24 जुलाई 2022 : समाचार विश्लेषण
A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: राजव्यवस्था:
भारतीय संविधान:
C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E.सम्पादकीय: अर्थव्यवस्था:
राजव्यवस्था
F. प्रीलिम्स तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। G.महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : |
---|
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
राजव्यवस्था
PSA के तहत गिरफ्तार जम्मू-कश्मीर के युवाओं के परिजन उच्चतम न्यायालय गए
विषय: भारतीय संविधान- विकास, विशेषताएं, महत्वपूर्ण प्रावधान
मुख्य परीक्षा: भारत में निवारक निरोध कानून
संदर्भ: सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत निवारक हिरासत में लिए गए कई युवाओं के परिवार वालों ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर करने का फैसला किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनके परिजनों को अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए “जेल के बाहर स्थानांतरित कर दिया गया और उन्हें संपर्क रहित करके रखा गया है।
जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 क्या है?
- यह एक निवारक निरोध कानून है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को ख़राब करने से रोकने के लिए हिरासत में लिया जाता है।
- यह या तो संभागीय आयुक्त या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक प्रशासनिक आदेश द्वारा लागू किया जाता है, न कि पुलिस द्वारा निरोध आदेश के माध्यम से।
- यद्यपि PSA केवल जम्मू और कश्मीर में लागू है, लेकिन यह केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारों के निवारक निरोध कानून राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के समान है।
- पिछले वर्ष उपराज्यपाल द्वारा पारित एक संशोधन ने जम्मू-कश्मीर में PSA के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को अब राज्य के बाहर की जेलों में बंद करने की अनुमति दी है।
एक बार PSA लगने के बाद क्या होता है?
- इस अधिनियम के तहत जब किसी व्यक्ति को हिरासत में लिया जाता है, तो जिलाधिकारी लिखित रूप में व्यक्ति को 05 दिनों के भीतर हिरासत में लेने का कारण बताता है (असाधारण परिस्थितियों में 10 दिन)
- इस आधार पर हिरासत में लिया गया व्यक्ति आदेश के खिलाफ अभ्यावेदन दे सकता है।
- जिलाधिकारी के पास यह विवेकाधिकार भी होता है कि यदि तथ्य “जनहित” के विरुद्ध हैं तो वह सभी तथ्यों का खुलासा न करे।
- जिलाधिकारी को 04 सप्ताह के भीतर एक सलाहकार बोर्ड के समक्ष निरोध आदेश प्रस्तुत करना होता है, जिसमें उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अध्यक्ष के रूप में और तीन सदस्य शामिल होते हैं।
- जिलाधिकारी को हिरासत में लिए गए व्यक्ति द्वारा दिए गए अभ्यावेदन को भी प्रस्तुत करना होता है।
- हिरासत की तारीख से 06 सप्ताह के भीतर सलाहकार बोर्ड सरकार को एक बाध्यकारी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जो यह निर्धारित करेगी कि हिरासत जनहित में है या नहीं।
इसे दमनकारी क्यों माना जाता है?
- यह बिना किसी औपचारिक आरोप और मुकदमे के हिरासत को सक्षम बनाता है।
- यह किसी ऐसे व्यक्ति पर जो पहले से ही पुलिस हिरासत में है, या जो अदालत द्वारा बरी कर दिया गया है, या किसी व्यक्ति पर जिसे अदालत द्वारा जमानत दिया ही गया हो, उसके तुरंत बाद लगाया जा सकता है।
- यह हिरासत दो वर्ष तक की हो सकती है।
- व्यक्तियों को हिरासत में लिए जाने के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती है और उन्हें आपराधिक अदालत के समक्ष जमानत याचिका दायर करने का अधिकार नहीं होता है।
- साथ ही, जिस जिलाधिकारी ने यह आदेश पारित किया है, उसे अधिनियम के तहत अभियोजन या किसी कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा प्राप्त है।
- हिरासत में लिए गए व्यक्ति के रिश्तेदारों द्वारा उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर के माध्यम से इस प्रशासनिक निवारक निरोध आदेश को चुनौती दी जा सकती है और यही एकमात्र तरीका है।
- हालांकि, अगर आदेश रद्द कर दिया जाता है, तो सरकार एक और आदेश पारित कर सकती है और उसी व्यक्ति को फिर से हिरासत में ले सकती है।
- एक अनौपचारिक डेटा का अनुमान है कि इस वर्ष अब तक लगभग 200 युवा PSA के तहत हिरासत में हैं।
- चूँकि जम्मू-कश्मीर में अधिकांश जेलें भरी हुई हैं इसलिए हिरासत में लिए गए लोगों को अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जेलों में स्थानांतरित कर दिया गया है।
- इस मनमाने कदम के कारण, परिवार बंदियों के साथ संवाद नहीं कर सकते हैं और बंदियों को भी प्रभावी कानूनी उपाय नहीं मिल पा रहे हैं।
बंदियों के लिए उपलब्ध संवैधानिक और अन्य सुरक्षा उपाय:
- भारत में निवारक निरोध के मामलों में संविधान के अनुच्छेद 22 में सुरक्षा उपाय का प्रावधान है।
- उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम के तहत शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के अनिवार्य अनुपालन की सलाह दी है।
- इसलिए, जिलाधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि निरोध आदेश कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुपालन में हो; इन प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के किसी भी उल्लंघन को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा।
भावी कदम:
- इस अधिनियम को अखिल भारतीय कानून के अनुरूप संशोधित किया जाना चाहिए।
- जम्मू-कश्मीर प्रशासन को शांति स्थापना में तेजी लाने और राजनीतिक समाधान खोजने के लिए राजनीतिक नेताओं के खिलाफ इस अधिनियम का उपयोग करने में संयम का प्रयोग करना चाहिए।
- राज्य के बाहर की जेलों में व्यक्तियों को हिरासत में रखने की अनुमति देने संबंधी हालिया संशोधन को समाप्त किया जाना चाहिए।
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
मंकीपॉक्स एक ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’
विषय: स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे
मुख्य परीक्षा: जूनोटिक रोग और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव
संदर्भ: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंकीपॉक्स को ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ के रूप में वर्गीकृत किया
भूमिका:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक मंकीपॉक्स के प्रकोप को आधिकारिक तौर पर “अंतरराष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल” घोषित किया है, इसके बाद यह “महामारी” के रूप में वर्गीकृत हो सकता है।
- हाल के प्रकोप ने 14,500 से अधिक लोगों को प्रभावित किया है और 72 देशों में 03 लोगों की मृत्यु हुई है।
- वर्तमान में सबसे अधिक मामले यूरोपीय और अमेरिकी देशों में दर्ज किए गए हैं।
- वर्तमान में इस बीमारी का प्रकोप मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में समलैंगिक, उभयलिंगी और अन्य पुरुषों में है, जिनका पुरुषों के साथ यौन संबंध है, तथा जो सामाजिक और यौन नेटवर्क में शामिल हैं।
- भारत में अब तक 03 मामले दर्ज किए गए हैं।
‘अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ घोषणा का क्या अर्थ है?
- यह घोषणा “एक असाधारण घटना है, जो अंतरराष्ट्रीय प्रसार के माध्यम से अन्य देशों के लिए एक सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करती है”।
- मंकीपॉक्स पर वर्तमान घोषणा “अस्थायी” है और हर तीन महीने में इसकी समीक्षा की जाती है।
- दिशा निर्देश देशों को निगरानी बढ़ाने, जागरूकता फैलाने और यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करते हैं कि जोखिम वाले समूहों की निंदा नहीं की जाए।
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
भारतीय संविधान:
मीडिया कंगारू कोर्ट चला रहा है
विषय: विभिन्न अंगों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र और संस्थान
मुख्य परीक्षा: मीडिया- लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
संदर्भ: हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी.रमन्ना ने जटिल मुद्दों पर “कंगारू कोर्ट” चलाने वाले मीडिया पर अपनी नाराजगी व्यक्त की।
कंगारू कोर्ट क्या है:
- यह एक ऐसा न्यायालय है जो कानून या न्याय के स्वीकृत मानकों की अवहेलना करता है और जिस क्षेत्र में वह चलती है उस क्षेत्र का कोई आधिकारिक आधार नहीं होता है।
- यह निर्धारित प्रक्रिया की उपेक्षा करता है और एक पूर्वाग्रही निष्कर्ष पर पहुंचता है।
- यह शब्द एक वैध न्यायिक प्राधिकरण द्वारा आयोजित अदालत पर भी लागू हो सकता है जो जानबूझकर न्यायालय के कानूनी या नैतिक दायित्वों की अवहेलना करता है।
लोकतंत्र पर मीडिया ट्रायल का प्रभाव:
- मीडिया ट्रायल में किसी भी मामले में माननीय न्यायालयों के निर्णय से पहले या बाद में टेलीविजन, सोशल मीडिया या समाचार पत्र के माध्यम से किसी व्यक्ति की दोषसिद्धि की पुष्टि की जा रही है।
- मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि मीडिया ने लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जाकर, लोगों को प्रभावित किया है और व्यवस्था को नुकसान पहुंचा कर अपने उत्तरदायित्व का उल्लंघन किया है।
- कंगारू कोर्ट में चल रहे मीडिया ट्रायल भारतीय कानूनों में स्थापित प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं।
- यह जांच एजेंसियों और न्यायपालिका की मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करता है, जिससे देरी होती है।
- अदालतों में लंबित मुद्दों पर मीडिया में गैर-सूचित, पक्षपाती और एजेंडा संचालित बहस न्याय वितरण को प्रभावित करती है।
- चरम, पूर्वाग्रह से ग्रस्त मीडिया ट्रायल भी विषयों की गोपनीयता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को प्रभावित करते हैं जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार के विरुद्ध है।
- मीडिया ट्रायल में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होता है जो कि लोकतंत्र का मुख्य भाग है।
मीडिया की स्वतंत्रता:
- न्यायपालिका द्वारा व्यक्त की गई प्रमुख चिंताएं “मीडिया द्वारा ट्रायल ” और “पूर्वाग्रह” हैं। कानून की निर्धारित प्रक्रिया में लोगों पर विधिक अदालतों द्वारा मुकदमा चलाया जाना चाहिए और मीडिया द्वारा उन्हें बदनाम नहीं किया जाना चाहिए।
- अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के एक उपसमुच्चय के रूप में, प्रेस की स्वतंत्रता भी निजी व्यक्तियों पर लगाए गए युक्तियुक्त प्रतिबंधों के अधीन है।
नियामक प्रावधान:
- भारतीय प्रेस परिषद ने निष्पक्ष और सटीक रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर बल देते हुए भारत में समाचार रिपोर्टिंग के मानकों में सुधार हेतु विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए हैं।
- मानदंड में यह निर्धारित किया गया है कि न्यायपालिका की किसी भी आलोचना को बहुत सावधानी से प्रकाशित किया जाना चाहिए, एकपक्षीय स्वर के साथ एकतरफा अनुमानों से बचना चाहिए। लेकिन इन मानदंडों को कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है, और बड़े पैमाने पर इसका उल्लंघन किया जाता है।
- भारतीय प्रेस परिषद के पास पूर्वाग्रही मीडिया रिपोर्टों के प्रकाशन को विनियमित करने के लिए आपराधिक अवमानना की शक्तियां हैं।
सारांश: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में, समाज में मीडिया की भूमिका व्यापक है। सूचित करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जिससे लोगों को वंचित नहीं किया जा सकता है। इसलिए, लोकतंत्र के कामकाज के लिए स्वतंत्र और स्वस्थ प्रेस आवश्यक है। .
मीडिया की जिम्मेदारी उसकी पहुंच में वृद्धि के साथ बढ़ती है। यह आवश्यक है कि मीडिया लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में अपनी स्थिति में नागरिक समाज और सरकार की मदद से स्वयं को मजबूत करे। सत्ता के पृथक्करण के सिद्धांत का सम्मान करते हुए, मीडिया को लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा करनी चाहिए।
संपादकीय-द हिन्दू
सम्पादकीय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
अर्थव्यवस्था:
खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगाने को लेकर क्या है विवाद?
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे, संसाधन जुटाना, वृद्धि, विकास और रोजगार।
प्रारंभिक परीक्षा: जीएसटी परिषद; राजस्व तटस्थ दर
मुख्य परीक्षा: जीएसटी प्रणाली का युक्तिकरण
संदर्भ:
- 18 जुलाई से निर्धारित खाद्य पदार्थों और अनाज पर 5% वस्तु एवं सेवा कर (GST) लगाया गया, जो पैक, लेबल के रूप में बेचे जाते हैं, भले ही वे ब्रांडेड न हों।
- अब तक, इन वस्तुओं को वस्तु एवं सेवा कर (GST) से बाहर रखा गया था।
विवरण:
- जिन वस्तुओं पर नया कर लागू होगा उनमें दही, लस्सी, छाछ, मुरमुरे, गेहूं, दालें, जई, मक्का और आटा शामिल हैं।
- विशेष रूप से निर्धारित खाद्य पदार्थों को खुले में बेचे जाने पर जीएसटी से छूट दी जाएगी। साथ ही, 25 किलोग्राम से अधिक वजन वाले पैक सामानों पर जीएसटी नहीं लगेगा।
- जीएसटी परिषद ने जून 2022 में 5% कर को मंजूरी दी। नए कर की सिफारिश जीएसटी परिषद के मंत्रियों के समूह (GOM) द्वारा कर दरों को युक्तिसंगत बनाने और विसंगतियों को दूर करने के लिए कदमों पर विचार करने के लिए की गई थी।
नए कर का औचित्य:
जीएसटी प्रणाली का युक्तिकरण:
- नया जीएसटी कर, कर छूट के साथ-साथ रियायती कर दरों को दूर करने के लिए जीएसटी संरचना में व्यापक परिवर्तन का हिस्सा है।
- केवल पंजीकृत ब्रांड के तहत बेची जाने वाली वस्तुओं पर कर लगाने के जीएसटी कर प्रावधान का प्रतिष्ठित निर्माताओं और ब्रांड मालिकों द्वारा ‘कर छूट का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग’ किया जा रहा था, जिससे इस खंड से जीएसटी राजस्व में धीरे-धीरे गिरावट आई थी।
कर राजस्व बढ़ाना:
- इस कदम का उद्देश्य जीएसटी से राजस्व में वृद्धि करना है।
- जीएसटी प्रणाली के शुभारंभ पर 15.5% की परिकल्पित ‘राजस्व-तटस्थ’ दर के मुकाबले, प्रभावी दर कम 11.6% थी।
चिंता:
- कर वृद्धि का प्रभाव भारत की उपभोक्ता मुद्रास्फीति दर पर पड़ सकता है जो हाल के दिनों में लक्षित 6% से अधिक रही है।
- उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, देश के 85% उपभोक्ता ऐसे गैर-ब्रांडेड सामानों का उपयोग करते हैं। इसलिए मूल्य वृद्धि जनसंख्या के इस बड़े हिस्से के उपभोग पैटर्न को प्रभावित कर सकती है।
- नए करों से व्यापारियों के साथ-साथ उनके लाभ मार्जिन में गिरावट का भी अनुमान है।
सारांश:
- नया जीएसटी कर, कर छूट के साथ-साथ रियायती कर दरों को दूर करने हेतु जीएसटी संरचना में व्यापक परिवर्तन का हिस्सा है। इससे प्रशासन को जीएसटी राजस्व को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
राजव्यवस्था एवं शासन
गर्भपात पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय से महिलाओं पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा ?
विषय: उच्चतम न्यायालय के अहम निर्णय
प्रारंभिक परीक्षा: एमटीपी अधिनियम- प्रावधान
संदर्भ:
- हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अविवाहित महिला को 24 सप्ताह में गर्भपात करने की अनुमति दी।
- गर्भपात करने के लिए महिला का तर्क यह था कि उसके साथी के साथ उसका रिश्ता बदल गया था जिसने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था और अविवाहित होने की स्थिति में बच्चा पैदा करने से समाज में कलंक का सामना करना पड़ता है।
- उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय उसी मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर आया है।
पृष्ठभूमि:
दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए अविवाहित महिला के गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि चूंकि वह अविवाहित थी और चूंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम में केवल विवाहित महिलाओं को 20 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति है, इसलिए वह गर्भपात कराने की पात्र नहीं होगी।
- साथ ही न्यायालय ने तर्क दिया कि इस स्तर पर गर्भावस्था को समाप्त करना भ्रूण को मारने के बराबर होगा।
विवरण:
- उच्चतम न्यायालय ने 2021 में MTP अधिनियम में संशोधन पर ध्यान दिया, जिसमें पति शब्द को साथी द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। न्यायालय ने इसकी व्याख्या इस अर्थ के रूप में की कि संबंधित कानून केवल वैवाहिक संबंधों तक ही सीमित नहीं है।
- पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को MTP अधिनियम के तहत इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित है, क्योंकि यह भेदभाव के समान होगा।
- MTP अधिनियम के अनुसार, सभी महिलाओं को 20 सप्ताह से पहले चिकित्सकीय गर्भपात कराने की अनुमति है। लेकिन केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को ही 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भपात कराने की अनुमति है – बलात्कार पीड़िता, नाबालिग और एक विवाहित महिला जिनके संबंध की स्थिति इस अवधि के दौरान बदल गई हो।
- उच्चतम न्यायालय ने महिला के स्वास्थ्य की जांच (MTP अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार) के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया ताकि यह निर्धारित हो सके कि क्या गर्भावस्था को समाप्त करने में मां के जीवन के लिए जोखिम नहीं है और यह सुरक्षित होगा। यदि यह ऐसा करना सुरक्षित पाया जाता है, तो वह गर्भपात करा सकती है।
निर्णय का महत्व:
- MTP अधिनियम के हिस्से के रूप में अविवाहित महिलाओं को शामिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय के कानून के विस्तार ने महिलाओं को समान परिस्थितियों में अब हर बार शीर्ष अदालत में समय और संसाधन लेने वाले कानूनी मार्ग का उपयोग किए बिना स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का विकल्प दिया है।
सारांश:
अविवाहित महिलाओं को MTP अधिनियम के हिस्से के रूप में शामिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय के कानून का विस्तार MTP कानून के ‘उद्देश्य और भावना’ के अनुरूप है, जो गर्भावस्था की समाप्ति का लाभ उठाने की मांग करने वालों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की सुविधा प्रदान करता है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. कोई भी देश CoWIN का निःशुल्क उपयोग कर सकता है
- भारत ने ओपन सोर्स CoWIN प्लेटफॉर्म को साझा किया है, जिससे कोई भी इच्छुक देश इस प्लेटफॉर्म का निःशुल्क लाभ उठा सकता है।
- भारत सरकार उस देश के चुने हुए वेंडरों को CoWIN तकनीक पर आवश्यकताओं के अनुसार काम करने के लिए प्रशिक्षित करेगी।
- CoWIN को साझा करने के लिए भारत ने गुयाना के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।
- यह कोविड-19 के खिलाफ सार्वभौमिक टीकाकरण प्राप्त करने में मदद करेगा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उपयोग के लिए इसे पुनः तैयार किया जाएगा।
इस प्लेटफॉर्म की अद्यतन विशेषताएं:
- किसी भी संभावित घुसपैठ के खिलाफ उपयोगकर्ता डेटा की सुरक्षा के लिए यह प्लेटफ़ॉर्म अत्याधुनिक डेटा सुरक्षा प्रणालियों से सुरक्षित है।
- बॉट्स, ब्राउज़र एक्सटेंशन या हैक प्रयासों को रोकने के लिए पोर्टल पर प्रति उपयोगकर्ता स्लॉट खोजों की संख्या 15-20 तक सीमित है।
- CoWIN द्वारा तृतीय पक्षों को साझा किया गया API एक संपूर्ण जांच प्रक्रिया के माध्यम से उचित सुरक्षा और ऑडिट सुनिश्चित करता है।
2. दक्षिण पश्चिमी घाट में चमगादड़ों के आवास मुख्य रूप से संरक्षित क्षेत्रों के बाहर स्थित।
- ‘जर्नल ऑफ मैमोलॉजी’ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि दक्षिणी पश्चिमी घाट में चमगादड़ों की 37 प्रजातियों के लिए उपयुक्त आवासों में से आधे से अधिक संरक्षित क्षेत्रों के बाहर स्थित हैं।
- अध्ययन में छह प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट शामिल थे – पेरियार टाइगर रिजर्व, अगस्त्यमलाई, नीलगिरी, अन्नामलाई, वायनाड-मुदुमलाई परिसर और ब्रह्मगिरी।
- अध्ययन के अनुसार, दक्षिणी पश्चिमी घाट दुर्लभ और लुप्तप्राय चमगादड़ प्रजातियों जैसे सलीम अली के फलों की चमगादड़ (लैटिडेंस सालिमली) और पोमोना राउंडलीफ बैट का निवास था।
- यह अध्ययन वन विभागों और स्थानीय लोगों को पश्चिमी घाट में चमगादड़ की प्रजातियों की रक्षा करने की योजना बनाने में मदद कर सकता है।
- संरक्षित क्षेत्रों के बाहर इन चमगादड़ों की मौजूदगी की पहचान करने से अधिकारियों को मानव समुदायों के बीच पारिस्थितिकी और पर्यावरण के लिए चमगादड़ के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद मिल सकती है।
चमगादड़ों को निम्नलिखित खतरों का सामना करना पड़ रहा है:
- मांस के लिए अवैध शिकार, विशेष रूप से सलीम अली के फलों की चमगादड़ (लैटिडेंस सालिमली)
- प्राकृतिक आवास का नुकसान
- विशेष रूप से महामारी के बाद स्थानीय समुदायों में इसके प्रति दुराग्रह ।
- केरल के शोधकर्ताओं ने कटहल में कवक रोग का पता लगाया
- केरल कृषि विश्वविद्यालय ने कटहल (आर्टोकार्पस हेटरोफिलस) में एक नए कवक रोग की सूचना दी है।
- यह पहली बार है कि भारत में कटहल में कवक एथेलिया रॉल्फ्सि द्वारा सड़ने की सूचना दी जा रही है।
- एथेलिया रॉल्फ्सि विभिन्न फसलों के लिए जोखिमपूर्ण है और इसलिए इस सूचना पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
- मृदा जनित कवक रोगज़नक़ के रूप में, एथेलिया रॉल्फ्सि की कई होस्ट है जो विभिन्न परिवारों से संबंधित व्यावसायिक रूप से खेती की जाने वाली विभिन्न फसलों पर हमला करती है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. चंद्रशेखर आजाद के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- उन्होंने 1923 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया।
- वे काकोरी षड्यंत्र में शामिल थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर:c
व्याख्या: Chandra Shekhar Azad और HSRA के बारे और अधिक पढ़ें।
प्रश्न 2. भारत द्वारा उर्वरक आयात और निर्यात के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
- म्यूरेट ऑफ पोटाश (MoP) उर्वरक के संबंध में, भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर है।
- यूरिया उर्वरक के संबंध में, भारत आत्मनिर्भर है और घरेलू उत्पादन के माध्यम से सभी मांगों को पूरा करने में सक्षम है।
विकल्प:
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: a
व्याख्या:
- भारत ने 2022 के पहले तीन महीनों में रूस से 7.74 लाख मीट्रिक टन उर्वरक का आयात किया है। 7.74 लाख मीट्रिक टन में से 47,000 मीट्रिक टन यूरिया है। इसलिए, कथन 2 गलत है।
- म्यूरेट ऑफ पोटाश (MoP) के लिए भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। भारत ने 2020-21 में 24.60 लाख मीट्रिक टन MoP का आयात किया।
- म्यूरेट ऑफ पोटाश के प्रमुख स्रोत इजरायल और लिथुआनिया हैं।
प्रश्न 3. 18वीं शताब्दी के आंग्ल-मैसूर युद्धों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- पहला आंग्ल-मैसूर युद्ध उत्तरी सरकार (Circars) क्षेत्र के नियंत्रण को लेकर लड़ा गया था तथा ब्रिटिश और हैदर अली के बीच मंगलौर की संधि पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ था।
- तीसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से गलत है/हैं?
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: c
आँग्ल-मैसूर युद्ध के बारें में और अधिक पढ़ें: First and Second war: Third and Fourth War
प्रश्न 4. बंदरगाह और सीमावर्ती जल निकाय के निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए।
बंदरगाह सीमावर्ती जल निकाय
- ओडेसा काला सागर
- रॉटर्डम (Rotterdam) उत्तरी सागर
- हांगकांग पूर्वी चीन सागर
- डाकार हिंद महासागर
उपर्युक्त युग्मों में से कितने सुमेलित हैं?
विकल्प:
- केवल एक युग्म
- केवल दो युग्म
- केवल तीन युग्म
- सभी चारों युग्म
उत्तर
व्याख्या
- युग्म 1 सही है, ओडेसा का बंदरगाह यूक्रेन का सबसे बड़ा बंदरगाह है और काला सागर बेसिन में सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक है।
चित्र स्त्रोत: Encyclopedia Britannica
- युग्म 2 सही है, रॉटर्डम बंदरगाह यूरोप का सबसे बड़ा बंदरगाह है और उत्तरी समुद्र क्षेत्र में स्थित है।
- युग्म 3 गलत है, हांगकांग बंदरगाह दक्षिण चीन सागर में स्थित है।
चित्र स्त्रोत: Encyclopedia Britannica
- युग्म 4 गलत है, डाकार बंदरगाह सेनेगल देश में उत्तरी अटलांटिक महासागर क्षेत्र में स्थित है।
चित्र स्त्रोत: CGTN, Africa
प्रश्न 5. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को सशक्त करता है कि वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने की प्रक्रिया और रीति का विवरण दे।
- वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: b
व्याख्या: अधिक जानकारी के लिए पढ़ें:Environment Protection Act, 1986
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
- प्री-पैकेज्ड और लेबल वाले खाद्य पदार्थों को अब कर के दायरे में क्यों लाया गया है? स्पष्ट कीजिए (10 अंक, 150 शब्द) (सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 – अर्थव्यवस्था)
- जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम क्या है? निवारक निरोध के विरुद्ध संवैधानिक सुरक्षा उपायों पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2, राजव्यवस्था)