30 जनवरी 2023 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: सामाजिक न्याय:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: सुरक्षा:
D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: राजव्यवस्था और शासन:
स्वास्थ्य:
शिक्षा:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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सेना में महिला अधिकारी
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
सुरक्षा:
विषय: विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश।
मुख्य परीक्षा: सेना में महिलाओं की भूमिका का महत्व।
प्रसंग: महिला अधिकारियों को कर्नल के पद पर कमान सौंपने की तैयारी।
भूमिका:
- सेना ने कहा है कि कर्नल के पद पर कमांड असाइनमेंट के लिए महिला अधिकारियों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
- इसमें 2020 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन किया गया है, जिसमें स्थायी कमीशन (PC) के साथ-साथ युद्धक भूमिका के अलावा सभी आर्म्स एंड सर्विसेस में महिला अधिकारियों को कमांड पोस्टिंग देने के पूर्ववर्ती फैसले को बरकरार रखा गया है।
- एक विशेष चयन बोर्ड जिसने उन्हें पहली बार अपनी संबंधित आर्म्स एंड सर्विसेस में कमांड इकाइयों और ट्रूप्स के लिए पात्रता प्रदान की थी, द्वारा 22 जनवरी, 2023 तक सेना में अधिकतम 108 महिला अधिकारियों को कर्नल (चयन ग्रेड) के पद पर नियुक्त करने के लिए मंजूरी दे दी गई थी।
- इंजीनियर्स, सिग्नल, आर्मी एयर डिफेंस, इंटेलिजेंस कॉर्प्स, आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्मी ऑर्डनेंस कॉर्प्स और इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स सहित आर्म्स एंड सर्विसेस में रिक्तियों के सापेक्ष पदोन्नति के लिए 1992 से 2006 के बैच से कुल 244 महिला अधिकारियों पर विचार किया जा रहा है।
- इसके अतिरिक्त, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने घोषणा की कि महिला अधिकारियों को जल्द ही आर्टिलरी कोर में भी शामिल किया जाएगा।
- नौसेना द्वारा अग्निपथ योजना के तहत सेलर्स के रैंक में महिलाओं को शामिल किया जा रहा है और जल्द ही उन्हें युद्धपोतों पर तैनात किया जाएगा, जबकि थलसेना ने सैन्य पुलिस कोर में महिलाओं को सैनिकों के रूप में शामिल किया है।
कमांड पोस्टिंग का महत्व:
- एक कमांडिंग ऑफिसर (CO) सेना में एक बहुत ही प्रतिष्ठित पद है। महिलाओं को इस पर नियुक्ति करना एक महत्वपूर्ण कदम है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, रूस और इज़राइल समेत सभी प्रमुख देश महिलाओं को अपने राष्ट्रीय सशस्त्र बलों के कमांड पदों पर नियुक्त होने की अनुमति देते हैं।
- 2008 से सेना ने मेडिकल और डेंटल स्ट्रीम के साथ शिक्षा कोर और जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखाओं में महिला अधिकारियों को PC प्रदान किया है।
- नियमित आर्म्स एंड सर्विसेस, जहां कर्नल अधिकारियों और ट्रूप्स को कमांड करते हैं और उनका नेतृत्व करते हैं, के विपरीत उपर्युक्त पद मुख्य रूप से प्रशासनिक पद हैं।
- अतीत में, महिलाओं का चयन केवल अल्पकालिक अनुबंधों पर हो सकता था, जिसके लिए उन्हें केवल 14 साल की सेवा के बाद सेना को छोड़ना पड़ता था – पेंशन पात्रता के लिए आवश्यक 20 वर्षों की तुलना में बहुत कम समय।
- फरवरी 2020 में बबीता पुनिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि सेना में महिला अधिकारियों को PC के साथ-साथ युद्धक भूमिका के अलावा अन्य सभी सेवाओं में कमांड पोस्टिंग दी जाए।
- इसके अलावा, 25 मार्च, 2021 को लेफ्टिनेंट कर्नल नितिशा बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सेना की चयनात्मक मूल्यांकन प्रक्रिया में PC की मांग करने वाली महिला अधिकारियों के साथ भेदभाव हुआ और इसने उन्हें असमान रूप से प्रभावित किया।
- समय के साथ CO की औसत आयु में गिरावट के कारण लगभग 16-18 साल की सेवा के बाद एक अधिकारी अब कर्नल बन जाता है।
- जिन महिला अधिकारीयों को स्थायी कमीशन प्रदान किया गया है वे सभी उच्च नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए स्वयं को सशक्त बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण और असाइनमेंट प्राप्त कर रही हैं।
सारांश: सेना में महिला अधिकारी अब पहली बार अपनी संबंधित आर्म्स एंड सर्विसेस में कमांड इकाइयों और ट्रूप्स के लिए पात्र हैं। ये प्रगति महिला अधिकारियों के लिए अपने पुरुष समकक्षों की तरह ही नेतृत्व के पदों को संभालने और रैंक प्रणाली में आगे बढ़ना संभव बनाती है।
सशस्त्र बलों में महिलाओं के बारे में और पढ़ें: Women in Armed Forces
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE), 2020-2021
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
सामाजिक न्याय:
विषय: सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
मुख्य परीक्षा: भारत में शिक्षा क्षेत्र में विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेप।
प्रसंग: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने 29 जनवरी, 2023 को उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE), 2020-2021 के आंकड़े जारी किए।
सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएं:
- सर्वेक्षण के आंकड़ों ने 2019-20 के आंकड़ों की तुलना में देश भर में छात्र नामांकन में 7.5% की वृद्धि दिखाई, जिसमें कुल नामांकन 4.13 करोड़ तक पहुंच गया।
- 2020-21 में, कोविड-19 महामारी की शुरुआत में, दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों में नामांकन में 7% की वृद्धि हुई थी।
- पिछले वर्ष की तुलना में 2020-21 में दो लाख अधिक अनुसूचित जाति के छात्रों, लगभग तीन लाख अधिक अनुसूचित जनजाति के छात्रों और छह लाख से अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिया।
- जहाँ वृद्धि पूर्ण संख्या में दर्ज की गई थी, वहीं अनुसूचित जाति के छात्रों का अनुपात पिछले वर्ष के 14.7% से 2020-21 में घटकर 14.2% हो गया और OBC छात्रों का अनुपात 37% से 35.8% हो गया।
- 2019-20 में मुस्लिम छात्रों का अनुपात 5.5% से घटकर 4.6% हो गया, जबकि “अन्य अल्पसंख्यक छात्रों” का अनुपात 2.3% से गिरकर 2% हो गया।
- विकलांग व्यक्तियों की श्रेणी में भी छात्रों की संख्या पिछले वर्ष के 92,831 से घटकर 2020-21 में 79,035 हो गई।
- सभी नामांकनों (2011 की जनगणना के अनुसार) के लिए सकल नामांकन अनुपात 2 अंकों से बढ़कर 27.3 हो गया।
- उच्चतम नामांकन स्नातक स्तर पर देखा गया, जो सभी नामांकनों का 78.9% था, इसके बाद स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम का स्थान था, जो वर्ष के कुल नामांकनों का 11.4% था।
- सभी स्नातक नामांकनों में, कला स्नातक कार्यक्रम 104 लाख नामांकन के साथ सबसे लोकप्रिय रहा, इसके बाद विज्ञान स्नातक पाठ्यक्रम रहा।
- स्नातकोत्तर स्तर पर, सबसे लोकप्रिय पाठ्यक्रम सामाजिक विज्ञान शाखा में रहे जिसके बाद विज्ञान पाठ्यक्रम रहा।
- पीएच.डी. स्तर पर, सबसे लोकप्रिय पाठ्यक्रम इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में था, जिसके बाद विज्ञान का स्थान था।
लैंगिक विभाजन:
- पिछले वर्ष के 45% की तुलना में 2020-21 में महिला नामांकन कुल नामांकन का 49% हो गया था।
- 47.3% पुरुषों के मुकाबले 52.7% महिलाओं ने कला स्नातक कार्यक्रम में दाखिला लिया। वहीं विज्ञान स्नातक पाठ्यक्रम में महिलाओं ने पुरुषों को पछाड़ दिया।
- बी. टेक. और इंजीनियरिंग स्नातक (बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग) पाठ्यक्रमों में सभी नामांकनों में महिलाओं की संख्या 30% से कम है।
- स्नातकोत्तर स्तर पर, सामाजिक विज्ञान वर्ग में महिलाओं का नामांकन 56% और विज्ञान वर्ग में सभी नामांकनों का 61.3% था।
- स्नातकोत्तर स्तर पर प्रबंधन पाठ्यक्रमों के लिए महिलाओं का नामांकन 43.1% था। अन्य सभी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही।
- पीएच.डी. स्तर पर इंजीनियरिंग (33.3%) और विज्ञान (48.8%) में महिलाओं का नामांकन 50% से कम है।
चित्र स्रोत: The Hindu
संकाय (फैकल्टी):
- संकाय/शिक्षकों की कुल संख्या 15,51,070 है जिनमें से लगभग 57.1% पुरुष और 42.9% महिलाएं हैं।
- अखिल भारतीय स्तर पर, 56.2% शिक्षक सामान्य श्रेणी के हैं; OBC के 32.2%; SC के 9.1% और ST वर्ग के 2.5% हैं।
- लगभग 5.6% शिक्षक मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों से आते हैं और 8.8% अन्य अल्पसंख्यक समूहों से हैं।
- प्रति 100 पुरुष फैकल्टी में महिलाओं की संख्या 2014-15 के 63 एवं 2019-20 के 74 से बढ़कर 2020-21 में 75 हो गई है।
- सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्टैंड-अलोन संस्थानों के लिए शिक्षक-छात्र अनुपात 27 था और यदि केवल नियमित मोड पर विचार किया जाए तो यह 24 था।
- सबसे अच्छा अनुपात तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में पाया गया।
संस्थानों की संख्या:
- 2020-21 के दौरान, विश्वविद्यालयों की संख्या में 70 की वृद्धि हुई है, और कॉलेजों की संख्या में 1,453 की वृद्धि हुई है।
- अधिकतम वृद्धि राज्यीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों और राज्यीय निजी विश्वविद्यालयों में हुई, जिसमें क्रमशः 17 और 38 की वृद्धि देखी गई।
- राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की संख्या बढ़ाकर 14 की गई।
- सरकारी विश्वविद्यालयों की संख्या कुल विश्वविद्यालयों का 59.1% है, जो कुल नामांकन में 73.1% का योगदान देते हैं। जबकि 40% निजी विश्वविद्यालयों का कुल नामांकन में योगदान केवल 26.3% है।
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE):
- यह रिपोर्ट देश में उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर प्रमुख प्रदर्शन संकेतक प्रदान करती है।
- इसे शिक्षा मंत्रालय द्वारा aishe.gov.in पोर्टल में सूचीबद्ध उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा डेटा संग्रह के विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए फॉर्मेट में डेटा के स्वैच्छिक अपलोड के आधार पर तैयार किया जाता है।
- शैक्षिक विकास के संकेतक जैसे संस्थान घनत्व, सकल नामांकन अनुपात, छात्र-शिक्षक अनुपात, लैंगिक समानता सूचकांक, प्रति छात्र व्यय की गणना भी AISHE के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों से की जाएगी।
सारांश: देश में उच्च शिक्षा की स्थिति को चित्रित करने के लिए, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय 2010-11 से कई मापदंडों जैसे शिक्षक, छात्र नामांकन, कार्यक्रम, परीक्षा परिणाम, शिक्षा वित्त, बुनियादी ढाँचा पर एक वार्षिक वेब-आधारित अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) आयोजित करता है। ये शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिए सूचित नीतिगत निर्णय लेने और अनुसंधान करने में उपयोगी होते हैं।
सिंधु जल संधि में संशोधन
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
विषय:भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
मुख्य परीक्षा: सिंधु जल संधि के पारिस्थितिक, आर्थिक और राजनीतिक निहितार्थ।
प्रसंग: भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ 62 साल पुरानी सिंधु जल संधि को संशोधित करने के अपने इरादे की घोषणा की है।
भूमिका:
- भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि जो सीमा पार नदियों के प्रबंधन के लिए एक तंत्र स्थापित करता है, में संशोधन करने के अपने इरादे के बारे में पाकिस्तान को सूचित किया है।
- भारत को नोटिस जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान की कार्रवाइयों का संधि के प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन पर “प्रतिकूल प्रभाव” पड़ा था।
- भारत ने जम्मू और कश्मीर दोनों में किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर विवादों को हल करने में पाकिस्तान की “हठधर्मिता” का हवाला दिया।
- भारत ने हेग में मध्यस्थता अदालत में जाने के पाकिस्तान के “एकतरफा” फैसले का भी विरोध किया।
सिंधु जल संधि को लेकर हाल के घटनाक्रमों के बारे में और पढ़ें: Recent Developments regarding Indus Water Treaty
संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
नरेगा सुधारों में कामगार और उसके बकाया भुगतानों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
राजव्यवस्था और शासन
विषय: आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं।
प्रारंभिक परीक्षा: मनरेगा
मुख्य परीक्षा: नरेगा सुधार
विवरण:
- गरीब राज्य प्रायः अपनी कमजोर प्रशासनिक क्षमता के कारण सुधारों को अपनाने में संघर्ष करते हैं।
- केंद्र सरकार की मौजूदा चिंता यह है कि गरीब राज्य बेहतर स्थिति वाले राज्यों की तुलना में कम नरेगा फंड खर्च करते हैं। यह कार्यक्रम के “प्रतिगामी” व्यय पैटर्न पर प्रकाश डालता है।
- विशेषज्ञों द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि नरेगा का प्रदर्शन सही नहीं रहा है क्योंकि पहल के मूल डिजाइन सिद्धांतों को या तो भुला दिया गया है या इसकी जानबूझकर अनदेखा की गई है।
- सुधारों के बारे में सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया गया है।
इसे भी पढ़ें: MGNREGA (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act) Notes For IAS Preparation
मनरेगा से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए कदम:
- मजदूरी के भुगतान में देरी का समाधान:
- वेतन भुगतान में देरी की समस्या का समाधान किया जाना चाहिए। इससे श्रमिकों का विश्वास बहाल करने में मदद मिलेगी।
- सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सरकार को निर्देश दिया है कि मजदूरों को समय पर वेतन दिया जाए। न्यायालय ने महीनों तक भुगतान में देरी को “बलात श्रम” के समान बताया।
- कामगार को भुगतान करने से पहले विशेष रूप से, सात या अधिक पदाधिकारियों को हस्ताक्षर करना होता है, जबकि यही वेतन भुगतान केवल एक चरण में स्वीकृत किया जा सकता है। यह भुगतान प्रक्रिया निजी बैंकों की ऋण स्वीकृत करने प्रक्रिया से भी अधिक जटिल है।
- इस प्रकार ग्रामीण विकास मंत्रालय को भुगतान प्रक्रिया को सरल बनाना चाहिए और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए।
- क्षमता को मजबूत करना:
- जहां रोजगार सृजन अधिक है वहां व्यय को नियंत्रित करने के बजाय जहां व्यय कम है वहां कार्यान्वयन क्षमता को मजबूत किया जाना चाहिए।
- समावेशन त्रुटियों के बजाय बहिष्करण (exclusion) पर ध्यान देने की आवश्यकता है। बहिष्करण (exclusion) की पहचान घरेलू स्तर पर की जानी चाहिए।
- हालांकि नरेगा सबसे गरीब तबके के लिए लक्षित है, फिर भी विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) परिवारों को लाभान्वित करने के लिए, इसमें और सुधार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, सीमांत समुदायों की कम भागीदारी वाले क्षेत्रों (ब्लॉक, पंचायत या जिला) की पहचान की जानी चाहिए।
- इस दिशा में, नरेगा की ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली से उन क्षेत्रों की पहचान में मदद मिल सकती है जहां पात्रता का उल्लंघन होता है।
- कार्यक्रम को कानून की तरह संचालित किया जाना चाहिए:
- इस कार्यक्रम को योजना के बजाय मांग आधारित कानून की तरह संचालित किया जाए।
- नरेगा की पूरी क्षमता का लाभ नहीं उठा पाने वाले राज्यों के मूलभूत कारणों में से एक केंद्र सरकार द्वारा फंड की रुक-रुक कर और अप्रत्याशित उपलब्धता है। उदाहरण के लिए, वर्तमान में 24 राज्यों की देनदारियों में लगभग ₹18191 करोड़ बकाया है।
- सुधारों का प्रस्ताव करने से पहले सहभागितापूर्ण चर्चा:
- किसी भी प्रस्तावित सुधार पर चर्चा को सहभागी बनाया जाना चाहिए।
- जनभागीदारी की भावना के कारण नरेगा अपने समय से बहुत पहले एक संस्थागत संरचना बन गया था।
- राज्य और केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषदों जैसे सलाहकार मंचों और प्रक्रियाओं का निर्माण किया जाना चाहिए।
- किसी भी प्रस्तावित सुधार को संसद के अलावा राज्य विधानसभाओं में पेश किया जाना चाहिए। इसके अलावा, नागरिक समाज संगठनों, श्रमिक संघों और स्वयं सहायता समूहों (self-help groups) के प्रतिनिधियों को चर्चा में शामिल किया जाना चाहिए।
- प्रत्येक सुधार के प्रभाव का मानचित्रण:
- सरकार को नरेगा की पहुंच और व्यय पर प्रत्येक सुधार के प्रभाव का खाका बनाने का प्रयास करना चाहिए।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अधिकांश सुधार जैसे इलेक्ट्रॉनिक फंड प्रबंधन प्रणाली, संपत्तियों की जियो-टैगिंग, और एक राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (NMMS) केंद्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इससे क्रियान्वयन प्रक्रिया बाधित हुई है।
- इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार को नरेगा श्रमिकों को अधिकारों से वंचित करने को लेकर जवाबदेह बनाया जाना चाहिए क्योंकि सुधार आमतौर पर ऊपर से नीचे (top-down) होते हैं।
बिहार का केस स्टडी: वर्क डिमांड आवेदनों की रसीदें मिलने के बावजूद समय पर काम शुरू नहीं हो रहा है। इसके अलावा, कार्य जो कामगारों को उपलब्ध कराए जाते हैं मांग के हिसाब से नहीं होते हैं। 2013 में, नरेगा के तहत काम की घटती मांग के परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 6 राज्यों के 6 जिलों में काम मांगो अभियान शुरू किया गया था। अकेले कटिहार जिले में लगभग 53000 श्रमिकों ने काम की मांग की और दिनांकित रसीदें प्रदान की गईं। तथापि, राज्यों को समय पर धनराशि जारी नहीं की गई। इसी तरह, कटिहार के बरारी ब्लॉक में मजदूर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे क्योंकि उन्हें न तो काम दिया गया और न ही किए गए काम के लिए मजदूरी। |
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निष्कर्ष:
नरेगा में होने वाले किसी भी नए सुधार में केवल प्रशासनिक और वित्तीय दक्षता पर जोर देने के बजाय सुगमता और गरिमा के साथ पात्रता तक श्रमिकों की पहुंच को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए।
संबंधित लिंक:
How successful is MGNREGA? Answer at BYJU’S IAS
सारांश:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम से जुड़ी कई चिंताएँ हैं। भारत सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया गया है। इस समिति को श्रमिकों की जरूरतों और अधिकारों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
तंबाकू उत्पादों से संबंधित कर व्यवस्था पर पुनर्विचार की आवश्यकता
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
स्वास्थ्य
विषय: स्वास्थ्य से जुड़े मामले
मुख्य परीक्षा: तंबाकू उत्पादों का कराधान
विवरण:
- अपनी प्रसिद्ध कृति द वेल्थ ऑफ नेशंस में, एडम स्मिथ ने सुझाव दिया कि चीनी, रम और तम्बाकू जैसी वस्तुओं का व्यापक रूप से उपभोग किया जाता है और इस प्रकार इन पर कर लगाया जाना चाहिए।
- दुनिया भर में हुए कई शोध कार्य में भी तम्बाकू की खपत को विनियमित करने के लिए करों का समर्थन किया गया है।
- हालांकि, वस्तु एवं सेवा कर (GST) के लागू होने के बाद से भारत में तंबाकू करों में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, जिससे ये उत्पाद तेजी से सस्ते होते चले गए हैं।
- भारत का औसत वार्षिक तंबाकू कर राजस्व केवल ₹537.5 बिलियन है। जबकि, वर्ष 2017 में तंबाकू के उपयोग और सेकेंड हैंड स्मोक एक्सपोजर के कारण आर्थिक बोझ और स्वास्थ्य देखभाल खर्च लगभग ₹2340 बिलियन (या GDP का 1.4%) था।
- तंबाकू का बढ़ता उपभोग 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के विज़न के लिए खतरा है।
- भारत में तम्बाकू के उपयोग से प्रतिदिन लगभग 3500 मौतें होती हैं जिससे मानव पूंजी और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कराधान प्रणाली के मुद्दे और इससे निपटने के तरीके:
- यथामूल्य (ad valorem) करों का अत्यधिक प्रयोग उपभोग को विनियमित करने में प्रभावी नहीं है। जीएसटी, पूर्व-जीएसटी प्रणाली जिसमें विशिष्ट उत्पाद करों का उपयोग होता था, के बजाय यथामूल्य (ad valorem) करों पर अधिक निर्भर है।
- जीएसटी के लागू के बाद भारत में कुल तंबाकू करों में केंद्रीय उत्पाद शुल्क का हिस्सा काफी कम हो गया। उदाहरण के लिए,
- सिगरेट के लिए, यह 54% से घटकर 8% हो गया।
- बीड़ी में यह 17% से घटकर 1% हो गया।
- धूम्ररहित (smokeless) तंबाकू के मामले में करों को 59% से घटाकर 11% कर दिया गया।
- विशेष रूप से राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (NCCD) का एक बड़ा हिस्सा या तम्बाकू उत्पादों पर लगाया जाने वाला मुआवजा उपकर विशिष्ट है।
- NCCD को वित्त अधिनियम, 2001 की सातवीं अनुसूची के तहत निर्दिष्ट कुछ निर्मित वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क के रूप में लगाया जाता है।
- यदि विशिष्ट करों को समय-समय पर मुद्रास्फीति (Inflation) के लिए समायोजित नहीं किया जाता है, तो वे अपना मूल्य खो देते हैं।
- इस प्रकार तम्बाकू उत्पादों पर लागू होने वाले किसी भी विशिष्ट कर के लिए मुद्रास्फीति सूचकांक को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
- उत्पाद कराधान में विसंगतियां:
- भले ही तम्बाकू उपयोगकर्ताओं में सिगरेट उपयोगकर्ताओं का हिस्सा 15% है, फिर भी इनसे लगभग 80% तम्बाकू कर प्राप्त होता है।
- बीड़ी और धूम्ररहित तम्बाकू पर कम कर हैं, जिससे उनकी खपत को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, बीड़ी पर कोई क्षतिपूर्ति उपकर नहीं लगाया जाता है।
- तंबाकू पर कर लगाने का मूल सिद्धांत सार्वजनिक स्वास्थ्य होना चाहिए।
- सिगरेट के लिए वर्तमान छह-स्तरीय कर संरचना सिगरेट कंपनियों को सिगरेट की लंबाई और इसी तरह के नाम वाले ब्रांडों के फिल्टर में हेरफेर करके कानूनी रूप से करों से बचने का अवसर प्रदान करती है।
- इस स्तरित प्रणाली को धीरे-धीरे समाप्त किया जाना चाहिए।
- तंबाकू के पत्ते, तेंदू के पत्ते, पान के पत्ते, सुपारी आदि जैसे कुछ धुएं रहित तंबाकू सामग्री पर जीएसटी की दर या तो 0 या 5% -18% है।
- तंबाकू से संबंधित सभी उत्पादों को एकसमान 28% जीएसटी स्लैब के तहत लाया जाना चाहिए।
- सभी धूम्रराहित तंबाकू उत्पादों पर उनके छोटे खुदरा पैक आकार के कारण उनकी कीमत कम रखने को लेकर प्रभावी तरीके से कर नहीं लग पाता है। इस चिंता को दूर करने के लिए अनिवार्य मानकीकृत पैकिंग (कम से कम 50 ग्राम-100 ग्राम) लागू की जानी चाहिए। इससे पैकेजिंग पर ग्राफिक स्वास्थ्य चेतावनियों को लागू करना भी आसान हो जाएगा।
- 40 लाख रुपये से कम के वार्षिक कारोबार वाले छोटे व्यवसायों और निर्माताओं को जीएसटी से छूट दी गई है। विशेष रूप से, कई धूम्ररहित तंबाकू और बीड़ी निर्माता छोटे अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित हैं, इस प्रकार इन उत्पादों पर कर आधार कम हो जाता है। इन छूटों पर उपयुक्त शर्तें लगाई जानी चाहिए।
- जीएसटी लागू होने के बाद राज्य तंबाकू पर कर नहीं बढ़ा सकते। यह राजस्व बढ़ाने और खपत को नियंत्रित करने की उनकी क्षमता में बाधा डालता है। इन पर कर को नियमित अंतराल पर बढ़ाया जाना चाहिए।
- पिछले पांच वर्षों में भारत में तंबाकू उत्पादों पर करों में वृद्धि नहीं हुई है। यह 2009-10 से 2016-17 तक तंबाकू के उपयोग में 17% की कमी में देखी गई प्रगति को वापस पूर्वस्थिति में ला सकता है। जीएसटी परिषद और केंद्रीय बजट दोनों में सभी तंबाकू उत्पादों पर करों में उल्लेखनीय वृद्धि की जानी चाहिए।
संबंधित लिंक:
UPSC Exam: Comprehensive News Analysis – January 18
सारांश:
भारत में मौजूद वर्तमान तंबाकू कराधान प्रणाली खपत को विनियमित करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के प्रयासों में बाधा बन रही है। उत्पाद शुल्क या क्षतिपूर्ती उपकर में बढ़ोतरी के माध्यम से सभी तंबाकू उत्पादों पर करों को नियमित रूप से बढ़ाना महत्वपूर्ण हो गया है ताकि उन्हें कम वहनीय बनाया जा सके।
भारतीय विश्वविद्यालयों की शिक्षण गुणवत्ता में कमी
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
शिक्षा
विषय: शिक्षा के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय
मुख्य परीक्षा: भारतीय विश्वविद्यालयों में मौजूद समस्याएँ
विवरण:
- लेखक द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ प्रतिस्पर्धा की भावना भारतीय विश्वविद्यालयों की निम्न स्थिति की ओर गमन को रोक देगी।
- हालांकि नई पहल भारत को नया वैश्विक शिक्षा गंतव्य बना सकती है, लेकिन इससे स्थिति और भी खराब होने का खतरा है। उदाहरण के लिए, सर्वश्रेष्ठ शिक्षक विभिन्न विदेशी विश्वविद्यालयों में पदों की तलाश कर सकते हैं और भारतीय विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षकों की कमी हो सकती है, जिससे स्तर में और गिरावट आ सकती है।
- इसलिए यह सिफारिश की गई है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को ऐसी संभावना का संज्ञान लेना चाहिए।
भारतीय विश्वविद्यालयों की मौजूदा चुनौतियां:
- नौकरशाहीकृत शासी निकायों और विश्वविद्यालयों के अकादमिक नेतृत्व में अक्सर विभिन्न विचारों और निर्णयों को संभालने की क्षमता का अभाव होता है।
- तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत अपने नागरिकों को विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय प्रणाली उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
- इसके अतिरिक्त, शिक्षा के लिए बजटीय आवंटन बहुत कम है।
- विश्वविद्यालयों के शासी निकाय अक्सर नए शैक्षणिक अभ्यासों के साथ शैक्षणिक वातावरण के महत्व को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
- यह भी पाया गया है कि विश्वविद्यालय में अक्सर निष्पक्ष और प्रतिभावान लोगों को नीचा दिखाया जाता है। कई प्रतिष्ठित शिक्षाविदों और कुलपतियों को दरकिनार कर दिया जाता है और वैचारिक निष्ठा के आधार पर मनमाने ढंग से नियुक्तियां की जाती हैं।
- इसके अलावा, वैचारिक मान्यताओं के कारण शासी निकाय भी बाधित हैं। ऐसी परिस्थिति भारतीय विश्वविद्यालयों को अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में अपनी छाप छोड़ने की राह में बाधक बनती है।
- लेखक यह भी बताते हैं कि सिविल सेवकों के जीवनसाथी विश्वविद्यालय के पदों पर आसानी से प्रवेश पाते हैं।
- काम की नैतिकता की कमी और अयोग्यता जैसी प्रक्रियागत अनियमितताएं भी हैं जिन्होंने सुस्ती को आंतरिक बना दिया है।
- विश्वविद्यालयों की चयन समितियाँ अक्सर पूर्व सदस्य को विशेषज्ञों या नामितों के रूप में पुनर्नियुक्त कर देती हैं, जिससे अधिक योग्य और वरिष्ठ शिक्षकों की उपेक्षा होती है।
- यह भी रेखांकित किया गया है कि शिक्षण समुदाय वरिष्ठता और योग्यता के सिद्धांतों के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर मौन रहता है। इससे नैतिक प्रथाओं के अलावा विश्वविद्यालय की स्थिरता और शैक्षणिक प्रतिष्ठा को खतरा है।
- वहाँ निरंतर भेदभाव होता है जहाँ शिक्षण समुदाय को शासी निकायों की बात मानने के लिए निर्देशित किया जाता है। यह अकादमिक संस्कृति के मूल तत्त्व को प्रभावित करता है।
- बहस और चर्चा को प्रोत्साहित करने वाली प्रगतिशील नीति का अभाव है।
निष्कर्ष:
समान अवसर, परिस्थिति और एक सार्वजनिक चर्चा-परिचर्चा की शुरूआत की जानी चाहिए। भारत के विश्वविद्यालयों में चल रहे मुद्दों को उजागर करने और उनका समाधान करने के लिए जागरूक शिक्षाविदों को भी आगे आना चाहिए।
संबंधित लिंक:
UPSC Exam Comprehensive News Analysis. Jan 23rd, 2023 CNA. Download PDF
सारांश:
भारत के विश्वविद्यालयों में मौजूद सामाजिक-शैक्षणिक स्थिति कई गंभीर मुद्दों से प्रभावित है। समय की मांग यही है कि सभी संबंधित हितधारकों द्वारा इन चिंताओं को दूर किया जाए ताकि भारत उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए एक वैश्विक गंतव्य बन सके।
प्रीलिम्स तथ्य:
कुष्ठ रोग
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
विषय: स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे
प्रारंभिक परीक्षा: स्थानिक रोग; विश्व स्वास्थ्य संगठन
प्रसंग: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में देशों से कुष्ठ रोग सेवा में अंतराल को दूर करने का आग्रह किया है।
मुख्य विवरण:
- विश्व कुष्ठ दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने देशों से, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में, कोविड-19 महामारी द्वारा बाधित कुष्ठ सेवाओं में अंतराल का तत्काल समाधान निकालने का आग्रह किया।
- WHO ने देशों से शून्य कुष्ठ रोग, कलंक और भेदभाव के लक्ष्य – WHO का वैश्विक कुष्ठ रोग रणनीति 2021-2030 विज़न – को प्राप्त करने के प्रयासों में तेजी लाने को कहा है।
- कोविड-9 महामारी से निपटने के लिए सरकारों द्वारा किए गए उपायों, जैसे कि लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों, ने विशेष रूप से कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों जैसे कमजोर समुदायों पर भारी असर डाला है।
- कई लोगों ने अपनी आजीविका खो दी और वे अपनी बीमारी या उसके बाद के प्रभावों के लिए इलाज तक पहुंचने में असमर्थ थे।
- कुष्ठ रोग कार्यक्रम बाधित हो गए जिसके कारण नए मामलों की संख्या में भारी गिरावट आई। मामलों की संख्या में गिरावट इस तथ्य को छिपाती है कि मामलों का पता नहीं चल पा रहा है, जो कुष्ठ रोग के संचरण में योगदान देता है और जिसके कारण अधिक लोगों के विकलांग होने का जोखिम है।
- कुष्ठ सेवाओं पर कोविड-19 के प्रभाव से चिंतित होकर, यह सुनिश्चित करने के लिए कि महामारी के बीच भी कुष्ठ रोग को भुलाया न जाए, अगस्त 2021 में, “डोंट फॉरगेट लेप्रोसी”/ “डोंट फॉरगेट हैनसेन्स डिजीज” अभियान शुरू किया गया।
- अभियान के तहत विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य मंत्रालयों, कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों, अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों सहित भागीदारों की एक विस्तृत श्रृंखला के सहयोग से कई जागरूकता बढ़ाने वाली गतिविधियाँ शुरू की गई हैं।
विश्व कुष्ठ दिवस:
- जहाँ दुनिया भर के देश 29 जनवरी को विश्व कुष्ठ दिवस मनाते हैं, वहीं भारत इसे हर साल 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन मनाता है।
- इसकी शुरुआत इस रोग से प्रभावित लोगों का सहयोग करने के लिए 1954 में फ्रांसीसी पत्रकार राउल फोलेरेउ द्वारा की गई थी।
- 29 जनवरी, 2023 को इसे 70वीं बार मनाया गया। इस वर्ष 28 फरवरी, 1873 को नार्वे के चिकित्सक गेरहार्ड अरमाउर हैनसेन द्वारा कुष्ठ रोग के कारक एजेंट एम. लेप्रे की खोज की 150वीं वर्षगांठ भी मनाई जा रही है।
- कुष्ठ रोग, जिसे अन्यथा हैनसेन रोग के रूप में जाना जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है। डॉ. हैनसेन द्वारा यह खोजे जाने से पहले कि कुष्ठ रोग एक जीवाणु संक्रमण के कारण होता है, इसे कभी-कभी दैवीय दंड या अभिशाप के रूप में देखा जाता था।
कुष्ठ रोग पर और पढ़ें: Leprosy
महत्वपूर्ण तथ्य:
- महिला अंडर-19 टी-20 विश्व कप
- शेफाली वर्मा के नेतृत्व में भारतीय अंडर-19 महिला टीम ने 29 जनवरी, 2023 को ICC अंडर-19 महिला टी-20 विश्व कप फाइनल में इंग्लैंड को हराया।
- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने जीत के बाद पूरी भारतीय टीम के लिए 5 करोड़ रुपये के नकद इनाम की घोषणा की।
- 2023 का ICC अंडर-19 महिला टी-20 विश्व कप, ICC महिला अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप का पहला संस्करण था, जिसकी मेजबानी 2023 में दक्षिण अफ्रीका ने की थी।
- अप्रैल 2021 में, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने घोषणा की थी कि कोविड-19 महामारी के कारण टूर्नामेंट को 2021 के अंत में अपने मूल स्लॉट से जनवरी 2023 में स्थानांतरित कर दिया गया है।
- इंडोनेशिया और रवांडा ने पहली बार किसी भी स्तर पर ICC विश्व कप टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई किया। यह किसी भी स्तर पर स्कॉटलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमेरिका और जिम्बाब्वे के लिए पहला ICC महिला विश्व कप भी है।
- ऑस्ट्रेलियन ओपन
- ऑस्ट्रेलियन ओपन एक टेनिस टूर्नामेंट है जो हर साल मेलबर्न, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न पार्क में आयोजित किया जाता है।
- यह टूर्नामेंट फ्रेंच ओपन, विंबलडन और यूएस ओपन से पहले हर साल आयोजित होने वाले चार ग्रैंड स्लैम टेनिस आयोजनों में से पहला है।
- सर्बिया के नोवाक जोकोविच ने स्टेफानोस सितसिपास को हराकर 2023 ऑस्ट्रेलियन ओपन पुरुष खिताब जीता।
- बेलारूस की आर्यना सबालेंका ने ऑस्ट्रेलियन ओपन महिला फाइनल में एलेना रयबाकिना को हराया।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सत्य है/हैं? (स्तर- कठिन)
- पश्चिमी विक्षोभ कैस्पियन या भूमध्य सागर में उत्पन्न होता है।
- इन्हें बहिरूष्ण कटिबंधीय तूफानों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
विकल्प:
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ कैस्पियन या भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं, और उत्तर-पश्चिम भारत में गैर-मानसूनी वर्षा लाते हैं।
- कथन 2 सही है: इन्हें बहिरूष्ण कटिबंधीय तूफान कहा जाता है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही कथनों की पहचान कीजिए: (स्तर- मध्यम)
- UNSC में 10 सदस्य अस्थायी होते हैं।
- यह संयुक्त राष्ट्र महासभा में नए सदस्यों को शामिल करने की सिफारिश करता है।
- भारत वर्तमान में UNSC का अस्थायी सदस्य है।
विकल्प:
- 1 और 2
- 2 और 3
- 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: UNSC में 5 स्थायी सदस्य (चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) और 10 गैर-स्थायी सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा गैर-स्थायी सदस्यों को दो साल के लिए चुना जाता है।
- कथन 2 सही है: यह संयुक्त राष्ट्र महासभा में नए सदस्यों को शामिल करने की सिफारिश करता है।
- कथन 3 सही नहीं है: UNSC के वर्तमान गैर-स्थायी सदस्य अल्बानिया, ब्राजील, इक्वाडोर, गैबॉन, घाना, जापान, माल्टा, मोजाम्बिक, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात हैं।
प्रश्न 3. पश्चिमी घाट के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन से कथन सत्य हैं? (स्तर- मध्यम)
- ये एक जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं।
- पश्चिमी घाट का उच्चतम बिंदु नंदी पहाड़ियाँ हैं।
- यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण जल-विभाजन (water-divide) है।
विकल्प:
- 1 और 2
- 2 और 3
- 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: पश्चिमी घाट एक पर्वत श्रृंखला है जो भारत के पश्चिमी तट के समानांतर गुजरात से शुरू होकर तमिलनाडु में समाप्त होती है। वे एक जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं।
- कथन 2 सही नहीं है: अनामुडी पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी है।
- कथन 3 सही है: पश्चिमी घाट प्रायद्वीपीय भारत में मुख्य जल विभाजन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस जल विभाजन के कारण लगभग सभी प्रमुख प्रायद्वीपीय नदियाँ जैसे गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी पूर्व की ओर बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से कौन से कथन सत्य नहीं हैं? (स्तर- सरल)
- गांधीजी जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आ गए।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।
- उन्होंने अहमदाबाद मिल हड़ताल के दौरान पहली बार अपने सत्याग्रह का प्रयोग किया।
विकल्प:
- 1 और 2
- 2 और 3
- 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: 9 जनवरी 1915 को, राष्ट्रपिता एम. के. गांधी दक्षिण अफ्रीका से जलमार्ग से यात्रा करते हुए बंबई पहुंचे, गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में दो दशकों से अधिक समय तक रहे।
- कथन 2 सही नहीं है: INC की स्थापना एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश सिविल सेवक एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने दादाभाई नौरोजी और दिनशॉ वाचा के साथ की थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का पहला अधिवेशन 28 दिसंबर 1885 को बॉम्बे में आयोजित किया गया था।
- कथन 3 सही नहीं है: गांधी जी द्वारा भारत में पहला सत्याग्रह 1917 का चंपारण सत्याग्रह था।
प्रश्न 5. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिए निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (स्तर- कठिन)
- कसावा
- क्षतिग्रस्त गेहूं के दाने
- मूंगफली के बीज
- कुलथी
- सड़ा आलू
- चुकंदर
निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिए:
- केवल 1, 2, 5 और 6
- केवल 1, 3, 4 और 6
- केवल 2, 3, 4 और 5
- 1, 2, 3, 4, 5 और 6
उत्तर: a
व्याख्या:
- जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति गन्ने के रस; शर्करा युक्त सामग्री जैसे चुकंदर, मीठी ज्वार; स्टार्च युक्त सामग्री जैसे मकई, कसावा; क्षतिग्रस्त खाद्यान्न जो मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त हैं जैसे गेहूं, टूटे चावल, सड़ा हुआ आलू के उपयोग की अनुमति देकर इथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार करती है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. “तंबाकू उत्पादों की मांग को कम करने के लिए कराधान सबसे अधिक लागत प्रभावी उपायों में से एक है”। चर्चा कीजिए।
(250 शब्द; 15 अंक) (GS III-अर्थशास्त्र)
प्रश्न 2. भारत में विश्वविद्यालयों के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? ऐसे उपायों का सुझाव दीजिए जो भारत को ‘विश्व स्तरीय विश्वविद्यालयों का एक घर’ की अपनी पूर्ववर्ती स्थिति को फिर से हासिल करने में मदद कर सकते हैं।
(250 शब्द; 15 अंक) (GS II-शासन)