, कम बारिश या नुकसान की स्थिति कीमतों में बढ़ोतरी में योगदान करती है । यदि ऐसी फसलों की कीमतों जरूरत से ज्यादा नियंत्रण किया जाये तो किसानों के लिए ऐसी फसलों को उगाना मुश्किल हो जाता है । ठीक इसी तरह यदि भंडारण की सीमा बार-बार नियंत्रित की जाये तो व्यापारियों को बेहतर भंडारण के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश करने में असुविधा हो सकती है ।
आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 के तहत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन
आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 के माध्यम से, सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में निम्नलिखित परिवर्तन किए हैं :
- अकाल, युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं आदि जैसी असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर; सामान्य परिस्थितियों के लिए प्याज, आलू, अनाज, खाद्य तेल, तिलहन आदि जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है । यह अधिनियम सरकार को ‘आवश्यक’ कहे जाने वाले कुछ वस्तुओं को इस सूचि में जोड़ने या इससे हटाने की अनुमति देता है ।
- यह नियम बाजार की स्थितियों और कीमतों में तेजी पर निर्भर करेगा ।
- सामान्य वितरण के लिए खाद्य भंडार किसी भी प्रतिबंध से रहित होगा ।
- एक प्रतिस्पर्धी कृषि बाजार की स्थापना की जाएगी ।
- ‘कोल्ड स्टोरेज’ सुविधाओं में निवेश करके कृषि- अपशिष्ट को कम- से- कम करने का प्रयास किया जाएगा।
- किसानों को एक स्थिर मूल्य प्रदान करने का प्रयास किया जाएगा ।
- भविष्य के नियम बढ़ती कीमतों के प्रक्षेपवक्र पर आधारित होंगे । बागवानी उत्पादों के मूल्य में 100% वृद्धि होने पर वे प्रभावी हो जाएंगे । जबकि गैर- क्षय योग्य कृषि खाद्य पदार्थों के लिए, सीमा 50% की वृद्धि के लिए निर्धारित है ।
- आम वितरण के लिए बने खाद्य भंडार पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा ।
उल्लेखनीय है कि किसानों के विरोध के कारण सरकार को यह संशोधन अधिनियम वापस लेना पड़ा ।
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संशोधन का विरोध : आवश्यक वस्तु अधिनियम में किये गये संशोधनों के विरोध का मुख्य कारण यह था कि एक आशंका थी कि यह जन वितरण प्रणाली (P.D.S) पर बुरा असर डाल सकता है । इससे जमाखोरी बढ़ सकती है और बड़े कॉर्पोरेट घरानों, जिनका एकमात्र उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है, की घुसपैठ इस क्षेत्र में बढ़ सकती है । अंततः किसानों के शोषण की सम्भावना है । आवश्यक वस्तु अधिनियम को आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 के माध्यम से 2020 भारतीय कृषि अधिनियम (जिसे कृषि बिल के रूप में भी जाना जाता है) के हिस्से के रूप में संशोधित किया गया था ।
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में लागू किया गया था और इसका उपयोग ‘आवश्यक’ वस्तुओं की आपूर्ति, वितरण और उत्पादन के प्रबंधन के लिए लक्षित है । इसके जरीय सरकार इन वस्तुओं को स्वीकार्य कीमतों पर उपभोग के लिए उपलब्ध कराती है । यदि किसी वस्तु की आपूर्ति कम हो जाती है और परिणामस्वरूप उसकी कीमत बढ़ जाती है, तो केंद्र एक विशिष्ट अवधि के लिए स्टॉक रखने की सीमा निर्धारित कर सकता है । एक बार सीमा निर्धारित हो जाने के बाद, राज्य यह सुनिश्चित करेंगे कि थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, आयातकों आदि को निर्दिष्ट मात्रा से अधिक वस्तु जमा करने से रोकने के लिए दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जाएं । हालाँकि यह राज्य पर निर्भर करता है कि वह किसी भी प्रकार का प्रतिबंध लगाए । लेकिन यदि प्रतिबंध लगाया जाता है तो राज्य किसी भी ऐसे दुकानदार और व्यापारियों को दंडित कर सकेगा जो माल की जमाखोरी या कालाबाजारी में लिप्त पाए जाते हैं । |
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