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भारत में अग्नि सुरक्षा

शहरी क्षेत्रों में हर साल आग लगने की घटनाओं की बढ़ती संख्या के साथ, भारत में अग्नि सुरक्षा एक बड़ी चिंता का कारण बन गई है। लगातार हो रही आग लगने की बड़ी घटनाएं, भारत की निर्माण श्रृंखला के लिए एक गंभीर खतरा बनती जा रही है।

शहरों में हर साल आग लगने की कई घटनाएं होती है, जिनमें कई लोगों की मौत हो जाती है और कई लोग घायल हो जाते हैं। लेकिन इतना ही नहीं, आग लगने की इन घटनाओं से बड़ी मात्रा में संपत्ति जलकर नष्ट हो जाती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

भारतीय राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की नवीनतम विज्ञप्ति के अनुसार, 2019 में वाणिज्यिक भवनों में आग लगने से 330 लोगों की मौत हुई थी, जबकि व्यक्तिगत आवास या आवासीय भवनों में आग की घटनाओं में 6,329 से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।

आईएएस परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों को देश में जैविक, रासायनिक जैसे अन्य कई खतरों के साथ-साथ अग्नि संबंधित दुर्घटनाओं से होने वाले नुकसान के बारे में भी बुनियादी तथ्यों की जानकारी होना बेहद आवश्यक है। भारत में बढ़ते शहरीकरण के साथ अग्नि सुरक्षा एक बेहद महत्वपूर्ण विषय है। इससे संबंधित प्रश्न यूपीएससी 2023 मुख्य परीक्षा में पूछे जा सकते हैं। 

इस लेख में हम, आग से होने वाली दुर्घटनाओं, उन्हें नियंत्रित करने के लिए किए जाने वाले उपायों और आग लगने के कारणों के बारे में चर्चा करेंगे। इसी के साथ, भारत में अग्नि सुरक्षा के लिए मौजूदा नियमों और विनियमों के साथ नेशनल बिल्डिंग कोड़ (National Building Code) बारे में भी विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारत में अग्नि सुरक्षा से संबंधित तथ्य

  • आग लगने की घटनाओं में भारत तीसरे स्थान पर है। ये घटनाएं विशेष रूप से भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में होती हैं।
  • एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक देश के दो सबसे शहरीकृत राज्य महाराष्ट्र और गुजरात में देश की आग दुर्घटना में होने वाली मौतों का लगभग 30% हिस्सा हैं।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2015 में कुल 17,700 लोग आग लगने की घटनाओं के कारण मारे गए, यानी हर दिन 48 लोग।
  • इन मरने वालों में 62% महिलाएं थीं।
  • इंडिया रिस्क सर्वे 2018 के अनुसार, लगातार आग लगने की घटनाओं से व्यापार की निरंतरता और संचालन पर विपरित प्रभाव पड़ता है।
  • पिछली घटनाओं के अध्ययन करने पर पता चलता है कि आग लगने की अधिकांश दुर्घटनाएं तीन प्रमुख कारणों से होती हैं –
  • बिजली का शार्ट सर्किट या गैस सिलेंडर/स्टोव फटना
  • मानव की लापरवाही
  • गलत तरीके से बनाई गई आदतें 

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भारत में अग्नि सुरक्षा से संबंधित प्रावधान

संवैधानिक प्रावधान : अग्निशमन सेवा एक राज्य का विषय है और अनुच्छेद 243 (डब्ल्यू) के तहत भारत के संविधान की बारहवीं अनुसूची के अनुसार यह नगरपालिका के अंतर्गत काम करता है।

भारतीय राष्ट्रीय भवन संहिता 2016 (अग्नि और जीवन सुरक्षा) : भारतीय राष्ट्रीय भवन संहिता में संरचनाओं के निर्माण, रखरखाव और अग्नि सुरक्षा के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश शामिल हैं।

भारत का राष्ट्रीय भवन कोड (NBC) भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा प्रकाशित किया जाता है और यह एक ‘अनुशंसित दस्तावेज’ है।

राज्यों को राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता की सिफारिशों को उनके स्थानीय भवन उपनियमों में शामिल करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाते हैं जो भारतीय राष्ट्रीय भवन संहिता की सिफारिशों को अनिवार्य बनाते हैं।

सभी राज्य सरकारों को भारत के नवीनतम राष्ट्रीय भवन कोड 2016 भाग –IV ‘अग्नि और जीवन सुरक्षा’ को शामिल करने और लागू करने के लिए सलाह जारी की जाती है।

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा अग्नि सुरक्षा के लिए मोटे तौर पर इन क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है

  • आग की रोकथाम : इमारतों के डिजाइन और निर्माण के कारण होने वाली आग की घटनाओं के रोकथाम के पहलुओं पर काम करता है और विभिन्न प्रकार की निर्माण सामग्री और उनकी अग्नि रेटिंग निर्धारित करता है।
  • जीवन सुरक्षा : आग और इसी तरह की आपात स्थितियों में जीवन सुरक्षा प्रावधानों को शामिल करता है। इसके अलावा निर्माण और अधिवास सुविधाओं में आग, धुएं ऐसी ही अन्य चीजों से होने वाले जीवन के लिए खतरे को कम करने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों पर ध्यान दिया जाता हैं।
  • अग्नि सुरक्षा : वर्गीकरण और भवनों के प्रकार के आधार पर अग्नि सुरक्षा के लिए सही प्रकार के उपकरणों और प्रतिष्ठानों का चयन करने के लिए महत्वपूर्ण घटकों और दिशानिर्देशों को शामिल किया गया है।
भारत का राष्ट्रीय भवन कोड (NBC) 

कोई भी नई कमर्शियल या रेजिडेंशियल बिल्डिंग बनाने से पहले और बाद में उसके अंदर किए जाने वाले सुरक्षा उपायों के संबंध में भारत सरकार द्वारा बनाए गए नियमों को नेशनल बिल्डिंग कोड (National Building Code) या राष्ट्रीय भवन संहिता कहा जाता है। बिल्डिंग कोड, अग्नि सुरक्षा और इससे संबंधित उपायों के लिए विभिन्न आवश्यकताओं को संबोधित करता है। इन सभी नियमों को बिल्डिंग बनाते समय और भवन निर्माण के बाद आवश्यकरुप से कार्यान्वित करना होता है। 

भारत में साल 1970 में पहली बार राष्ट्रीय भवन कोड (एनबीसी) बनाया गया था। इसके बाद साल 1983 और 1987 में इस कोड में संशोधन किए गए थे। राष्ट्रीय भवन कोड, भारतीय में बिल्डिंग मानकों के बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध करवाने वाला एक दस्तावेज है। इसमें भवन निर्माण के दौरान रखी जाने वाली सावधानियों के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ-साथ निर्माण के दौरान भवन में अग्नि सुरक्षा से संबंधित रखे जाने वाले उपकरणों के बारे में भी जानकारी होती है। 

नेशनल बिल्डिंग कोड, आग लगने के दौरान उसे बुझाने और जीवन सुरक्षा के उपायों के बारे में भी बताता है। राष्ट्रीय भवन संहिता के मुताबिक भवन में जीवन सुरक्षा उपाय, हर उस जगह में होना चाहिए, जहां से लोग उन्हें आसानी से इस्तेमाल कर सकें। हालांकि ऐसा नहीं है कि किसी भी इमारत में लोगों को हर दिन अग्नि संकट की स्थितियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन अगर किसी दिन आपात स्थिति बन जाए तो हमारे पास उससे निपटने के लिए उपयुक्त साधन मौजूद होने चाहिए। 

नेशनल बिल्डिंग कोड में संशोधन 

नेशनल बिल्डिंग कोड 2015 में कुछ संशोधनों का प्रस्ताव दिया था। इसके लिए परामर्श के लिए एक मसौदा जारी किया गया था। इस मसौदे पर साल 2015 के अंत तक सरकार ने विभिन्न हितधारकों से इसमें संशोधन के लिए टिप्पणिया/सुझाव मांगे थे। 

नेशनल बिल्डिंग कोड के तहत अग्नि शमन से संबंधित कुछ नए नियम 2005 में तय किए गए थे जिनका पालन करना आग से सुरक्षा की दृष्टि से अनिवार्य है। नेशनल बिल्डिंग कोड के अनुसार आग से पूर्ण सुरक्षा ही समाधान नहीं है,  यह ऐसे उपायों के बारे में भी निर्दिष्ट करता है, जो उचित रूप से तत्काल प्राप्त हो सकें। 

राष्ट्रीय भवन संहिता में आग की घटनाओं से बचने के लिए निम्न उपाय बताए गए हैं –

हर इमारत का निर्माण पूर्ण रूप से राष्ट्रीय भवन संहिता के अनुसार किया जाना  चाहिए ताकि किसी भी मुसीबत से बचने के लिए आवश्यक समय अवधि में आग, धुएं या अन्य खतरो से बचा जा सके। 

राष्ट्रीय भवन संहिता में बताए गए निकास के नियमों के तहत, दरवाजे, गलियारे व अन्य मार्गों को बाहर निकलने के रूप में जरुरी बनाया जाना चाहिए। 

भवन संहिता के अनुसार, इमरजेंसी निकास द्वारों के रास्तों में लिफ्ट को श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। 

भवन कोड के अनुसार, भवन में कोई भी ऐसा परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए, जिससे भवन में आपात निकासी द्वारों की संख्या, चौड़ाई या अग्नि सुरक्षा के उपायों पर प्रभाव पड़े।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) : राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने सार्वजनिक भवनों जैसे, अस्पताल आदि जगहों पर अग्नि सुरक्षा के लिए आवश्यकताओं को निर्धारित किया है। प्राधिकरण ने इसमें नेशनल विल्डिंग कोड के सभी तत्वों को शामिल किया है। इसमें आग की घटनाओं के दौरान निकले के लिए समर्पित आपात सीढ़ियां, संरक्षित निकास तंत्र,  न्यूनतम खुला सुरक्षा स्थान, और निकासी ड्रील के लिए विशेष डिजाइन आदि शामिल हैं।

तेल क्षेत्र सुरक्षा संस्थान (OISD) : भारत में तेल और गैस उद्योग में अग्नि सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत आने वाला तेल उद्योग सुरक्षा निदेशालय (OISD) अग्नि शमन के लिए स्व-नियामक उपायों की एक श्रृंखला के कार्यान्वयन का समन्वय करता है।

मॉडल बिल्डिंग बायलॉज, 2016 : मॉडल बिल्डिंग बायलॉज, 2016 को शहरी विकास मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया है। यह भवन निर्माण के लिए नियामक तंत्र और इंजीनियरिंग मापदंडों को बताता है। भारत में किसी भी निर्माण परियोजना को शुरू करने से पहले इसका ध्यान रखना बेहद आवश्यक है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि आग से संबंधित सभी निकासी के लिए बिंदु-विशिष्ट जिम्मेदारी मुख्य अग्निशमन अधिकारी (सीएफओ) के पास है।

भारत में अग्नि सुरक्षा प्रणाली की चिंताएं

भारत के कुछ राज्यों में अग्निशमन में आवश्यक आवश्यकताओं और अग्नि सुरक्षा प्रशिक्षण के लिए एकीकृत अग्निशमन सेवाओं की कमी है।

सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन और मानकीकरण और विनियमन की कमी आग लगने संबंधी दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण है, क्योंकि वाणिज्यिक भवनों और मल्टीप्लेक्सों में बड़े पैमाने पर नकली छतों का निर्माण राष्ट्रीय भवन निर्माण कोड के खिलाफ किया जाता है।

भारत में करियर को आगे बढ़ाने के लिए फायरमैन के लिए उचित संगठनात्मक संरचना, प्रशिक्षण और अवसर का अभाव है।

अपर्याप्त आधुनिक उपकरण और उनका स्केलिंग, प्राधिकरण और मानकीकरण।

अपर्याप्त धन के कारण हमारे देश में अग्निशमन के लिए तकनीकी प्रगति नहीं हो सकी है। इसके कारण शहर, LIDAR-आधारित (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) तकनीकों में निवेश करने में विफल रहे हैं, जिनका उपयोग हवाई झटके और अग्नि निकास की उपस्थिति पर नजर रखने के लिए किया जा सकता है।

हमारे देश में अग्नि सुरक्षा ऑडिट के प्रावधान स्पष्ट नहीं है, इससे अग्नि सुरक्षा ऑडिट के दायरे, उद्देश्य, कार्यप्रणाली और आवधिकता के संदर्भ में ठीक-ठीक जानकारी नहीं मिल पाती है।

भारत में फायर सेफ्टी की शिक्षा देने वाले प्रशिक्षण संस्थानों की बहुत कमी है। इसका भी असर देशी की फायर सेफ्टी या अग्निशमन क्षमता पर पड़ता है।

भारत में फायर सेफ्टी को लेकर ढांचागत सुविधाओं की बेहद कमी है, उदाहरण के लिए- फायर स्टेशन और फायर सुरक्षा कर्मियों के आवास, भोजन और स्वास्थ्य आदि सुविधाओं के अभाव के कारण युवा इस क्षैत्र को करियर के रुप में नहीं चुनते हैं।

भारत में आवासीय और कमर्शियल भवनो की फायर सेफ्टी या उनकी आग की चपेट में आने के आशंकाओं का मुल्यांकन नहिं किया जाता है।

अग्नि सुरक्षा नियमों (आग लगने के बाद बचाव के लिए क्या करना चाहिए, और क्या नहीं) के बारे में सार्वजनिक जागरूकता की कमी और नियमित नकली अभ्यास (मॉक ड्रील) और निकासी अभ्यास (एग्जिट ड्रील) भी आयोजित नहीं की जाती हैं।

समान अग्नि सुरक्षा कानून का अभाव, उदाहरण के लिए हाल ही में महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे कुछ राज्य एनबीसी का अनुपालन नहीं करते पाए गए हैं। 

लिडार (LIDAR- Light Detection and Ranging) तकनीकि क्या है ? 

लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (लिडार) तकनीकि एक ‘सुदूर संवेदी तकनीक’ (Remote Sensory Techniques) है। इसमें पल्स लेजर के रूप में प्रकाश का उपयोग करके लेजर उपकरणों द्वारा किसी क्षेत्र का निरीक्षण किया जाता है। 

लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग सिस्टम में एक लेजर, स्कैनर और जीपीएस रिसीवर लगा होता है। इसमें शार्ट वेवलेंथ के द्वारा छोटी से छोटी चीजों का किसी भी स्थान का 3 D मानचित्र आसानी से तैयार हो जाता है। 

इस तकनीक में किसी जगह के बारे में विस्तृत जानकारी पाने के लिए पृथ्वी की सतह पर लेजर लाईट डाली जाती है, और लाईट के वापस लौट कर आने में लगने वाले समय की गणना से वस्तु की दूरी का आसानी से पता लगाया जा सकता है। इसे प्रक्रिया को ‘लेजर स्कैनिंग’ या ‘3 डी स्कैनिंग’ कहा जाता है। 

इसका तकनीकि का प्रयोग आग लगने की घटनाओं के दौरान वस्तु स्थिति को जानने के लिए भी किया जाता है। इसके अलावा लिडार तकनीकि का उपयोग मानव निर्मित वातावरण (टेक्नोस्फीयर) के निरीक्षण, निर्माण परियोजनाओं की ट्रैकिंग व पर्यावरणीय अनुप्रयोग आदि में किया जाता है। 

लिडार तकनीक का उपयोग ऑटोमेटिक वाहनों को नेविगेशन प्रदान करने के लिए भी किया जाता है। 

नोट – नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (National High Speed Rail Corporation Limited) द्वारा प्रस्तावित दिल्ली-वाराणसी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाने में भी लिडार तकनीक का उपयोग किया जाएगा। 

जरुरी बात – लिडार तकनीक का उपयोग लोगों के घरों में निजी गतिविधियों को देखने के लिए भी किया जा सकता है। इसलिए यह इस तकनीक का सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू है, जिससे भविष्य में निजता के हनन का खतरा पैदा हो सकता है।

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अग्नि सुरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय

मरीजों को संभालने या देखभाल करने वाली किसी भी संस्था के लिए सुरक्षा सुविधाओं के साथ राज्य सरकारों द्वारा अनिवार्य अनुपालन की आवश्यकता है।

आधिकारिक एजेंसियों से जुड़े हितों के टकराव को खत्म करने के लिए तीसरे पक्ष के ऑडिट के माध्यम से सुविधाओं का प्रमाणन अनिवार्य किया जा सकता है।

अग्नि सुरक्षा उपकरणों का आधुनिकीकरण: अग्निशमन विभागों को बढ़ाने और आधुनिक बनाने में वित्तीय सहायता और सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए।

स्थानीय पार्षदों/निर्वाचित प्रतिनिधियों की भागीदारी से मोहल्लों/कॉलोनियों/स्कूलों में 6 महीनों में एक बार अग्निशमन कार्यशाला का आयोजन कर लोगों को आग से बचाव के उपायों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण अग्निशमन सेवा विभागों (जैसे ऊंची इमारतों, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में मल्टीप्लेक्स) का समय-समय पर फायर सेफ्टी ऑडिट (fire safety audit) करना और दोषी प्रतिष्ठानों के खिलाफ उचित कार्रवाई करना चाहिए।

सभी सार्वजनिक भवनों के लिए भारी अग्नि देयता बीमा अनिवार्य करना चाहिए। इससे संबंधित भवनों में रहने वाले लोगों और आगंतुकों को सुरक्षा मिल सकेगी।

आगे का रास्ता

एक अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक, दुनिया की करीब 70% आबादी शहरों में रहेगी। इसलिए भारत समते दुनिया के तमाम देशों को भविष्य की अग्नि सुरक्षा जरुरतों को ध्यान में रखते हुए शहरों के निर्माण और विस्तार करना चाहिए। सभी देशों को अग्नि सुरक्षा के महत्व को समझ कर अभी से इसके लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए। साथ ही अग्नि कानूनों का सख्त कार्यान्वयन के साथ-साथ दुनिया को ऐसे समग्र विकास की आवश्यकता है जो रोजगार, सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक अभाव, पर्यावरणीय गिरावट, अपशिष्ट प्रबंधन आदि से निपटने में सक्षम हो।

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