नर्मदा लैंडस्केप रिस्टोरेशन प्रोजेक्ट या नर्मदा प्राकृतिक सौंदर्य पुनर्स्थापना परियोजना (Narmada Landscape Restoration Project- NLRP) को लागू करने के लिए राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (National Thermal Power Corporation-NTPC) लिमिटेड ने 4 दिसंबर, 2020 को भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Forest Management- IIFM), भोपाल के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। नर्मदा लैंडस्केप रिस्टोरेशन प्रोजेक्ट एक सहयोगी और सहभागी दृष्टिकोण है जो डाउनस्ट्रीम जल संसाधनों पर अपस्ट्रीम स्थायी रूप से प्रबंधित वन और कृषि प्रथाओं की अन्योन्याश्रयता को प्रदर्शित करेगा।
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इस लेख में हम आपको नर्मदा प्राकृतिक सौंदर्य पुनर्स्थापना परियोजना के उद्देश्यों और इसके महत्व पर विस्तार से जानकारी देंगे।
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नर्मदा लैंडस्केप बहाली परियोजना से जुड़े तथ्य
नर्मदा लैंडस्केप बहाली या परिदृश्य/प्राकृतिक सौंदर्य प्रबंधन (Landscape management) का मतलब है कि सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रक्रियाओं के कारण हुए परिवर्तनों के बीच सामंजस्य स्थापित कर सतत् विकास के दृष्टिकोण से परिदृश्य/प्राकृतिक सौंदर्य का नियमित रख-रखाव सुनिश्चित किया जाए।
नर्मदा लैंडस्केप बहाली परियोजना एक सहयोगी और सहभागी दृष्टिकोण है जो नर्मदा के संसाधनों की निरंतरता और जल संसाधनों पर वन और कृषि प्रथाओं का प्रबंधन करेगा।
इसका उद्देश्य एक ऐसी प्रोत्साहन प्रणाली की स्थापना करना है जो नर्मदा नदी घाटी के सहायक वन और कृषि समुदायों के स्थायी परिदृश्य को बनाए रखने में सहायक हो।
नर्मदा लैंडस्केप बहाली परियोजना (NLRP) के कार्यान्वयन के लिए नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) लिमिटेड ने भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम), भोपाल के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए। एनटीपीसी, विद्युत मंत्रालय के तहत भारत की सबसे बड़ी एकीकृत ऊर्जा कंपनियों में से एक है।
यह परियोजना एनटीपीसी लिमिटेड और यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) से समान अनुपात में सहायता अनुदान के साथ साझेदारी में शुरू की गई है।
यह 4 साल की परियोजना है। इसे मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में लागू किया जाएगा।
परियोजना का कार्यान्वयन ओंकारेश्वर बांध और महेश्वर बांध के बीच नर्मदा नदी की चयनित सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में होगा।
एनटीपीसी और आईआईएफएम के अलावा, ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट (जीजीजीआई) के रूप में परियोजना को तीसरी सहायता प्रदान की जाएगी। तीनों संगठन मिलकर इस परियोजना को क्रियान्वित करेंगे।
ओंकारेश्वर डैम
यह इंदिरा सागर परियोजना के डाउनस्ट्रीम बांधों के प्रमुख बांधों में से एक है। यह एक गुरुत्वाकर्षण बांध है और इसका नाम ओंकारेश्वर मंदिर के नाम पर रखा गया है। इसका निर्माण 2003 और 2007 के बीच किया गया था। महेश्वर डैम यह नर्मदा बेसिन में कई नियोजित बांधों और जल विद्युत संयंत्रों में से एक है, जिसे नर्मदा घाटी विकास योजना (एनवीडीपी) के रूप में जाना जाता है और इसे 1975 में लॉन्च किया गया था। इसमें 400MW बिजली प्रदान करने की क्षमता है। |
नर्मदा लैंडस्केप बहाली परियोजना (NLRP) के उद्देश्य
परियोजना को दो प्रमुख उद्देश्यों के साथ शुरू किया गया है –
डाउनस्ट्रीम जल संसाधनों पर अपस्ट्रीम सतत रूप से प्रबंधित वन और कृषि प्रथाओं की अन्योन्याश्रयता प्रदर्शित करने के लिए एक प्रोत्साहन तंत्र स्थापित करना जो नर्मदा बेसिन के तटीय वन और कृषि समुदायों को स्थायी परिदृश्य प्रथाओं को बनाए रखने के लिए समर्थन देना जारी रख सके।
इस परियोजना का नर्मदा की सहायक नदियों में पानी की गुणवत्ता और मात्रा पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
नर्मदा लैंडस्केप बहाली परियोजना के लाभ
एनएलआर परियोजना पर्यावरण और लोगों के लिए इसके लाभों पर विचार करने के बाद लागू की जा रही है। इस परियोजना के कुछ लाभ नीचे दिए गए हैं –
एनटीपीसी द्वारा यह परियोजना समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने और राष्ट्र के सतत विकास की दिशा में काम करने के इरादे से लागू की गई है।
इससे नर्मदा और उसकी सहायक नदियों में जल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार होगा।
इस योजना के प्रोत्साहन तंत्र और इसके परिणामी सुधार से मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर को मुख्य रूप से लाभ हो सकता है, क्योंकि इसकी नगरपालिका में लगभग 60% जल आपूर्ति नर्मदा नदी से होती है है।
इस परियोजना के माध्यम से, एनटीपीसी एक स्वस्थ पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों को प्रदर्शित करने के लिए समर्थन और सहायता प्रदान कर रहा है।
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नर्मदा नदी से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
नर्मदा नदी को ‘मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा’ के रूप में भी जाना जाता है। इसका उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक के निकट मैकाल श्रेणी से होता है।
यह पश्चिम की ओर बहने वाली सबसे लंबी नदी है और प्रायद्वीपीय भारत में केवल तीन प्रमुख नदियों में से एक है जो पूर्व से पश्चिम को बहती हैं।
नर्मदा नदी के अपवाह क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश में तथा इसके अलावा महाराष्ट्र और गुजरात में है।
नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के जबलपुर के निकट ‘धुंआधार जल प्रपात‘ का निर्माण करती है।
नर्मदा नदी के मुहाने में कई द्वीप हैं जिनमें से अलियाबेट सबसे बड़ा है।
इसकी प्रमुख सहायक नदियां – हिरन, ओरसंग, बरना तथा कोलार आदि हैं।
इंदिरा सागर, सरदार सरोवर आदि नर्मदा नदी के बेसिन में स्थित प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाएं हैं।
नर्मदा बेसिन, विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच घिरा हुआ है, जो 98,796 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है।
नर्मदा नदी के बेसिन में सागौन और भारत के सर्वश्रेष्ठ दृढ़ लकड़ी के जंगल पाए जाते हैं।
नर्मदा लैंडस्केप रिस्टोरेशन प्रोजेक्ट से जुड़े संगठन
नीचे कई संगठनों के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी दी गई है जो एनएलआरपी परियोजना के कार्यान्वयन में योगदान देंगे –
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) – इसकी स्थापना 1975 में नई दिल्ली में हुई थी। यह एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) है और 2010 में महारत्न कंपनी बन गई।
भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (IIFM) – यह एक स्वायत्त, सार्वजनिक संस्थान है जिसे 1982 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य वन एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में प्रबंधकीय मानव संसाधन की आवश्यकता को पूरा करना है
यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) – यह अमेरिकी संघीय सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है और इसका गठन 1961 में किया गया था। यह दुनिया की सबसे बड़ी आधिकारिक सहायता एजेंसियों में से एक है और एनटीपीसी के साथ यह संस्था भी एनएलआरपी में सहयोग करेगी।
ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट (जीजीजीआई) – यह एक संधि आधारित अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका गठन 2010 में किया गया था। जीजीजीआई, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के संतुलन द्वारा हरित विकास के तरीकों को बढ़ावा देता है।
नर्मदा के भू-दृश्य पुनर्स्थापन की इस 4 वर्षीय परियोजना में यह चारों संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
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