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राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव कौन करता है?

राज्यसभा के सदस्य राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से चुने जाते हैं । राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व बराबर नहीं है । यह राज्य की जनसँख्या पर निर्भर करता है । अधिक जनसंख्या वाले राज्य में राज्यसभा में कम जनसंख्या वाले राज्यों की तुलना में अधिक सीटें होती हैं । राज्यसभा का चुनाव एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा होता है । राज्य की जनसंख्या एक ऐसा कारक है जो राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व तय करता है । केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित राज्य सभा के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं, जिसका गठन इस उद्देश्य के लिए किया जाता है । इसके अलावा कला, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक सेवा के क्षेत्रों में उनके योगदान और विशेषज्ञता के लिए 12 लोगों को राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में नामित भी किया जाता है । यह राष्ट्रपति की विधायी शक्ति का हिस्सा है जो उसे संविधान द्वारा दी गई है । इस प्रकार राज्यसभा में कुल 3 प्रकार के सांसद होते हैं ।

राष्ट्रपति की अन्य विधायी शक्तियां

  • वह संसद की बैठक बुला सकता है अथवा कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है ।
  • वह लोकसभा को विघटित कर सकता है । 
  • वह संसद के संयुक्त अधिवेशन का आह्वान कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करेगा ।
  • वह प्रत्येक नए चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित कर सकता है ।
  • वह संसद में लंबित किसी विधेयक या अन्यथा किसी संबंध में संसद को संदेश भेज सकता है ।
  • यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हों तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है । इसी प्रकार यदि राज्यसभा के सभापति व उप-सभापति दोनों पद रिक्त हों तो वह राज्यसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है ।
  • वह साहित्य, विज्ञान, कला व समाज सेवा से जुड़े अथवा जानकार व्यक्तियों में से 12 सदस्यों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करता है ।
  • वह लोकसभा में दो आंग्ल- भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है ।
  • वह चुनाव आयोग से परामर्श कर संसद सदस्यों की निरर्हता के प्रश्न पर निर्णय करता है ।
  • संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश अथवा आज्ञा आवश्यक है । उदाहरण के लिए, भारत की संचित निधि (consolidated fund) से खर्च संबंधी विधेयक अथवा राज्यों की सीमा परिवर्तन या नए राज्य के निर्माण या संबंधी विधेयक ।
  • जब एक विधेयक संसद द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो वह उस विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है; अथवा विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है; अथवा विधेयक को (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) संसद के पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है । (यदि संसद विधेयक को संशोधन या बिना किसी संशोधन के पुनः पारित करती है तो राष्ट्रपति के लिए सहमति देना अनिवार्य होगा) 
  • राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपति: उस विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है; अथवा विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है, अथवा; राज्यपाल को निर्देश दे सकता है की उस विधेयक को (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) राज्य विधायिका के पुनर्विचार के लिए लौटा दे । यदि राज्य विधायिका विधेयक को पुनः राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है।
  • वह संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी कर सकता है । यह अध्यादेश संसद की पुनः बैठक के छह हफ्तों के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक है । वह किसी अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है ।
  • वह महानियंत्रक व लेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग व अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है । 
  • वह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादर एवं नागर हवेली एवं दमन व दीव में शांति, विकास व सुशासन के लिए विनियम बना सकता है । पुडुचेरी के भी वह नियम बना सकता है परंतु केवल तब जब वहाँ की विधानसभा निलंबित हो अथवा विघटित अवस्था में हो ।

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