देश के गरीब और छोटे और संकटग्रस्त किसानों की कृषि ऋण माफी, उनकी पहचान और मदद करने के उद्देश्य से नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) ने एक किसान संकट सूचकांक (Farmer Distress Index) विकसित करने की योजना बनाई है।
यह सूचकांक अल्पवृष्टि, अतिवृष्टि, मानसून, मिट्टी की नमी और तापमान में बदलाव, सूखा और सिंचाई के तहत क्षेत्र आदि को हर जिले में प्रमुख फसलों की उपज, असामान्य ठंड और भूमिगत जल की गहराई जैसे चर से मापेगा। इसके अलावा इस सूचकांक से किसान के लिए उपलब्ध व्यापार के अवसरों व एमएसपी समर्थन का भी इस सूचकांक द्वारा मूल्यांकन किया जाएगा। इसमें किसानों पर कर्ज और फसल बीमा तक उनकी पहुंच आदि को लेकर भी डाटा उपलब्ध रहेगा।
किसान संकट सूचकांक बेहद महत्वपूर्ण विषय है। इस विषय से संबंधित प्रश्न यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा के अर्थशास्त्र विषय या करेंट अफेयर्स के सेक्शन में पूछे जाने की बहुत अधिक संभावना है। किसान संकट सूचकांक के बारे में अंग्रेजी में पढ़ने के लिए Farmer Distress Index पर क्लिक करें।
इस लेख में, हम किसान संकट सूचकांक से संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जो परीक्षा के दृष्टिकोण से आवश्क है। उम्मीदवारों को परीक्षा के लिए विषय की प्रासंगिकता को समझने के लिए UPSC Prelims Syllabus in Hindi का ठीक से अध्ययन करना चाहिए।
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किसान संकट सूचकांक के बारे में
सभी किसानों को संकट पैकेज देने के बजाय, जैसा कि वर्तमान चलन में है, वित्तीय संस्थान और सरकार संकट की गंभीरता के आधार पर प्रभावित किसानों को पर्याप्त सहायता पैकेज पर सहमत हो सकते हैं। यह सूचकांक पूरे देश में सुसंगत नहीं रहेगा क्योंकि इसमें अलग-अलग जगहों पर अलग अलग तरह के नुकसान और संकट की वजह से उतार-चढ़ाव आएंगे। इस सूचकांक से सरकारों, वित्तीय उद्योग और बीमा कंपनियों को लाभ होगा।
इस सूचकांक में एक किसान की दुर्दशा को आमतौर पर उनकी उपज की तबाही की मात्रा से मापा जाता है, लेकिन इससे देश के अन्य हिस्सों के बहुत से संघर्षरत संकटग्रस्त किसान बाहर हो जाते हैं।
नाबार्ड के एक अध्ययन के अनुसार, यह किसान संकट सूचकांक प्रमुख कृषि मापदंडों जैसे मानसून वर्षा विचलन, अत्यधिक वर्षा, सूखा और शुष्क मौसम, तापमान और मिट्टी की नमी की विसंगतियों, जिले में प्रमुख फसलों की उपज, के अंश के बारे में उच्च आवृत्ति की जानकारी को शामिल कर सकता है।
रिमोट सेंसिंग, स्वायत्त मौसम स्टेशन, मोबाइल फोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से एकत्र किए गए मौसम डेटा, लाभार्थी संकटग्रस्त किसानों की सूची बनाने में सहायता कर सकते हैं।
(NABARD)
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) भारत की एक शीर्ष बैंक है। इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के मुम्बई में स्थित है। नोबार्ड बैंक को, भारत के कृषि ऋण से जुड़े क्षेत्रों, योजना और परिचालन के नीतिगत मामलों तथा ग्रामीण क्षैत्र की गतिविधियों के लिए मान्यता प्रदान दी गई है। नाबार्ड बैंक से जुड़े जरुरी तथ्य नाबार्ड बैंक की स्थापना 12 जुलाई 1982, को की गई थी। इसकी स्थापना शिवरामन समिति (शिवरामन कमिटी) की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। इसकी स्थापना के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम 1981 को लागू करने के लिए संसद में बिल पेश किया गया था। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development) ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण उपलब्ध कराने वाली प्रमुख एजेंसियों में से एक है। यह बैंक ग्रामीण लोगों के विकास एवं उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऋण उपलब्ध कराती है। नाबार्ड ने, कृषि ऋण विभाग (एसीडी (ACD) एवं भारतीय रिजर्व बैंक के ग्रामीण योजना और ऋण प्रकोष्ठ (रुरल प्लानिंग एंड क्रेडिट सेल) (आरपीसीसी (RPCC)) तथा कृषि पुनर्वित्त और विकास निगम (एआरडीसी (ARDC)) को प्रतिस्थापित कर अपनी जगह बनाई। नाबार्ड की स्थापना एक शीर्ष विकासात्मक बैंक के रूप में की गई थी। इसका उद्देश्य कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों के उन्नयन और विकास के लिए ऋण-प्रवाह सुविधाजनक बनाने के साथ उसे ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य संबंधित क्रियाकलापों को सहायता प्रदान करने, एकीकृत और सतत ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि सुनिश्चित करना है। |
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नाबार्ड की भूमिका
ग्रामीण समृद्धि के लिए एक सुविधा प्रदाता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए नाबार्ड बैंक को निम्न जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।
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किसान संकट सूचकांक का महत्व
नीति निर्माता और साथ ही सरकारें संकटग्रस्त किसानों की सहायता के लिए समयबद्ध और केंद्रित दृष्टिकोण की योजना बनाने के लिए इस सूचकांक का उपयोग कर सकती हैं।
संकट के प्रकार और उसकी तीव्रता के आधार पर सहायता एकमुश्त अनुदान, ऋण संशोधन और/या कुल ऋण मुक्ति का रूप ले सकती है।
व्यक्तिगत किसान सहायता, जिला सूचकांक के साथ-साथ व्यक्तिगत उत्पादक संकट के आधार पर तैयार की जा सकती है। इसके लिए किसान की भूमि की सिंचाई स्थिति, उनके द्वारा कृषि उत्पादन से राजस्व, जिले की औसत उपज, और राज्य औसत बिक्री मूल्य की तुलना में इस जिले के एपीएमसी बाजारों में औसत बिक्री मूल्य के आधार पर तय की जा सकती है।
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