पथारूघाट किसान विद्रोह 28 जनवरी 1894 को हुआ था। यह विद्रोह जलियांवाला बाग नरसंहार से करीब 25 साल पहले हुआ था। लेकिन जलियांवाला बाग नरसंहार होने तक आम जनता इस विद्रोह के महत्व को काफी हद तक भूल चुकी थी। 28 जनवरी को गुवाहाटी से लगभग 60 किमी उत्तर-पूर्व में डारंग जिले में पाथारुघाट क्षेत्र में 100 से अधिक किसानों को अंग्रेजों ने गोलियों से भुन दिया था।
यूपीएससी परीक्षा 2023 की तैयारी करने वाले उम्मीदवार पथारूघाट किसान विद्रोह के बारे में अधिक जानने के लिए इस लेख को ध्यान से पढ़ें। इस लेख में हम आपको पथारूघाट किसान विद्रोह और उसके प्रमुख कारणों के बारे में विस्तार से बताएंगे। यूपीएससी परीक्षा के लिए पथारूघाट किसान विद्रोह के बारे में अंग्रेजी में पढ़ने के लिए Patharughat Peasants Uprising पर क्लिक करें।
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पथारूघाट कृषक विद्रोह के कारण
अंग्रेजों ने साल 1826 में असम पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने अपनी शोषण की नीति के तहत राज्य की भूमि का सर्वेक्षण करना शुरू कर दिया। बड़े पैमाने पर किए जा रहे इन सर्वेक्षणों के आधार पर, अंग्रेज किसानों पर भूमि करों का बोझ लादना चाहते थें। अंग्रेजों की इस करतूत से असम के साधारण किसानों में कटुता और आक्रोश पैदा हो गया था।
विद्रोह की पृष्ठभूमि
साल 1893 में, अंग्रेजों ने उपरोक्त कराधान को 70-80% तक बढ़ा दिया। उस समय तक, असम के किसान नकद के बजाय वस्तु या सेवाओं के रुप में करों का भुगतान किया करते थे। जब अंग्रेजों ने इन करों को बढ़ा दिया, तो किसानों ने रायज मेलों (Raij melas) या लोगों के शांतिपूर्ण सम्मेलनों का आयोजन किया। हालांकि ये सम्मेलन अनिवार्य रूप से लोकतांत्रिक थे, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें राजद्रोह की भूमिका के रूप में देखा। इसलिए, अंग्रेजी सैनिक इन सम्मेलनों में भाग लेने वाले लोगों पर टूट पड़े और उन्हें तितर-बितर कर दिया। इसके बाद 28 जनवरी 1894 को, ब्रिटिश अधिकारियों ने किसानों की शिकायतों को सुनने से इनकार कर दिया और लाठीचार्ज शुरू कर दिया। इसके कुछ देर बाद वहां खुली गोलीबारी हुई, जिसमें कई किसानों की मृत्यु हो गई। इसके बाद आधिकारिक सूत्रों ने बताया था कि इस घटना में 15 लोगों की मौत हुई थी और 37 अन्य घायल हो गए थे। हालांकि, स्थानीय लोगों का दावा इससे बिल्कुल उलट था। लोगों ने कहना था कि इस घटना के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में करीब 140 लोगों की जान चली गई थी।
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पथारूघाट विद्रोह का महत्व
पथरुघाट विद्रोह को इतिहास में काफी हद तक भुला दिया गया था। यह साल 1671 में अहोम की मुगलों पर हुई जीत के बाद दूसरा सबसे बड़ा विद्रोह था। पथरुघाट विद्रोह असम के लोगों की देशभक्ति के ताने-बाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इसके अलावा, लोग इस विद्रोह को सविनय अवज्ञा आंदोलन और महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए अहिंसक आंदोलन के अग्रदूत के रूप में देखते हैं।
अहोम- मुगल युद्ध (1671)
साल 1671 में मुगल साम्राज्य और अहोम साम्राज्य के बीच सरायघाट के पास ब्रह्मपुत्र नदी पर एक नौसैनिक लड़ाई लड़ी गई थी। इतिहास में इसे सरायघाट की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है। यह असम में आखिरी बड़ी लड़ाई थी जिसके द्वारा मुगलों ने असम में अपने साम्राज्य का विस्तार करने का प्रयास किया था। |
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भारत के इतिहास के पन्नों में ऐसी कई घटनाएं दबी हुई हैं जो लोगों के बहादुरी, बलिदान और देशभक्ति की कहानियां कहती है। ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में, देश के विभिन्न हिस्सों से लाखों लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।
असम के लोगों ने भी अंग्रेजों के शोषण, भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में बहादुरी से भाग लिया था। असम के दारंग जिले (Darrang district) के पथारूघाट में किसानों का ऐतिहासिक विद्रोह इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। यह विद्रोह अंग्रेजों द्वारा भूमि कर में बढ़ोतरी को लेकर हुआ था। पथारूघाट कहां स्थित है ? किसान विद्रोह के लिए प्रसिद्ध पथारूघाट, असम के दारंग जिले का एक छोटा सा गांव। यह राजधानी गुवाहाटी से करीब 60 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। एतिहासिक तथ्य पथारूघाट किसान विद्रोह, जलियांवाला बाग हत्याकांड से 25 साल पहले 28 जनवरी, 1894 को हुआ था। जानकारी के मुताबिक इस दौरान ब्रिटिश सैनिकों द्वारा की गई फायरिंग में 100 से अधिक किसानों की मौत हो गई थी और कई घायल हो गए थे। अंग्रेजी अफसरों ने इस दौरान शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गोली चलाने का हुक्म दिया था। गुवाहाटी के एक लेखक अरूप कुमार दत्ता (Arup Kumar Dutta) ने इस घटना के बारे में एक किताब लिखी है जिसका नाम है पोथोरूघाट (Pothorughat)। दत्ता के अनुसार किसानों की सभा के लोकतांत्रिक होने के बावजूद, अंग्रेजों ने उन्हें देशद्रोही माना और उन्हें खदेड़ने के लिए गोली चलाई थी। वहीं, प्रोफेसर कमलाकांता डेका के अनुसार, जब ब्रिटिश अधिकारियों ने किसानों की शिकायतें सुनने से इनकार दिया तो वहां का माहोल खराब हो गया था और उसके बाद किसानों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी की घटना हुई। आखिर ये घटना महत्वपूर्ण क्यों? प्रोफेसर डेका के मुताबिक असम के लोगों के लिए पथारूघाट, सराईघाट की लड़ाई के बाद दूसरी महत्वपूर्ण घटना है। कई अन्य लेखकों के अनुसार, पथारूघाट किसान विद्रोह एक शांतिपूर्ण विरोध था। जो सविनय अवज्ञा आंदोलन का अग्रदूत था, जिसे बाद में महात्मा गांधी द्वारा प्रचारित किया गया था। अरूप कुमार दत्ता की पुस्तक के अनुसार, यह एक अखिल भारतीय साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलन था, जिसे जनता ने बिना किसी नेतृत्व की उपस्थिति में, खुद को संगठित किया और अंग्रेजों के निरंकुश शासन का विरोध किया। इस विद्रोह ने भारत के आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी थी। |
पथारूघाट विद्रोह को सम्मान
पथारूघाट विद्रोह को सम्मान देने के लिए भारतीय सेना ने 28 जनवरी 2001 को इस स्थल पर एक शहीद स्तंभ बनाया है। इसका अनावरण असम के पूर्व राज्यपाल एस.के. सिन्हा ने किया था।
इसके बाद से हर साल लोग इस दिन को कृषक स्वाहिद दिवस के रुप में मनाते हैं और अगले दिन भारतीय सेना सैन्य शैली में श्रद्धांजलि देती है।
इसके अलावा, 28 जनवरी 2021 को असम के तात्कालिन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने किसानों के लिए एक प्रशिक्षण और कौशल विकास केंद्र का उद्घाटन किया। यह केंद्र पथारूघाट विद्रोह के बारे में भी जानकारियों का प्रचार- प्रसार करेगा।
IAS परीक्षा 2023 की तैयारी करे वाले उम्मीदवारों को असम से जुड़ी इस महत्वपूर्ण घटना का ज्ञान होना बेहद जरूरी है। पथारूघाट किसान विद्रोह असम और वहां के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है।
पथारूघाट किसान विद्रोह के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
कृषक स्वाहिद दिवस पर सरकार ने कौन सी कुछ योजनाएं शुरू की हैं?
कृषक स्वाहिद दिवस पर सरकार द्वारा कई योजनाओं की शुरूआत की गई है। इनमें से एक किसान ब्याज राहत योजना है। इस योजना के तहत किसान शून्य-ब्याज पर ऋण का लाभ उठा सकते हैं।
भारतीय सेना का कौन सा विभाग पथारूघाट शहीदों को श्रद्धांजलि देता है?
सेना के रेड हॉर्न डिवीजन द्वारा पथरूघाट शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
इसके अलावा, उम्मीदवार लिंक किए गए लेख में परीक्षा के प्रारंभिक और मुख्य चरण के लिए विस्तृत यूपीएससी सिलेबस और परीक्षा पैटर्न के बारे में अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं।
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