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सलवा जुडूम

छ्त्तीसगढ़ सरकार ने माओवादियों से निपटने के लिए ‘सलवा जुडूम’ अभियान की शुरुआत की थी। ‘सलवा जुडूम’ शब्द का गौंड भाषा में अर्थ है ‘शान्ति यात्रा’। यह आन्दोलन छत्तीसगढ़ की तात्कालिन कांग्रेस सरकार के समर्थन से चलाया गया था। इसका उद्देश्य राज्य में नक्सली हिंसा को रोककर शांति स्थापित करना था। इस अभियान की शुरुआत जून 2005 में कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा द्वारा की गई थी।

राज्य सरकार ने इस आंदोलन से जुड़ने वाले ग्रामिणों को, नक्सलियों से लड़ने के लिए हथियारों और रसद के साथ-साथ अन्य जरूरी चीजें भी मुहैया कराई थी। बीजापुर के कुटरू क्षैत्र से एक छोटे से अभियान के साथ शुरु हुए सलवा जुडूम आंदोलन ने देखते ही देखते एक विशाल रूप ले लिया। बड़ी संख्या में आदिवासी इस अभियान से जुड़ गए, जिन्हें बाद में विशेष पुलिस अधिकारी का दर्जा भी दिया गया था।

शुरुआत में सलवा जुडूम आंदोलने से जुड़े आदिवासियों के पास कुल्हाड़ी टांगिया और तीर-धनुष जैसे पारंपारिक हथियार थे, लेकिन बाद में उन्हें आधुनिक हथियार दिए जाने लगे। इसके बाद नक्सलियों और आदिवासियों में हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगी। इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण आदिवासियों को कैंप में शरण लेनी पड़ी। जानकारी के मुताबिक सलवा जुडूम अभियान के दौरान करीब 55,000 ग्रामीण आदिवासियों को पडोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में शरण लेनी पड़ी। सलवा जुडूम से नाराज माओवादियों ने 25 मई 2013 को कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा की बर्बरता से हत्या कर दी थी।

महेंद्र कर्मा कौन थे ? 

महेंद्र कर्मा, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता थे। उनका जन्म 5 अगस्त 1950 को दंतेवाड़ा जिले के दरबोडा कर्मा में हुआ था। उन्होंने 1969 में बस्तर हायर सेकेंडरी स्कूल, जगदलपुर से उच्च माध्यमिक की पढ़ाई की थी। इसके बाद साल 1975 में दंतेश्वरी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की थी। 

छत्तीसगढ़ के गठन के बाद कर्मा साल 2000 से 2004 में तक अजीत जोगी सरकार में उद्योग और वाणिज्य मंत्री रहे। इसके बाद साल 2004 से लेकर 2008 तक कर्मा, छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे थे। कर्मा ने साल 2005 में,छत्तीसगढ़ में माओवादी नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई भी। इससे नाराज नक्सलियों ने 25 मई 2013 को सुकमा में उनकी पार्टी द्वारा आयोजित एक परिनिर्वाण रैली बैठक से लौटते समय उनकी हत्या कर दी थी। इससे पहले नक्सली, कर्मा के भाई पोदियाराम के साथ-साथ उनके 20 रिश्तेदारों की हत्या कर चुके थे। 

कर्मा का राजनीतिक सफर 

  • महेंद्र कर्मा ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के साथ की थी। उन्होंने 1980 का आम चुनाव सीपीआई के टिकट लड़ा और जीत भी हासिल की थी। 
  • 1996 के आम चुनावों में कर्मा बस्तर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर सांसद बने। 
  • बाद में कर्मा कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि, उन्हें अजित जोगी के राजनीतिक विरोधी के रूप में जाना जाता था। 
  • कर्मा, अजीत जोगी मंत्रिमंडल में उद्योग और वाणिज्य मंत्री भी रहे। 
  • 2003 में कांग्रेस विधान सभा का चुनाव हार गई, इसके बाद उन्हें विपक्ष का नेता बनाया गया। 
  • माओवादियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने के कारण कर्मा को ‘बस्तर टाइगर’ भी कहा जाता था।

नोट – छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने 2 जनवरी, 2019 को कर्मा की मौत की जांच के लिए विवेकानंद सिन्हा के अधीन एक एसआईटी का गठन किया था।

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सलवा जुडूम चर्चा में क्यों

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 4 अप्रैल 2022 को घोषणा की कि उनकी सरकार उन सभी ग्रामीणों का पुनर्वास करेगी जो सलवा जुडूम हिंसा के दौरान पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना चले गए थे। इस योजना को लागू करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र सरकार से विशेष अनुदान की मांग की है। वहीं, मुख्यमंत्री ने सितंबर में केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिखकर नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ की अतिरिक्त बटालियन तैनात करने का भी अनुरोध किया था।

छत्तीसगढ़ में आदिवासी और इसके आस पास के क्षैत्रों में कई सालो से माओवादि हिंसक गतिविधियां चल रही थी। इन इलाकों में नक्सली अक्सर आम आदिवासियों को निशाना बनाते थे। इस हिंसा के खिलाफ कुछ स्थानीय नेताओं ने आवाज उठने की कोशिस की थी। इनमें आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा प्रमुख थे। कर्मा द्वारा शुरू किया गया अभियान ही सलवा जुडूम के नाम से जाता जाता है। इसके तहत महेंद्र कर्मा ने मधुकर राव जैसे अपने विश्वसनीय साथियों के साथ मिलकर ग्रामिण सशस्त्र सेना तैयार की, जिसका उद्देश्य नक्सलियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना था।

सलवा जुडूम की घोषणा 

सलवा जुडूम आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 4 जून 2005 को छत्तीसगढ़ के बीजीपुर के कुटरू से हुई थी। इसके लिए एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया था। इस सभा में छत्तासगढ़ के तत्कालीन राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, डीजीपी, कलेक्टर, एसपी समेत पक्ष विपक्ष के कई बड़े नेता शामिल हुए थे। सबसे बड़ी बात ये है कि इस आंदोनल में नेता और अधिकारियों के साथ करीब 20 से अधिक गांवो के आदिवासी भी शामलि हुए थे। कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा इस विशाल सभा की अगुआई कर रहे थे। इस दौरान कर्मा ने कहा कि सलवा जुडूम माओवादी हिंसा के खिलाफ एक शांतिपूर्ण आंदोलन है। उन्होंने कहा था कि इस आंदोलन का नाम स्थानीय गोंडी भाषा में ही रखा जाए, ताकि अधिक से अधिक स्थानीय लोग इसे समझ सके और इससे जुड़ सके। कर्मा ने ही इस आंदोलन का नाम सलवा जुडूम रखा था। 

सलवा जुडूम की पहली बैठक 

महेंद्र कर्मा के निकट सहयोगी मधुकर राव के अनुसार,नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा के खिलाफ आदिवासी आंदोलन सलवा जुडूम की पहली बैठक कुटरू से 20 किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी के किनारे बसे करकेली गांव में हुई थी। 

सलवा जुडूम की पृष्ठभूमि 

राव के अनुसार करकेली गांव के कुछ युवकों को नक्सली जबरदस्ती उठा ले गए थे, जिन्हें छुड़ाने के लिए गांव के वाचम एवड़ा, मिच्चा हुंगा समेत कुछ युवकों ने एक बैठक कर नक्सलियों के खिलाफ आवाज उठाने का ऐलान किया था। इस बैठक के दूसरे दिन जब नक्सली करकेली गांव पहुंचे तो स्थानीय युवकों ने उन्हें पकड़ लिया।

इस घटना से नाराज नक्सलियों ने 7 लोगों की हत्या कर दी, जिसमें वाचम एवड़ा के साथ तुमला गांव में लेखराम भी शामिल थे। नक्सलियों के इस हिंसक कृत्य के बाद ग्रामिणों में उनके खिलाफ गुस्सा भड़क गया। इसके बाद करकेली के ग्रामीणों ने फिर से एक बैठक का आयोजन किया। इस बैठक को आदिवासियों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है।

 नोट- 5 जुलाई 2011 को, सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम मिलिशिया को अवैध और असंवैधानिक घोषित करके इसे भंग करने का आदेश दिया था।

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सलवा जुडूम से जुड़े विवाद

सलवा जुडूम हमेशा से विवादों में रहा है। कहा जाता है कि जब छत्तीसगढ़ राज्य ने टाटा और एस्सार समूह के साथ खनन समझौते पर हस्ताक्षर किए, तब से सलवा जुडूम को सैन्य और पुलिस का समर्थन मिलना शुरू हुआ। सरकार ने नक्सलियों की सफाई के लिए सलवा जुडूम जैसे मिलिशिया (नागरिक सेना) को तैनात किया। इसके पीछ का उद्देश्य कथित रूप से यह सुनिश्चित करना था कि खनन कार्य सुचारू रूप से चले।

सलवा जुडूम ने अपनी गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए,  स्थानीय ग्रामीणों को अस्थायी शिविरों में भेजना शुरू कर दिया। इससे नाराज लोग हिंसक और नियंत्रण से बाहर हो गए। इसके बाद मिलिशिया ने गांवों को जलाना शुरू कर दिया और लोगों को शिविरों में भागने के लिए मजबूर कर दिया। जल्द ही उन शिविरों में मानवाधिकारों का हनन होने लगा।

नक्सलियों और सलवा जुडूम संघर्ष ने समस्या को और भी बढ़ा दिया क्योंकि अधिक लोगों को दक्षिण छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश तेलंगाना के शिविरों में भागने को मजबूर हो गए।

NHRC ने सलवा जुडूम पर लगाए आरोप 

बाल सैनिकों के रूप में नाबालिगों की तैनाती – एनएचआरसी ने सलवा जुडूम आंदोलन में अपने सशस्त्र बलों में नाबालिग बच्चों को जबरन भर्ती किया। फैक्ट-फाइंडिंग डॉक्यूमेंटेशन एंड एडवोकेसी (एफएफडीए) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, सलवा जुडूम द्वारा 12,000 से अधिक नाबालिगों का इस्तेमाल किया जा रहा था। दंतेवाड़ा के दक्षिणी जिले में सलवा जुडूम पर 12,000 से अधिक नाबालिगों का इस्तेमाल करने का आरोप था। 

बड़े पैमाने पर ग्रामीणों का विस्थापन – सलवा जुडूम के दौरान हुई हिंसा के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीणों आदिवासियों को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे पडोसी राज्यों में शरण लेनी पड़ी। विस्थापित नही होने वाले लोगों को, नक्सलियों का साथ देने का आरोप लगाकर मार डाला जाता था।

 सलवा जुडूम पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में राज्य सरकार को सलवा जुडूम को कथित रूप से समर्थन देने और प्रोत्साहित करने से रोकने का आदेश दिया था। कोर्ट का ये आदेश कई याचिकाएं दायर होने के बाद आया था।

नंदिनी सुंदर और अन्य लोगों द्वारा सलवा जुडूम पर दायर एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मिलिशिया (नागरिक सेना) को अवैध और असंवैधानिक घोषित कर के इसे भंग करने का आदेश दिया था।

सलवा जुडूम के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सलवा जुडूम की प्रारंभिक गतिविधियां क्या थीं?

जून 2005 में शुरू हुए सलवा जुडूम की प्रारंभिक गतिविधियां, माओवादियों का गढ़ माने जाने वाले गांवों में रैलियां आयोजित करना, ग्रामीण स्तर पर नक्सल समर्थकों और स्थानीय स्तर पर ‘संगम सदस्यों’ के रूप में जाने जाने वाले माओवादियों के कार्यकर्ताओं को ‘आत्मसमर्पण’ करने के लिए मजबूर करना और विरोध करने या रैलियों में भाग लेने से इंकार करने वालों के घरों को जलाना शामिल था।

नक्सलवाद क्या है?

नक्सल शब्द, पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से आया है, जहां साल 1967 में नक्सलबाड़ी विद्रोह हुआ था। उग्रवाद में लिप्त लोगों को नक्सल या नक्सली कहा जाता है। और इस आंदोलन को नक्सलवाद कहा जाता है।

झीरम घाटी कांड क्या है ?

25 मई 2013 को कुख्यात दरभा घाटी (झीरम घाटी) में घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा के काफिले पर हमला कर उनकी बर्बरता से हत्या कर दी। इसके बाद नक्सलियों ने एक सार्वजनिक बयान जारी कर दावा किया कि उन्होंने विशेष रूप से कर्मा को निशाना बनाया था। बता दें कि महिला नक्सलियों के एक समूह ने चाकू से महेद्र कर्मा की हत्या की थी।

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