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कार्बी आंगलोंग समझौता

असम में 5 विद्रोही समूहों और केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के बीच 4 सितंबर 2021 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसे कार्बी आंगलोंग समझौते के नाम से जाना जाता है। यह समझौता केंद्र सरकार की उग्रवाद मुक्त उत्तर पूर्व की पहल का हिस्सा है। कार्बी आंगलोंग समझौते से उत्तर-पूर्व में शांति और समृद्धि के साथ सर्वांगीण विकास की योजनाओं को आगे बढ़ाना आसान होगा।

इस ऐतिहासिक समझौते के बाद केंद्र सरकार और असम सरकार कार्बी क्षेत्रों में विशेष विकास परियोजनाओं को शुरू करने के लिए अगल 5 सालों में 1,000 करोड़ रुपए का एक विशेष विकास पैकेज देगी। कार्बी आंगलोंग समझौता पर हस्ताक्षर के साथ ही 1000 से अधिक सशस्त्र कैडर हिंसा छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं।

इस लेख में हम आपको आईएएस परीक्षा के संदर्भ में कार्बी आंगलोंग शांति समझौते के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे। 

नोट – भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में शांति स्थापित करने की दिशा में कार्बी आंगलोंग समझौता एक महत्वपूर्ण कदम है। इस विषय से संबंधित प्रश्न यूपीएससी की प्रारंभिक या मुख्य परीक्षा के करेंट अफेयर्स के सेक्शन में पूछे जा सकते हैं। इसलिए IAS परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों को इस विषये से जुडे तथ्यों ठीक से समझ लेना चाहिए।

कार्बी आंगलोंग समझौते की पृष्ठभूमि

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, पूर्वोत्तर की कई जनजातियों जैसे नागा, मिज़ो बोडो आदि ने अपनी सांस्कृतिक पहचान के आधार पर अलग राज्यों के साथ-साथ पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करना शुरू कर दिया।

साल 1960 में जब राज्य सरकार ने असमिया भाषा को आधिकारिक भाषा घोषित किया, तो इससे इस क्षेत्र की अन्य जनजातियां और भाषाओं को बोलने वाले लोग खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे। इससे आम लोग और स्थानीय विद्रोही समूह आंदोलित हो उठे।

पूर्वोत्तर में नागालैंड और मेघालय राज्यों का गठन क्रमशः 1963 और 1971 में हुआ था। मेघालय के गठन के बाद, कार्बी आंगलोंग जिले को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन असम से अधिक स्वतंत्रता के वादे के बाद जिले ने मेघालय में शामिल होने से इनकार कर दिया।

हालांकि, बाद में असम राज्य सरकार इस जिले को अधिक स्वायत्तता देने के अपने वादे पर खरी नहीं उतरी और इसका नतीजा ये हुआ कि अगले कुछ दशकों में तक राज्य में उग्रवाद और आंदोलन का एक नया दौर शुरू हो गया।

हाल ही में, कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर में, इस जिले को अधिक स्वायत्तता का वादा किया गया है। इस समझौते के बाद, फिलहाल ये उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि बनी रहेगी।

कार्बी आंगलोंग संकट क्या है ? 

कार्बी आंगलोंग असम के बिल्कुल मध्य में स्थित राज्य का सबसे बड़ा जिला है। यह नृजातीय तथा आदिवासी समूहों- कार्बी, डिमासा, बोडो, कुकी, हमार, तिवा, गारो, मान (ताई बोलने वाले), रेंगमा नागा आदि संस्कृतियों का मिलन बिंदु है।

कार्बी आंगलोंग में इतनी विविधता होने के कारण यहां कई संगठनों का जन्म हुआ, जिसके परिणामस्वरूप  उग्रवाद और अलगाववाद बढ़ता गया और इस जिले का विकास नहीं हो सका।

कार्बी, असम का प्रमुख जातीय समूह है जो कई गुटों में बंटा हुआ है। 1980 के दशक के बाद से कार्बी समूह का इतिहास हत्याओं, हिंसा, अपहरण से भरा हुआ है। 

एक अलग स्वायत्त राज्य की मांग को लेकर कार्बी आंगलोंग में पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी (पीडीसीके), कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ) जैसे उग्रवादी संगठनों का जन्म हुआ।

नोट: UPSC 2023 परीक्षा करीब आ रही है, इसिलए आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए BYJU’S के साझ जुड़ें, यहां हम महत्वपूर्ण जानकारियों को सरल तरीके से समझाते हैं।

कार्बी आंगलोंग समझौते की विशेषताएं

यह समझौता असम की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित किए बिना कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को और अधिक स्वायत्तता देगा साथ ही कार्बी लोगों भाषा, संस्कृति पहचान आदि की सुरक्षा करेगा। इसी के साथ यह समझौता क्षेत्र में सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करेगा।

कार्बी आंगलोंग समझौते में सशस्त्र समूहों और उग्रवादी संगठनों के कैडरों के पुनर्वास का प्रावधान भी है। इसके तहत ये समूह हिंसा त्याग कर देश के कानून को मानेंगे और शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होंगे।

कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद क्षेत्र से बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के विकास के लिए असम सरकार, कार्बी कल्याण परिषद की स्थापना करेगी।

कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि को बढ़ाया जाएगा।

नए समझौते में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को और अधिक वित्तीय, प्रशासनिक, कार्यकारी और विधायी शक्तियां देने का प्रस्ताव है।

इनकी उपस्थिति में हुए कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर

  • असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा
  • जहाजरानी और जलमार्ग राज्य मंत्री, सर्बानंद सोनोवाल
  • गृह राज्य मंत्री, नित्यानंद राय
  • कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद के मुख्य कार्यकारी सदस्य
  • उत्तरी कछार हिल्स लिबरेशन फ्रंट के प्रतिनिधि
  • पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लॉन्ग्रिक
  • यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी
  • कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय और असम सरकार के वरिष्ठ अधिकारी।

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पूर्वोत्तर के राज्यों में हाल ही में हुए शांति समझौते 

NLFT त्रिपुरा समझौता : नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) ने 10 अगस्त 2019 को भारत सरकार और त्रिपुरा सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके लिए सरकार ने अगले 5 सालो के लिए 100 करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक विकास पैकेज’ (SEDP) की पेशकश की गई है। 

NLFT क्या है ?

अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिए उत्तरदायी नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) पर साल 1997 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंध लगा दिया गया था। 

ब्रू समझौता, 2020 : ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिए वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर त्रिपुरा, मिजोरम, केंद्र सरकार और ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के बीच सहमति बनी है। 

ब्रू समुदाय क्या है ?

ब्रू या रेयांग (Bru or Reang), पूर्वोत्तर में रहने वाला एक जनजातीय समुदाय है। इस समुदाय के लोग मुख्यतः त्रिपुरा, मिजोरम तथा असम में रहते हैं। इस समुदाय को त्रिपुरा में विशेष कमजोर जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है। 

मिजोरम में इन्हें बाहरी मानते हुए दशकों से निशाना बनाया गया है। इसके बाद साल 1997 में हुए जातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिजोरम से त्रिपुरा भाग गए, जहां उन्हें राहत शिविरों में ठहराया गया। 

बोडो शांति समझौता : साल 2020 में असम सरकार, केंद्र सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (Bodoland Territorial Area Districts- BTAD) के पुनर्निर्माण के साथ इसका नाम बदलकर बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (Bodoland Territorial Region-BTR) कर दिया गया। 

असम का यह अनुसूचित जनजातियों का समूह 1967-68 अलग बोडो राज्य की मांग कर रहा हैं। 

कार्बी आंगलोंग समझौते की मुख्य बातें

इस समझौते के अंतर्गत 5 विद्रोही संगठन, केएलएनएलएफ (KLNLF), पीडीसीके (PDCK), यूपीएलए (ULPA), केपीएलटी (KPLT) और केएलएफ (KLF) ने अपने हथियार डालने का विकल्प चुना है। इस समझौते के बाद इन संगठनों के सदस्या समाज की मुख्यधारा में शामिल हो जाएंगे।

कार्बी आंगलोंग समझौते के तबत एक विशेष परियोजनाओं की स्थापना की जाएगी। इसके तहत कार्बी क्षेत्रों को विकसित करने के लिए केंद्र सरकार और असम सरकार द्वारा 1000 करोड़ रुपए का विशेष विकास पैकेज आवंटित किया जाएगा।

कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को पहले की तुलना में अधिक स्वायत्तता प्राप्त होगी। यह स्वायत्तता असम की प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित नहीं करेगी। कार्बी आंगलोंग ऑटोनॉमस काउंसिल (KAAC)भारत के संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षित एक स्वायत्त जिला परिषद है।

असम की राज्य सरकार केएएसी क्षेत्राधिकार से बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के सामाजिक विकास की निगरानी के लिए एक कार्बी कल्याण परिषद (Karbi Welfare Council) की स्थापना करेगी।

यह समझौता कार्बी लोगों की संस्कृति, पहचान, भाषा आदि की सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्र के विकास की गारंटी देगा।

कार्बी समझौते के अलावा, पिछले समझौते के तहत घोषित कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद पैकेज के अंतर्गत 350 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत की 32 परियोजनाएं पूरी होने के विभिन्न चरणों में हैं।  

नोट: UPSC Current Affairs in Hindi पर प्रश्नोत्तरी का अभ्यास करने के लिए आप नीचे संलग्न किए गए लिंक पर जा सकते हैं।

कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (Karbi Anglong Autonomous Council) क्या है? 

कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी), भारत के असम राज्य के कार्बी आंगलोंग जिले की एक स्वायत्त परिषद है। इसका गठन कार्बी आंगलोंग और पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले में रहने वाले आदिवासी समुदायों के संरक्षण और के विकास के लिए किया गया है। इस परिषद का गठन भारत के संविधान की छठी अनुसूची के तहत किया गया है। केएएसी, प्रशासनिक रूप से असम सरकार के अंतर्गत काम करती है। 17 नवंबर 1951 को इसका गठन, कार्बी आंगलोंग जिला परिषद के नाम से किया गया था। हालांकि बाद में 23 जून 1952 को इसका नाम बदलकर, कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद कर दिया गया। 

भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडेरिटी के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर के बाद इसका नाम बदलकर कार्बी आंगलोंग स्वायत्त प्रादेशिक परिषद कर दिया गया। यह परिषद कार्बी आंगलोंग जिले और पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले का प्रशासनिक कामकाज देखती हैं। इसका मुख्यालय कार्बी आंगलोंग जिले के दीफू में है। इस परिषद का कुल क्षेत्रफल 10,434 वर्ग किमी है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार इस क्षैत्र की जनसंख्या करीब 961,275 है।

 कार्बी आंगलोंग समझौते के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न?

कार्बी आंगलोंग समझौते का क्या महत्व है?

कई आदिवासी और जातीय समूहों से बना, कार्बी आंगलोंग, असम का सबसे बड़ा जिला है। यह अंतर-जनजातीय संघर्षों और विद्रोहों का केंद्र भी था, जिससे यह एक बहुत ही अस्थिर क्षेत्र बन गया। कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर के साथ, यह अनुमान लगाया गया है कि निकट भविष्य में यह क्षेत्र अधिक स्थिर और शांतिपूर्ण होगा। 

कार्बी आंगलोंग जिले का प्रशासन कौन करता है?

जिला भारत के संविधान की छठी अनुसूची के अनुसार कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद द्वारा प्रशासित है।

कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर कब हुए?

4 सितंबर 2021 को, कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले विद्रोही संगठन कौन-कौन से हैं ?

कार्बी लोंगरी नॉर्थ कैचर हिल्स लिबरेशन फ्रंट (Karbi Longri North Catcher Hills Liberation Front)

पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरिक (People’s Democratic Council of Karbi Longrich)

यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (United People’s Liberation Army)

कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स (Karbi People’s Liberation Tigers)

कुकी लिबरेशन फ्रंट  (Kuki Liberation Front)

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