जोहड़ और खड़ीन भारत में जल संरक्षण की परम्परागत तकनीक हैं । जोहड़ (Johad) उत्तरी भारत के राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखा जाने वाला ऐसा छोटा तालाब या पोखर होता है, जिसमें कई तरह के उपयोग के लिए जल एकत्रित किया जाता है । बारिश के मौसम में इसमें जल भर जाता है और फिर इसका प्रयोग मानवों व पशुओं के लिए किया जाता है । कई बार जोहड़ों के साथ स्थापत्य भी निर्मित किये जाते हैं । इन जोहड़ों में ईंट की सीढ़ियाँ और घाट बने होते हैं । राजस्थान के अलग- अलग हिस्सों में जोहड़ों के अलग नाम हैं । अलवर और भरतपुर में इसे जोहड़ ही कहा जाता है । बाड़मेर, बीकानेर, गंगानगर और जैसलमेर में इन्हें ‘सर’ (सरोवर) कहते हैं । जोधपुर में इन्हें ‘नाड़ा- नाड़ी’ कहते हैं । जोहड़ों की बनावट चांद के आकार की होती है । जोहड़ बनाते हुए इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पानी का वाष्पीकरण कम से कम हो ।
खड़ीन (Khadin) खेतों के किनारे वर्षा -जल को संग्रहीत करने की एक परम्परागत तकनीक है । इस प्रकार संग्रहीत जल से कृषि भूमि में पर्याप्त नमी पैदाकर उसमें फसल उत्पादन किया जाता है । राजस्थानी मरुस्थल जैसे क्षेत्र में खड़ीन जैसी तकनीकें अत्यंत महत्त्व की हैं । विशेषज्ञ इस तकनीक को जल- संग्रह की एक महत्त्वपूर्ण तकनीक के रूप में देखते हैं तथा इसे अन्य स्थानों पर अपनाना भी जरूरी मानते हैं । खड़ीन को ‘धोरा’ भी कहा जाता है । आजकल कई जगहों पर खड़ींन बनाते समय सीमेंट की दीवारों का प्रयोग किया जाने लगा है । इससे पानी के रिसाव की समस्या कम हो गई है ।
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