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नल्लामाला पहाड़ियां

नल्लामाला पहाड़ियां भारत के दक्षिणी भाग में पूर्वी घाट पर्वतमाला का भाग हैं। यह आन्ध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र से लेकर तेलंगाना के महबूबनगर और नल्गोंडा की पूर्वी सीमा तक नेल्लोर, चित्तूर, कुरनूल, कडपा और प्रकाशम के क्षेत्रों में फैली हुई हैं। नल्लामाला पहाड़ियों के हरे -भरे परिवेश, मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य और प्राकृतिक पगडंडियां पर्वतारोहियों और वन्यजीवों के प्रति रूचि रखने वाले लोगों को बेहद आकर्षित करते हैं। इन पहाडियों की लंबाई करीब 430 किलोमीटर है।

नल्लामाला हिल्स आंध्र प्रदेश के सबसे अच्छे हिल स्टेशनों में से एक है। यह जगह प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफी में रूचि रखने वाले लोगों का बेहद पसंदीदा पर्यटन स्थल है। इन पहाड़ियों पर 1100 मीटर (3608 फीट) ऊंचा भैरानी कोंडा, सबसे ऊंचा पर्वत है। ये पहाड़ियां लगभग 140 किमी तक उत्तर-दक्षिण दिशा में कोरोमंडल तट से समानांतर और कृष्णा नदी और पेन्नार नदी के बीच स्थित हैं।

इस लेख में हम आईएएस परीक्षा के संदर्भ में नल्लामाला हिल्स से जुड़े हालिया मुद्दे और इसके महत्व के बारे में चर्चा करेंगे।

ताजा घटनाक्रम

नल्लामाला हिल्स हाल ही में यूरेनियम खनन के विषय को लेकर काफी चर्चा में रहा है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साल 2019 में नल्लामाला वन में यूरेनियम खनन का पता लगाने की अनुमति दी। इसी बीच तेलंगाना राज्य विधान सभा ने नल्लामाला वन में खनन पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था।

अगर नल्लामाला हिल्स पर यूरेनियम की खोज और खनन का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो इससे चेन्चू जनजाति की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। साथ ही इससे टाइगर रिजर्व के भी नष्ट होने का खतरा है। इस क्षैत्र में खनन रोकने के लिए और यूरेनियम खनन के खिलाफ संघर्ष समितिबनाने के लिए 63 से अधिक संगठन और राजनीतिक दल एक साथ आए हैं। इस आंदोलन का उद्देश्य चेंचू समुदाय के आवास और यहां स्थित टाइगर रिजर्व की रक्षा करना है।

चेन्चू जनजाति (Chenchu Tribe) से जुड़े जरूरी तथ्य

  • चेन्चू जनजाति, दक्षिण भारत की सबसे बड़ी और बढ़ती हुई जनजाति है। यह तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के साथ-साथ ओडिशा के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती है।
  • चेन्चू जनजाति के लोग कृषि कार्य नहीं करते हैं, इसलिए अभी भी ये अपने जीवन यापन के लिए केवल शिकार पर ही निर्भर हैं।
  • इस जनजाति की सबसे खास बात ये है कि इसमें अपनी मर्जी से वर-वधु चुनने की आजादी है। साथ ही तलाक के लिए भी वर-वधु की आपसी सहमति को ही सबसे अधिक महत्व दिया जाता है।
  • इस जनजाति की एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये लोग विधवा-विवाह को बुरा नहीं मानते हैं।
  • चेन्चू जनजाति के अधिकतर लोग चेन्चू भाषा बोलते है, यह द्रविड़ परिवार की एक उपभाषा है।

नल्लामाला पहाड़ियों की भौगोलिक स्थिति

नल्लामाला पहाड़ियां पूर्वी घाट में स्थित हैं, जो आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र और तेलंगाना में नागरकुरनूल जिले की पूर्वी सीमा बनाती हैं।

इन पहाड़ियों में बहने वाली दो प्रमुख नदियां कृष्णा और पेन्नार नदियाँ हैं। ये नदियाँ उत्तर-दक्षिण संरेखण में चलती हैं और लगभग 430 किलोमीटर तक कोरोमंडल तट के समानांतर हैं।

नल्लामाला पहाड़ियों की उत्तरी सीमाएं समतल पलनाडु बेसिन द्वारा चिह्नित हैं, जबकि दक्षिणी सीमाओं पर, कृष्णा और पेन्नार नदियां तिरुपति पहाड़ियों में विलीन हो जाती हैं।

नल्लामाला हिल्स रेंज की दो सबसे बड़ी चोटियां समुद्र तल से 1100 मीटर ऊपर भैरी और समुद्र तल से 1048 मीटर ऊपर गुंडला ब्रह्मेश्वर हैं। इस पर्वत श्रृंखला की औसत ऊंचाई समुद्र तल से 520 मीटर है।

नल्लामाला पहाड़ियों की चट्टानों में पिछले कुछ वर्षों में व्यापक अपक्षय और क्षरण हुआ है। वे कडप्पा प्रणाली के समय के हैं।

नल्लामाला पहाड़ियों की जलवायु गर्म होती है। इस क्षेत्र में औसतन 90 सेंटीमीटर वर्षा होती है। यहां वर्षा मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होती है।

नल्लामाला पहाड़ियों के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्यों में से एक चेंचू नामक एक स्वदेशी जनजाति का अस्तित्व है। चेंचू एक जंगल में रहने वाली जनजाति है। यह जनजाति आज तक आधुनिक दुनिया से अलग-थलग रह रही है। इनका प्राथमिक व्यवसाय शिकार है, हालांकि शेष नल्लामाला हिल्स क्षेत्र में इस जनजाति के कुछ लोग अब कृषि को आजीविका के रूप में अपनाने का अभ्यास कर रहे हैं।

नल्लामाला हिल्स के लोकप्रिय पर्यटक स्थल

नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित कुछ पर्यटन स्थलों में नागार्जुनसागर- श्रीशैलम टाइगर रिजर्व, सालेश्वरम शिव मंदिर, मदी मदगु हनुमान मंदिर और उग्रा स्तंभम् शामिल हैं।

नल्लामाला हिल्स क्षेत्र में फैले विभिन्न पर्यटक स्थल इस प्रकार हैं 

नागार्जुन सागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व – नागार्जुन सागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व भारत का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। यह नागरकुरनूल और नलगोंडा के क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसका कुल क्षैत्रफल 3568 वर्ग किलोमीटर है। इस अभयारण्य को वर्ष 1978 में आधिकारिक मान्यता दी गई थी और 1983 में प्रोजेक्ट टाइगर कार्यक्रम के तहत शामिल किया गया था। साल 1992 में इसका नाम बदलकर राजीव गांधी वन्यजीव अभयारण्य कर दिया गया। यह अभयारण्य राजसी बाघों को रखने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है।

श्रीशैलम के मंदिर और जलाशय से इसकी सुंदारता और बढ़ जाती है। इस अभयारण्य में बहने वाली कृष्णा नदी सह्याद्री की पहाड़ियों से निकलती है। इस अभयारण्य में घुमावदार सड़कें, बारहमासी नदियां और आवाज गूंजाने वाली कई घाटियां मौजूद है। इस अभयारण्य में मृग, बंदर, लंगूर, चित्तीदार हिरण, नीलगाय, सरीसृप, भालू, साही, चिंकारा और चौसिंगा आसानी से दिखाई देने वाले प्राणी है।

सालेश्वरम शिव मंदिर – यह भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे शिव के सालेश्वरम मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व के अंदर एक गहरी घाटी में स्थित है। मार्च-अप्रैल के दौरान पांच दिनों के अपवाद के अलावा यह पूरे साल बंद रहता है। यह अपने विशेष आकार के झरने के लिए भी जाना जाता है जो एक बड़े पत्थर पर तराशा हुआ प्रतीत होता है। यहां शिव लिंग झरने के ठीक बगल में एक गुफा में रखा गया है।

मद्दी मदुगु हनुमान मंदिर – भगवान हनुमान को समर्पित मद्दी मदुगु हनुमान मंदिर, तेलंगाना राज्य के मदीमादुगु गांव में स्थित है। इस मंदिर में भगवान हनुमान की, दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुख की हुई मूर्ति पाई गई थी।

उग्रा स्तंभम् – उग्रा स्तम्भम, आंध्र प्रदेश के अहोबिलम में स्थित एक मंदिर है। भगवान नरसिंह को समर्पित यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को नव नरसिम्हा क्षेत्रम के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह भगवान नरसिंह के नौ अलग-अलग मंदिरों को समर्पित है। अहोबिलम का क्षेत्र दो भागों में विभाजित है, ऊपरी अहोबिलम या एगुवु अहोबिलम और निचला अहोबिलम या दिगु अहोबिलम।

तेलंगाना बुल – नल्लामाला पहाड़ियों का एक अन्य आकर्षण है प्रसिद्ध तेलंगाना बुल। यह तेलंगाना राज्य के लिए एक विशिष्ट प्रकार का मवेशी है जो नल्लामाला हिल्स में पाया जाता है। मौजूदा सूखे की स्थिति के बावजूद, यह नल्लामाला पहाड़ियों में सदियों तक जीवित रहने में कामयाब रहे हैं।

नोट – नल्लामाला हिल्स की यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जून के बीच है।

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नल्लामाला में यूरेनियम खनन के प्रभाव

नल्लामाला क्षेत्र में यूरेनियम खनन से यहां निवास करने वाली चेन्चू जनजाति पर प्रतिकुल प्रभाव पडेगा। यहां की जाने वाली खनन गतिविधियों से उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

इस वन क्षैत्र में बाघ, तेंदुआ, भालू तथा चित्तीदार हिरण आदि जीव निवास करते हैं। वहीं यहां समृद्ध औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं। इसलिए अगर यहां खनन होता है तो इन सब जीव-जंतुओं और वनस्पतियों पर विपरित प्रभाव पड़ेगा।

नल्लामाला वनों में यूरेनियम खनन के कारण वहां की समृद्ध जैव विविधता के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।

नल्लामाला की पहाड़ियां और घाटियां कृष्णा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में यूरेनियम खनन से नदी के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही इससे यहां के समुद्री और स्थलीय जैव विविधता पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।

यहां यूरेनियम खनन हेतु अमराबाद टाइगर रिजर्व में दो ब्लॉकों की पहचान की गई थी लेकिन गैर-सरकारी संगठनों, पर्यावरणविदों और स्थानीय नागरिकों द्वारा खनन का लगातार विरोध किया जा रहा है। खनन से यहां पौधों और जीवों के साथ-साथ कृषि, वायु तथा पीने के पानी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।

यूरेनियम खनन की आवश्यकता

हमारे देश की अर्थव्यवस्था की बढ़ती विकास दर के साथ हमारी ऊर्जा आवश्यकताएं भी से बढ़ रही हैं। इसलिए विभिन्न उद्योगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा यूरेनियम खनन पर जोर दिया जा रहा है।

यूरेनियम द्वारा उत्पन्न ऊर्जा अन्य माध्यमों से उत्पन्न ऊर्जा की अपेक्षा कम लागत से होती है। इसलिए कोयले या किसी अन्य माध्यम से उर्जा उत्पन्न करने के बजाय सरकार यूरेनियम से उर्जा उत्पन्न करने पर जोर दे रही है।

कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था में यूरेनियम द्वारा उत्पादित ऊर्जा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसलिए सरकार  यूरेनियम खनन पर जोर देती है।

यूरेनियम को विदेशों से आयात करने पर बड़ी मात्रा में सरकारी धन खर्च होता है। वहीं, इसके आयात के लिए कई प्रकार के समझौते (जैसे नागरिक परमाणु करार) करने होते हैं, जिसका प्रभाव भारत की भू-राजनीतिक नीतियों पर पड़ता है। इन सब से बचने के लिए सरकार देश में ही यूरेनियम खनन को बढ़ावा दे रही है।

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