गुप्त काल को भारत का स्वर्णिम युग माना जाता है। भारत में गुप्त शासनकाल के दौरान ही कला और साहित्य का अद्भुत विकास हुआ। इस काल की वास्तुकृतियां और साहित्य को आज भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस काल को संस्कृत साहित्य के लिए भी स्वर्ण युग माना जाता है। गुप्त काल का, प्राचीन भारत के इतिहास और साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। गुप्त काल को संस्कृत के श्रेष्ठ कवियों का युग भी कहा जाता है।
गुप्त काल के कवियों और उनकी रचानाओं को दो भागों में बांटा गया है-
प्रथम भाग – इसमें वो कवि शामिल हैं जिनके बारे में अभिलेखों द्वारा जानकारी प्राप्त होती है। लेकिन इन कवियों की किसी कृति के बारे में ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस श्रेणी में हरिषेण, शाव (वीरसेन), वत्सभट्टि और वासुल जैसे महान कवि आते हें।
द्वितीय श्रेणी – इसमें वो कवि शामिल हैं जिनकी रचनाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध हैं। इस श्रेणी में भर्तृश्रेष्ठ, कालिदास, भारवि, भट्टि, मातृगुप्त, तथा विष्णु शर्मा आदि आते हैं।
कला और संस्कृति, यूपीएससी और आईएएस परीक्षा के लिए बेहद महत्पूर्ण विषय है। इस लेख में हम आईएएस परीक्षा 2023 की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए गुप्त काल के प्रमुख रचाकारों एवं उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। इससे आपको आईएएस प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों की तैयारी में मदद मिलेगी।
गुप्त काल सांस्कृतिक विकास में भारत के स्वर्ण काल के रूप में जाना जाता था। इसे सर्वोच्च और सबसे उत्कृष्ट समयों में से एक माना जाता है। गुप्त राजाओं ने संस्कृत साहित्य का संरक्षण किया। उन्होंने उदारतापूर्वक संस्कृत के विद्वानों और कवियों की मदद की। हालांकि बाद में संस्कृत भाषा सुसंस्कृत और शिक्षित लोगों की भाषा बन गई।
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कालिदास
भारत के गुप्त काल (तीसरी-चौथी शताब्दी) में कालिदास संस्कृत भाषा के एक महान कवि और नाटककार थे। भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर कालिदास ने कई महान रचनाएं की। कालिदास की रचनाओं में भारतीयता कई रुपों में दिखाई देती हैं। इसलिए कालिदास को गुप्त काल में भारत की राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने वाला कवि माना जाता हैं।
कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना, अभिज्ञानशाकुंतलम् को माना जाता है। कालिदास की इस रचना का सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। इसलिए, अभिज्ञानशाकुंतलम् को विश्व साहित्य की सबसे महान रचनाओं में गिना जाता है। अभिज्ञानशाकुंतलम में कालिदास ने राजा दुष्यन्त और शकुन्तला की प्रेम कहानी का अद्भुत वर्णन किया है। कालिदास ने इस कथा को महाभारत के आदिपर्व से लिया था। इसमें दुष्यन्त और शकुन्तला के प्रेम, शादी, विरह, संघर्ष और पुनर्मिलन की कहानी है। इसके अलावा, मेघदूतम्, कालिदास की अन्य श्रेष्ठ कृति है। कालिदास ने अपनी रचाओं में प्रकृति का भी अद्भुत वर्णन किया है। इसलिए उन्हें गुप्त काल का सबसे बड़ा कवि और नाटककार माना जाता है।
कालिदास की प्रमुख कृतियां
- अभिज्ञानशाकुंतलाम
- विक्रमोर्वशी
- मालविकाग्निमित्रम्
- महाकाव्य कविताएं रघुवंश
- कुमारसंभवम्
- मेघदूतम्
विशाखादत्त
विशाखदत्त, गुप्तकाल में संस्कृत भाषा के महान नाटककार थे। विशाखदत्त ने देवी चंद्रगुप्तम् में गुप्त वंश के शासक रामगुप्त की पत्नी देवी तथा उनके छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय की कहानी को बेहद सुंदर ढंग से वर्णित किया है। उनकी दो अन्य महान रचनाएं- देवी चन्द्रगुप्तम् और राघवानन्द नाटकम् भी है। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘मुद्राराक्षस’ है। देवी चंद्रगुप्तम् की कथा के अनुसार गुप्तकाल में, समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त ने राजभार संभाला। लेकिन उसे आयोग्य राजा माना जाता था। वहीं, उनकी पत्नि देवी पढ़ी-लिखी महिला थी। देवी ने रामगुप्त के छोटे भाई चंद्रगुप्त-II के साथ मिलकर षड्यंत्र कर रामगुप्त की हत्या करवा दी। बाद में देवी और चंद्रगुप्त-II की पुत्री प्रभावती उत्पन्न हुई। उसका विवाह वाकाटक वंश के राजा रूद्रसेन से हुआ था। इसके बाद वाकाटक वंश और गुप्त वंश के बीच मित्रता स्थापित हुई।
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शूद्रक
गुप्तकाल के साहित्य में शूद्रक की रचाओं का भी काफी उल्लेख मिलता है। शूद्रक का काल छठी शताब्दी में माना जाता है। शूद्रक, राजा होने के साथ-साथ संस्कृत के प्रमुख साहित्यकार भी थे। इनकी प्रमुख रचाओं में ‘मृच्छकटिकम्’ सबसे श्रेष्ठ है। विक्रमादित्य की तरह राजा शूद्रक के बारे में भी कई दंतकथाएं प्रचलित हैं। उनकी रचना मृच्छकटिकम् के उल्लेखों से पता चलता है कि शूद्रक दक्षिण भारतीय थे। उन्हें प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं का ज्ञाता माना जाता था। हालांकि कुछ लोग शूद्रक को एक कल्पित पात्र मानते हैं। लेकिन स्कन्दपुराण में शूद्रक के राजा होने का उल्लेख जरुर मिलता है। बाण ने भी अपनी रचना ‘कादम्बरी’ में राजा शूद्रक का उल्लेख किया है। कादम्बरी में कथासरित्सागर में शोभावती तथा वेतालपंचविंशति में वर्धन नामक नगर में शूद्रक के राजा होने का उल्लेख किया गया है।
शूद्रक की प्रमुख रचनाएं –
- मृच्छकटिकम
- वासवदत्ता
- पद्मप्रभृतका
- विनवासवदत्त
- एक भाना (लघु एकांकी एकालाप)
- पद्मप्रभृतक
हेरिसेन या हरिषेण
हरिषेण, चौथी शताब्दी के प्रसिद्ध संस्कृत कवि थे। वो समुद्रगुप्त की सभा के महत्वपूर्ण सभासद और मन्त्री थे। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना “प्रयाग प्रशस्ति” को माना जाता है। इसमें समुद्रगुप्त की वीरता का वर्णन किया गया है। उनकी रचना इलाहाबाद में एक स्तंभ पर उत्कीर्ण पाई गई थी।
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भास
भास को संस्कृत का श्रेष्ठ नाटककार माना जाता है। लेकिन उनके जीवनकाल के बारे ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। भास की सबसे प्रसिद्ध रचना, स्वप्नवासवदत्ता को माना जाता है। इसमें एक राजा और उसकी रानी के प्रेम और पुनर्मिलन की कहानी को दर्शाया गया है। भास को कई नाटकों का रचनाकार माना जाता है। साल 1912 में त्रिवेंद्रम के महान संस्कृत स्कॉलर गणपति शास्त्री ने कुछ नाटकों की लेखन शैली में समानता देखकर उन्हें भास द्वारा रचित बताया है। इससे पहले संस्कृत नाटककार के रूप में भास का नाम भुला दिया गया था। भास ने 13 नाटक लिखे थे। इनमें गुप्त काल की जीवन शैली और मान्यताओं के साथ-साथ उस समय की संस्कृति का वर्णन हैं।
भारवि
भारवि, छठी शताब्दी मे संस्कृत के सबसे महान कवियों में से एक हैं। भारवि का जन्म दक्षिण भारत के महर्षि कवि के वंश, भट्ट ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी सबसे महान रचना है। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य, महाभारत के वन पर्व पर आधारित है। इसमें शिकारी अर्जुन और किरातरूपधारी शिव के बीच के धनुर्युद्ध के बारे में वार्तालाप का वर्णन किया गया है।
भट्टी
भट्टि, संस्कृत के मुख्य रचनाकारों में से एक है। भट्टि का जन्म 641 ई से पूर्व माना जाता है। उनकी रचनाओ में श्रीधरसेन द्वारा शासित वलभी में रहकर रचनाएं करने का वर्णन है। रावणवधम्, उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। इसे वर्तमान में भट्टिकाव्य के नाम से जाना जाता है।
माघ
माघ, संस्कृत के प्रसिद्ध महाकवियों की त्रयी (माघ, भारवि, कालिदास) में से एक हैं। माघ का जन्म भीन-माल के एक प्रतिष्ठित श्रीमाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। माघ के पिता का नाम दत्तक था। माघ ने शिशुपाल वध नामक एक ही महाकाव्य लिखा है। इसमें युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल वध का वर्णन किया गया है। इसकी रचना 7वीं शताब्दी ईस्वी में की गई मानी जाती है।
दण्डी
दण्डी, गुप्तकाल के संस्कृत भाषा के एक अन्य महान रचनाकार थे। हालांकि उनके जीवन के बारे में सूचनाओं का काफी अभाव है। लेकिन कुछ विद्वान उनका जीवन काल सातवीं शती के अंत या आठवीं की शुरूआत में मानते हैं। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म 550 और 650 ईस्वी के मध्य हुआ था। लेकिन दण्डी के जीवन और रचनाएं अब भी विवादास्पद है। काव्यादर्शन और दशकुमारचरित दण्डी की प्रसिद्ध रचनाएं थीं। दशकुमारचरित (‘द टेल ऑफ़ द टेन प्रिंसेस’) में 10 राजकुमारों के कारनामों का वर्णन है।
भर्तृहरि
संस्कृत के महान कवि भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उनके द्वारा रचित नीतिशतक, शृंगारशतक और वैराग्यशतक की उपदेशात्मक कहानियां आज भी लोगों को काफी प्रभावित करती हैं। इनके त्रीय शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। भर्तृहरि का जीवन विविधताओं से भरा रहा था। भर्तृहरि को विक्रमसंवत् के प्रवर्तक विक्रमादित्य का बड़ा भाई माना जाता है। भर्तृहरि बाद में गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन गए थे और उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया था। इसलिए उनका लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है। उनके द्वारा रचित नीतिशतक में दर्शन पर 100 छंद हैं। उन्होंने संस्कृत व्याकरण पर वाक्यपदीय ग्रंथ भी लिखा है।
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ईश्वर कृष्ण
ईश्वर कृष्ण, गुप्तकाल के प्रसिद्ध सांख्य दार्शनिक थे। हालांकि उनका जन्म काल विवादित है। डॉ तकाकुसू के अनुसार ईश्वर कृष्ण का जन्म काल 450 ईस्वी माना गया है। वहीं, डॉ वी स्मिथ के इसे 240 ईस्वी के आसपास मानते हैं। ईश्वर कृष्ण द्वारा रचित ‘कारिका’ सांख्य दर्शन पर उपलब्ध सबसे प्राचीन ग्रंथ माना गया है। ईश्वर कृष्ण खुद को मूलत: अनीश्वरवादी मानते थे।
व्यास
व्यास ने व्यासभाष्य लिखा है, जो योग दर्शन सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
वात्स्यायन
मल्लंग वात्स्यायन या महर्षि वात्स्यायन, गुप्तकाल के सबसे महान दार्शनिक माने जाते हैं। वात्स्यायन का काल दूसरी या तीसरी शताब्दी के दौरान माना जाता है। उनका जन्म स्थान पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में माना जाता है। कामसूत्र और न्यायसूत्रभाष्य को उनकी सबसे श्रेष्ठ रचनाओं में गिना जाता है। उन्होंने कामसूत्र में दांपत्य जीवन के साथ-साथ कला एवं शिल्पकला का भी अद्भुत वर्णन किया है। ऐसा माना जाता है कि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में जो काम विष्णुगुप्त कौटिल्य (चाणक्य) ने किया है, वही काम, काम (विषयों के भोग की ओर होने वाली इंद्रियों की स्वा भाविक प्रवृत्ति) के क्षेत्र में महर्षि वात्स्यायन ने किया है।
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